शेरशाह सूरी का मकबरा बिहार रोहतास जिले के सासाराम में है। शेरशाह का यह मकबरा एक विशाल सरोवर के बीचोंबीच लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है। शेरशाह ने अपने जीवनकाल में ही इस मकबरे का निर्माण शुरू कर दिया था, लेकिन पूरा उसके मृत्यु के तीन महीने बाद ही हो पाया। शेरशाह की मौत 13 मई, 1545 को कालिंजर किले में हो गई थी और मकबरे का निर्माण 16 अगस्त, 1545 को पूरा हुआ। शेरशाह के शव को कालिंजर से लाकर यहीं दफनाया गया था। इस मकबरे में 24 कब्रें हैं और शेरशाह सूरी की कब्र ठीक बीच में है।
यह मकबरा हिंद-इस्लामी वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। अपने ऐतिहासिक महत्व और बेजोड़ स्थापत्य कला के कारण यह देश की प्रसिद्ध पुरातात्विक धरोहरों में से एक है। यह देश के बेहतरीन स्मारकों में से एक है। वास्तुकार मीर मुहम्मद अलीवाल खान ने इस मकबरे का डिजाइन तैयार किया था। करीब 52 एकड़ में फैले सरोवर के बीच में स्थित यह मकबरा 122 फीट ऊंचा है। बीजापुर गुंबद के बाद शेरशाह सूरी के मकबरे का गुंबद दूसरे नंबर पर आता है।
इस मकबरे तक जाने के लिए 350 फीट लंबा एक पुल है जो एक बड़े चबूतरे तक जाता है। यह चबूतरा पानी की सतह से 30 फीट की ऊंचाई पर है। इसी चबूतरे के बीच में 135 फीट व्यास वाला अष्टकोणीय मकबरा है। यह मकबरा तीन मंजिला है। अष्टकोणीय मकबरा के किनारों पर आठ स्तंभवाले छोटे गुंबद बने हुए हैं। इसे भारत के दूसरे ताजमहल के रूप में जाना जाता है।
शेरशाह सूरी के जन्म को लेकर इतिहासकारों में दो मत है। कुछ का कहना है कि उनका जन्म 1485-86 में हरियाणा के हिसार में हुआ था, जबकि ज्यादातर का कहना है कि शेरशाह सूरी का जन्म साल 1472 में बिहार के सासाराम में हुआ था, जो अब रोहतास का जिला मुख्यालय है। शेरशाह के बचपन का नाम फरीद खान था, लेकिन शिकार के दौरान बहादुरी दिखाते हुए एक शेर को दो टुकड़े कर देने के कारण उनका नाम शेरशाह पड़ गया। शेरशाह ने सन 1540 में हुमायूं को हराकर दिल्ली की गद्दी पर बैठ सूरी साम्राज्यकी स्थापना की थी।
हालांकि शेरशाह ने सिर्फ पांच साल दिल्ली की गद्दी पर शासन किया लेकिन इस दौरान उन्होंने कई शानदार काम किए और देश को कई नायाब तोहफे दिए। देश में सबसे पहले रुपये की शुरुआत उन्होंने ही की था और उन्होंने ही संदेश भेजने के लिए डाक व्यवस्था को विकसित किया। उनके शासनकाल में ही बंगाल से काबुल तक शेरशाह सूरी पथ का निर्माण किया गया जो बाद में ग्रैंड ट्रंक रोड (जीटी रोड) के नाम से मशहूर हुआ। इसे नेशनल हाइवे 2 के नाम से भी जानते हैं।
कैसे पहुंचें सासाराम-
रेल- शेरशाह सूरी का मकबरा सासाराम शहर के पास है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन और गया जंक्शन रेलखंड पर सासाराम एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है। दिल्ली-कोलकाता के बीच चलने वाली ज्यादातर ट्रेन सासाराम होते हुए जाती हैं। स्टेशन से ऑटो या रिक्शा से मकबरा तक जा सकते हैं।
सड़क- सासाराम नेशनल हाइवे 2 (जीटी रोड) पर स्थित है। यहां से आप वाराणसी, दिल्ली, कोलकाता और पटना आसानी से जा सकते हैं।
हवाई मार्ग- सासाराम का नजदीकी हवाई अड्डा गया और वाराणसी है। गया करीब 100 किलोमीटर, वाराणसी 120 किलोमीटर और पटना करीब 150 किलोमीटर की दूरी पर है। सासाराम के लोग पटना से ज्यादा वाराणसी से जुड़े रहते हैं।
कब पहुंचे सासाराम-
बिहार में गर्मी ज्यादा पड़ती है और बरसात में बाढ़ का मौसम रहता है इसलिए यहां सितंबर से अप्रैल के बीच आना बेहतर रहता है। वैसे कैमूर हिल्स पर बरसात के समय काफी रोमांचक माहौल रहता है। अगर आपको बारिश से प्यार है तो बरसात में भी यहां आ सकते हैं।
खुलने का समय- सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक
सासाराम के आसपास दर्शनीय स्थल-
शेरशाह सूरी का मकबरा के साथ ही रोहतास जिले में कई दर्शनीय पर्यटक स्थल हैं। आप यहां माँ ताराचंडी का मंदिर, रोहतास गढ़ का किला, इन्द्रपुरी डैम, पायलट बाबा का मंदिर, गुप्ता धाम, कैमूर हिल्स और मांझार कुंड भी देख सकते हैं।
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