श्री बाबा बद्रीनाथ... जितना पावन नाम उतना ही दुर्गम। वैसे तो हमारा बाबा के धाम जाने का कोई इरादा न था पर कुछ तो बात है बाबा में कि वो बुलाएं और आप न जाएं ये आपके वश में नहीं।
तो हमारी शुरुआत हुई औली की यात्रा के नाम से। मैं और मेरे 4 मित्र। चूंकि हम स्वभाव से घुमक्कड़ी हैं तो निकल पड़े बर्फ देखने के लिए वो भी 1 जून 2019 को। अब जून में बर्फ कहाँ मिलनी थी तो ये सोचकर यात्रा शुरू की कि जब तक बर्फ नहीं मिलेगी तब तक आगे बढ़ते जायेंगें। शाम को लगभग 9 बजे हम घर से निकले क्योंकि मुझे रात्रिकालीन ड्राइविंग में आनंद आता है। पहला गंतव्य था नैनीताल।
दूसरे दिन सुबह रात भर की ड्राइविंग लगभग के पश्चात हम सुबह होते होते नैनीताल की सुरमई वादियों में थे। हमने हल्द्वानी पहुंच कर निश्चय किया कि नैनीताल शहर जाकर समय बर्बाद का कोई फायदा नहीं तो इसलिए हल्द्वानी से सीधा रानीखेत का रास्ता पकड़ा। रास्ते मे एक जगह चाय और नाश्ते के लिए रुके। मैं पहले भी कई बार नैनीताल और रानीखेत जा चुका था तो वहाँ के मौसम और लोगों के व्यवहार से भली भांति परिचित था इसलिए किसी प्रकार की कोई परेशानी नही हुई अभी तक।
नाश्ता करने के बाद गाड़ी फिर चल पड़ी रानीखेत की ओर क्योंकि हमें बर्फ देखनी थी तो यहाँ रुक कर समय बर्बाद करने का कोई मतलब भी न था। सुबह के 8 बजते बजते हम रानीखेत पहुँच चुके थे। वहाँ गोल्फकोर्स में रुककर कुछ समय बिताने का निर्णय लिया गया सभी मित्रों के द्वारा, तो गाड़ी गोल्फकोर्स की तरफ मोड़ दी। गोल्फकोर्स एक अच्छा मैदान है जो रानीखेत शहर की किनारे ही है। वहाँ पहुँच कर हमने कुछ देर घास में लेटकर आराम किया। वाकई प्रकृति की गोद मे पहुँच कर एक अलग ही सुकून मिलता है।
तत्पश्चात हमारी गाड़ी फिर चल पड़ी कर्णप्रयाग के रास्ते पर क्योंकि हमने मन मे बना लिया था कि औली में बर्फ मिलने के आसार हैं तो पहले औली पहुँचने का निर्णय लिया गया था। 10 बजे लगभग हम द्वारहाट पहुंचे। यह प्रकृति की गोद मे बसा एक छोटा सा शहर है। हमने यहाँ पहुँचकर नाश्ता करने का निर्णय लिया पर करते करते नाश्ते की जगह खाना हो गया। फिर हम वहाँ से निकलकर चल पड़े। शाम 5 बजते बजते हम कर्णप्रयाग पहुँच चुके थे। यकीन मानिए यहाँ पहुँचकर आप अपनी सारी थकान भूल जाएंगे और ऐसा महसूस करेंगे कि आपके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार हो गया हो। भारत तो वेसे भी पवित्र नदियों का देश है और उसमें भी माँ गंगा का पावन तट। चूंकि हमने सुबह से नहाया भी नही था इसलिए हमने वहाँ स्नान करने का निर्णय लिया और यह सोचकर गाड़ी पार्किंग में लगा दी।
वहाँ पर नहाने के पश्चात हमने खाना खाने का निर्णय लिया। फिर खाना खाकर आगे के रास्ते पर निकल लिये। अभी कुछ दूर ही निकले थे कि मौसम में परिवर्तन होना शुरू हो गया। जिसने कुछ ही समय मे भयंकर आंधी का रूप ले लिया। अब हम रास्ते मे घिर चुके थे आंधी इतनी तेज थी कि सामने रोड दिखना बंद हो गयी। ऐसे में हमने गाड़ी रोकने का निश्चय किया पर उसमे भी खतरा था क्योंकि पहाड़ से पत्थर गिरने का भय था। अब तो हमारी स्थिति बहुत बुरी हो गयी। तुरंत गाड़ी घुमाकर पीछे मोड़ी और वापिस लौट कर एक ढाबे पर आकर रुक गए। तकरीबन एक घंटे के आंधी एवं बारिश के पश्चात मौसम कुछ समान्य हुआ। वहाँ के लोगों से रास्ते के बारे में पूछकर हम फिर आगे चल दिये। लगभग 2 घंटे की ड्राइव के बाद हम नंदप्रयाग पहुंचे। इस बीच रास्ते मे अंधेरा और रोड पर कीचड़ एवं फिसलन तथा किनारे से बहती अलकनंदा नदी की भयंकर गर्जना, इस सबसे अब आगे गाड़ी चलाने में हिम्मत जबाब देने लगी तो हमने वही नंदप्रयाग में रात्रि विश्राम का निर्णय लिया। हमे एक लॉज में 1200रुपये में 5 लोगों के लिए कमरा मिल गया जो कि हमारी सोच से बहुत सस्ता था। हमने रात वहीं बिताने का निश्चय किया क्योंकि हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था। मैं एक अकेला ड्राइवर था और मुझे गाड़ी चलाते हुए तकरीबन 24 घंटे से अधिक हो चुके थे इसलिए थकान भी हावी थी। हालांकि प्लान के हिसाब से हमे चमोली में रुकना था पर चमोली अभी भी लगभग 30km दूर था जहाँ मौसम के हिसाब से हमारे लिए पहुँचना सम्भव नहीं था।
तीसरे दिन की शुरुआत हमने सुबह के नाश्ते से की। फिर वहां से हम चमोली के लिए रवाना हुए। रास्ते मे हम पीपलकोठी पहुंचे। वहाँ पर हमने पीपलकोठी नवोदय विद्यालय देख कर कुछ देर वहाँ पर रुकने का निर्णय किया क्योंकि हम सभी नवोदय विद्यालय के छात्र रहे हैं तो हमने वहाँ घूमने का प्रोग्राम बनाया।
कुछ देर बिताने के बाद हम चमोली होते हुए जोशीमठ पहुंचे। कर्णप्रयाग से जोशीमठ तक का रास्ता इतना मुश्किल भरा होगा इसकी उम्मीद नहीं थी। सर्पीले रास्ते पड़ोस में बहती अलकनंदा नदी की भयंकर गर्जना दिल दहला देती है। आपको यहाँ पर ड्राइव करने के लिए बहुत मजबूत होना जरुरी है। जोशीमठ पहुंच कर ऐसा लगा जैसे हमने कोई बहुत बड़ा काम पूरा कर लिया हो। आगे का रास्ता तय करने के दो ऑप्शन थे ट्रॉली या फिर कार। हमने कार से ही आगे बढ़ने का निर्णय किया। जोशीमठ से औली तक खड़ी चढ़ाई है। कई बार तो ऐसा लगता कि नीचे उतर कर कार को धक्का मारना पड़ेगा। अंत मे हम दोपहर 2 बजे औली पहुंच गए।
औली सच मे जन्नत है। जैसा सुना था वैसा ही पाया। हालांकि बर्फ तो अभी नहीं मिली थी पर जून के महीने में भी हम कँपकपी महसूस कर रहे थे। बर्फ के पहाड़ इतने करीब थे कि लगता मानो हाथ बढ़ाओ तो छू लो। औली लेक के पास बैठकर मैगी खाने का मजा ही कुछ और है जिसको शब्दों में बयाँ कर पाना मेरे लिए तो असंभव सा ही है। रात्रि विश्राम के लिए हमने औली में ही रिसोर्ट बुक किया। वहां जाकर पता लगा कि यदि आप सीज़न में औली जाएं तो ठहरने का इंतजाम पहले ही कर ले क्योंकि उस समय आपको वहाँ सब पहले से ही बुक मिलेगा।
सुबह की शुरुआत नाश्ते से करने के बाद हमने बर्फ देखने की इच्छा पूरी करने के लिए श्री बाबा बद्रीनाथ धाम जाने का निश्चय किया। जिसके लिए वापिस जोशीमठ आना था तो वहाँ से निकलकर हम श्री बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना हुए।
बाबा बद्रीनाथ धाम पहुचने से पहले ही हमें बर्फ दिखना शुरू हो गयी और जून के महीने में हमे बर्फ देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। रात्रिकालीन विश्राम वहीं किया। वहाँ पहुंच कर आप शायद खुद को भूल जाएं।
अगले दिन प्रातः उठकर माना के लिए निकल पड़े। माना भारत का आखिरी गांव। श्री बद्रीनाथ धाम से मात्र 4 km दूर। सुरम्य सुंदर, सरस्वती नदी दिखती है यहाँ पर और यहीं भूमिगत हो जाती है। अद्भुत।