2 महीने, मतलब 60 दिन, इतने दिन बचे थे मेरी शादी के लिए। मैं काफी नर्वस भी थी और उत्साहित भी। घर पर सभी लोग खुश थे, मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था क्योंकि मेरी शादी उससे हो रही थी जिसे मैं कई सालों से पसंद करती थी। पुरानी नौकरी मैंने पिछले महीने ही छोड़ी थी और नई नौकरी मुझे शादी के बाद जॉइन करनी थी। शादी के पहले मैं कहीं बहार घूमने जाना चाहती थी। आम तौर पर लोग शादी से पहले बैचलर्स मनाने अपने दोस्तों के साथ बाहर जाते हैं पर मेरे दिमाग में कुछ और ही चल रहा था।
मुझे माँ पापा के साथ अगले हफ्ते डॉक्टर को दिखाने चेन्नई जाना था । बस मैंने तय कर लिया था की मैं उनके साथ चेन्नई से पुडुचेरी रोड ट्रिप पर जाउँगी। मेरा हमेशा से मन था की एक बार अकेले भाई बहनों के बिना माँ-पापा के साथ घूमने जाऊँ। मैंने माँ-पापा को अपने इस प्लान के बारे में कुछ नहीं बताया और बस जाने की तैयारी करने लगी। दो दिन बाद हम चेन्नई के लिए निकले। ट्रेन के 48 घंटे के सफ़र के बाद हम चेन्नई पहुँच चुके थे। हमें अगले दिन डॉक्टर के पास जाना था इसलिए शाम को हम उस दिन मरीना बीच पर गए।
इतना खूबसूरत नज़ारा और ठंडी हवाओं को महसूस कर के हम तीनों ही काफी खुश हो गए थे। अगले दिन हम डॉक्टर के पास गए और शाम को मैंने माँ पापा को बताया की अगली सुबह हमें रेड ट्रिप पर पुडुचेरी निकलना है। वैसे तो उन्होंने मुझे कई बार मना किया पर मेरे थोड़ा इमोशनल करने पर वो मान गए थे। मैंने फटाफट हमारे लिए एक गाड़ी बुक की और सुबह निकलने की तैयारी में जुट गए।
अगली सुबह हमें 6 बजे निकलना था। मैंने गूगल पर काफी आर्टिकल पढ़े थे की कौन सा रास्ता पुडुचेरी जाने के लिए सबसे बेस्ट होगा। गूगल के अनुसार पुडुचेरी तक पहुँचने के तीन रास्ते हैं- ईस्ट कोस्ट रोड, NH48, NH32। इन सबमें सबसे छोटा और सुन्दर रास्ता है ईस्ट कास्ट रोड मतलब ई सी आर। इस रोड से हम 3.5 घंटे में चेन्नई से पुडुचेरी पहुँच सकते हैं।
मैंने गूगल मैप्स पर डेस्टिनेशन सेट की और ड्राइविंग सीट पर बैठ गई। मम्मी पापा के साथ मेरा बैचलर्स रोड ट्रिप शुरू हो चूकी थी। माँ और पापा मेरी बचपन की शरारतों को याद करके रोड ट्रिप का मज़ा ले रहे थे। पापा मुझे बता रहे थे की किस तरह मैं हर दिन उनके साथ ही खाना खाती थी और जब बाहर घूमने जाना होता था तो माँ की साड़ी का पल्लू पकड़ कर पूरे घर का चक्कर लगा दिया करती थी। वैसे तो ये सब बातें मैं हज़ारों बार सुन चुकी थी पर फिर भी हर बार माँ और पापा इतनी उत्साह से बताते थे जैसे की उन पलों को दोबारा जी रहे हों।
चोलामंडलम आर्टिस्ट विलेज
इन्हीं बातों के साथ हमारा पहला पड़ाव आ गया था। हम चोलामंडलम आर्टिस्ट विलेज देखने के लिए रुके जो वहाँ से करीब एक घंटे की दूरी पर था। वहाँ कई तरह की खूबसूरत पेंटिंग और ऐतिहासिक मूर्तियाँ देखने को मिली। कुछ देर में वहाँ के ओपन थिएटर में नृत्य का कार्यक्रम भी होना था जिसे देखने के लिए हम वहाँ रुक गए। वहाँ के एक लोकल ग्रुप ने हमारे सामने शानदार नृत्य की प्रस्तुति दी। मेरे मम्मी पापा काफी खुश हुए। उसके बाद हम वहाँ से आगे बढ़े और रास्ते में रुक कर एक ढाबे पर नाश्ता किया। मुझे साउथ इंडियन खाना बचपन से पसंद था और उस ढाबे की स्वादिष्ट इडली खाकर तो मैं और ज्यादा खुश हो गई थी। इसके बाद हम थोड़ी दूर और आगे चले और कुछ ही में समय में हम अपने अगले पड़ाव पर पहुँच चुके थे।
हमारा अगला पड़ाव था कोवलम बीच जिसकी खूबसूरती के बारे में मैंने बहुत कुछ सुना था और जैसा सुना था वैसा पाया भी। मेरी माँ को बीच पर घूमने का बहुत शौक था इसलिए वो नंगे पांव बीच के किनारे रेत पर चलने लगी। उनको देख कर पापा ने भी साथ देना शुरू कर दिया, फिर दोनों ने मेरा हाथ पकड़ा और उस रेत पर चलने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों मेरे हाथ थाम कर मुझे दोबारा चलना सिखा रहे हों। मेरे लिए वो पल बहुत ही खूबसूरत था और शायद मेरे माँ पापा के लिए भी क्योंकि मैंने माँ की आँखों में छलके आंसुओं को देख लिया था और वो फिर भी मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। कुछ देर उस बीच पर शांति से बैठने के बाद हम वापस गाड़ी में बैठे और आगे बढ़े।
माहौल थोड़ा इमोशनल हो गया था इसलिए पापा ने रेडियो चालू कर दिया था। करीब आधे घंटे ड्राइव करने के बाद हम अपने तीसरे पड़ाव ममाल्लापुरम पहुँच गये थे। आठवीं शताब्दी में बनाई गयी ये जगह अब यूनेस्को के द्वारा पहचानी जा चुकी थी। वहाँ कई ऐतिहासिक मंदिर और इमारतें थी जिसने मेरे पापा को अपनी ओर आकर्षित किया था। वो उन इमारतों और उनकी कारीगरी को देख कर उनके पीछे छिपी कहानियों को पढ़ने की कोशिश कर रहे थे। कुछ देर वहाँ घुमने के बाद हम आगे बढ़े। पांडिचेरी वहाँ से अब भी एक घंटे दूर था और उससे पहले था हमारा आखिरी पड़ाव।
हम अपने आखिरी पड़ाव के लिए आलमपराई फोर्ट पर उतरे। सत्रहवीं शताब्दी में मुग़लों द्वारा बनाया गया किला उस वक़्त की कारीगरी का नायाब नमूना था। किले की कुछ जगह से तो हम पीछे की झील भी देख सकते हैं जो उस जगह को और भी खुबसूरत बनाती है। हम कुछ देर वहाँ घूमने के बाद आगे पढ़े और आधे घंटे में पुडुचेरी पहुँच गए। पहुँचने में हमें शाम हो चुकी थी इसलिए हमने अपने होटल में खाना खाया और होटल के पास की खूबसूरती की देखने के लिए वॉक पर चले गये। माँ पापा के साथ इस रोड ट्रिप में मैंने उनके साथ कई खूबसूरत पल बुने थे। शादी के बाद मैं अपने साथ कई यादों को समेट कर ले जाने वाली थी जिसमें ये रोड ट्रिप बहुत खास थी।