हिमालय की गोद में स्थित , हिमाचल प्रदेश को देवताओं का निवास स्थान कहा जाता है। जहां पर अनेकों प्राचीन मंदिर स्थित है। और जहां बर्फ से ढके हुए पर्वत, खूबसूरत प्राकृतिक, ग्लेशियर से निकलता हुआ पानी उससे उत्पन्न नदियां , और विशाल झीलें,पहाड़ों के बीच से बहते हुए जल विशाल झरने, अपने आप में स्वर्ग के समान है। जो किसी पर्यटक को अपनी आगोश में ले लेती है।
इसी हिमांचल के कांगड़ा डिस्ट्रिक्ट में , जहां हिमालय की पर्वत श्रेणी धौलाधार पर्वत के मध्य स्थित, पर्वत-समुंद्र रूपी सागर व अदभुत मंदिर का संगम देखने को मिलता है। पोंग डैम में, जिसे महाराणा प्रताप सागर भी कहते हैं।
पोंग डैम-हिमालय के धौलाधार पर्वत श्रेणियों के मध्य समुद्र तल से 450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, व्यास नदी पर ,बांध बनाकर, एक जलाशय का निर्माण किया गया है। जिसे महाराणा प्रताप सागर कहा जाता है। इसे पोंग डैम जलाशय के नाम से भी जाना जाता है । यह साल 1973 में बनाया गया था। यह जलाशय - झील ६० एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में फैला हुआ है। इसे महाराणा प्रताप सागर कहते हैं। इस डैम का निर्माण बिजली परियोजनाओं व किसान की सिंचाई हेतु बनाया गया था । भारत का यह मानव निर्मित विशाल जलाशय परियोजना है। देखने पर एक विशाल सागर सा प्रतीत होता है। हिमालय की पर्वत श्रेणियों के मध्य यह जलाशय झील एक विशाल वन जीव अभ्यारण है। ठंड के समय में लाखों प्रवासी पक्षी यहां प्रवास हेतु आते हैं। यहां लगभग 200 से ज्यादा प्रजाति के पंछी पाए जाते हैं। नवंबर से प्रवासी पंछियों के आने की शुरुआत हो जाती है। जनवरी माह में पंछियों प्रवास चरम पर होता है । लाखों की संख्या में यहां प्रवासी पक्षी देखे जाते हैं। महाराणा प्रताप सागर के वातावरण में प्रवासी पंछियों की मधुर ध्वनि व विशाल पंछियों के झुंड, पानी के ऊपर आसमान में अठखेलियां करते नजर आते हैं। जिसको देखना उसका एक अलग ही आनंद मिलता है। यहां पर देश- विदेश से पंछी प्रेमी पर्यटक आते हैं। यह पौंग झील जलाशय पंछियों का स्वर्ग जैसे हैं। इस दौरान यहां का नजारा अदभुत होता है। 19 83 में इसे पक्षी अभ्यारण घोषित किया गया है। यहां पर पर्यटकों का तांता लगा रहता है। हिमालय की पर्वत श्रेणियां धौलाधार वा शिवालिक पहाड़ियों के मध्य यह सागर जलाशय और इसके साथ ही पंछियों का विशाल झुंड सागर के चारों ओर चक्कर लगाते हुए देखना, यह नजारा अदभुत होता है। यहां पर समय- समय जल खेलकूदो का आयोजन स्थानीय शासन द्वारा किया जाता है। जिसमें नौका विहार, वॉटर राफ्टिंग, फिशिंग, आदि खेल कूद का आयोजन होता रहता है। पर्यटक यहां पर आकर नौका विहार करके प्राकृतिक व झील का रोमांचकारी आनंद उठाते हैं। पोंग डैम झील में लाखों पंछियों का समूह एक साथ देखने को मिलता है जिसको देखकर मन रोमांचित हो उठता है।
इसी महाराणा प्रताप सागर के पानी में डूबा हुआ नजर आता है, एक रहस्यमयी मंदिर, महाभारत कालीन पांडव द्वारा निर्मित यह मंदिर ,साल के 8 महीने पानी में डूबा रहता है और सिर्फ 4 महीने ही जल समाधि से बाहर नजर आता है ।इस 4 महीने में लोग इसे दर्शन करने वह देखने जाते हैं। इन 4 महीनों यहां पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मंदिर महाभारत कालीन पांडव द्वारा बनाया गया था। यह मंदिर कई मंदिरों का एक समूह है ,जिसे #बाथू की लड़ी# मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन मंदिर महाभारत कालीन के समय का है। कहते हैं कि इसी मंदिर में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां मंदिर में स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण कर रहे थे। जिसका अवशेष अब भी देखने को मिलता है। इस मंदिर की बनावट व वास्तु शिल्पकार कि कला अदभुत है
यह #बाथू का मंदिर# 1970 में बने पोंग बांध बनाए जाने के कारण एक विशाल जलाशय का निर्माण हुआ । जिसको महाराणा प्रताप सागर कहा जाता है। इस सागर के बनने कारण यह मंदिर साल के 8 महीने पानी में डूबा रहता है। मंदिर तक सिर्फ मैं मई- जून में ही पहुंचा जा सकते हैं। यह मंदिर बाथू पत्थर से बने हुए हैं। मंदिर 6 मंदिरों का एक समूह है। जो दूर से देखने पर एक माला की तरह नजर आती है। इसलिए इस मंदिर को बाथू की लड़ी मंदिर कहा जाता है।
इस मंदिर का एक बहुत बड़ा रहस्य है। इस मंदिर की बनावट इस तरीके की गई है कि सूर्य के अस्त होने से पहले, सूर्य कि किरणें बाथू मंदिर में विराजमान भगवान महादेव के चरण छूने के उपरांत ही सूर्य अस्त होता है। महाराणा प्रताप जलाशय का पानी के जलस्तर कम होने के उपरांत मंदिर अपने स्वरूप में नजर आने लगता है मंदिर के चारों ओर जमीन दिखाई पड़ने लगती है। जिसे पर्यटक व भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है। देश-विदेश से पर्यटक यहां आते हैं। पहाड़ों ,प्राकृतिक व पानी के बीच स्थित मंदिर तथा लाखों के संख्या में पंछियों का झुंड तथा प्राकृतिक की खूबसूरत दृश्य, इन सभी दृश्यो का नजारा अदभुत होता है।
महाराणा प्रताप सागर में इस मंदिर के आसपास कुछ छोटे-छोटे प्राकृतिक आईलैंड बने हुए हैं। जहां फॉरेस्ट विभाग के रिसार्ट बने हुए हैं। यहां पर्यटकों को रुकने रहने तथा खाने-पीने की उचित व्यवस्था रहती है। यहां का नजारा बेहद खूबसूरत और रोमांचकारी है। चारो और समुद्र सा नजारा और धौलाधार की बर्फ से ढकी पर्वतमालाएं इन सबके बीच पानी में स्थित इन मंदिरों का समूह को देखना एक अलौकिक आनंद का अनुभव होता है
कब जाएं--
बाथू का मंदिर व पोंग डैम जाने का अच्छा समय मार्च से जून का रहता है।
कैसे पहुंचे__
हवाई मार्ग- नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल एयरपोर्ट है। पोंग डैम से दूरी- 76 किलोमीटर।
ट्रेन द्वारा- निकटतम ब्रांड गेज रेलवे स्टेशन पठानकोट है। जिसकी दूरी 70 किलोमीटर है। नैरो गेज रेलवे स्टेशन नंदपुर भटोली है।
सड़क मार्ग से-नई दिल्ली से 466 किलोमीटर
चंडीगढ़ से 170 किलोमीटर अमृतसर से 70 किलोमीटर
धर्मशाला से 55 किलोमीटर
कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
अपनी यात्राओं के अनुभव को Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती के सफ़रनामे पढ़ने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।