उसने ने यह कहते हुए मेरे हाथ में इयरफोन थमा दिया कि परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा |
जब मैंने अपने उसी चिड़चिड़े अंदाज़ में उसकी ओर देखा , तो उसने तपाक से विरोध करते हुए कहा कि "तू हमेशा ही इतना तेज़ क्यों भागता है| किसी को पूरा सुनना ही नहीं चाहता |”
उसने सच ही तो कहा था भागता ही तो हूँ | जब से मैंने होश संभाला है तब से अपने जीवन में ये वाक्य मैं कई बार सुन चुंका हूँ |
रात्रि के करीब 8 बजे थे| हम दोनों ग्रीष्म ऋतु में भी ठंडी हवा की चादर ओढ़े फतेहसागर झील (उदयपुर) की ओर मुँह करके बैठे हुए थे | अँधेरे को ख़त्म करती चारों तरफ़ फैली स्ट्रीट लाइट झील में अपना खुबसूरत प्रतिबिम्ब बना रही थी| झील के किनारें जलीय पादप और इंसानी कूड़ा-करकट मिलकर अपना एक अलग ही पारितंत्र का निर्माण कर रहे थे| फतेहसागर मेरे अस्थायी निवास स्थान ड्रीमयार्ड होस्टल से तक़रीबन 3 किलोमीटर की दूरी पर था |
पीछे रोड पर तेज़ रफ़्तार में चल रही तमाम जिंदगियों के शौरगुल में, मैं उलझ-सा गया था |पारिवारिक गाड़ियों के तेज़ हॉर्न की आवाज जो अपने मालिकों के परिवार को रविवार की रात सैर करवाने निकली थी| मकई के दानों के पोपकोर्न को पैकेट में बाँधकर लटकाएं ग्राहक की तलाश में चिल्लाती बचकानी आँखें | थोड़ी-थोड़ी दूरी पर खोमचे वालें और ऑटो वालों की आवाजें हाँ भाई साहब कहाँ जाना है ?
मेरे चेहरे की उलझन को पढ़ते हुए मेरे साथी ने कहा, मैं एक गीत चालूं करती हूँ , और तुझे बस मेरे बताएं एहसासों का अनुभव करना है | गीत अपनी दिल को छू जाने वाली धून और बोल - "पीरा नु मैं सीने लावां, ते मैं हसदी जावां" के साथ शुरू हुआ| मैंने गीत में खोते हुए शीतल फतेहसागर और दूर क्षितिज पर स्थित अरावली पहाड़ियों पर अपनी जिंदगी की उम्मीदों के सिनेमा को फिल्माया |जिसका लेखक, निदेशक मैं ही था | लेकिन सलाहकार मेरी साथी और स्थान उदयपुर का फतेहसागर | बैकग्राउंड कलाकार जलीय पारितंत्र का परिवार और क्षितिज पर स्थित पहाड़ | शहर की हॉर्न बजाती गाड़ियों और इंसानों की चहलकदीमियों ने अपना म्यूजिक दिया| दर्शक मेरी आँखें और मेरा मन| इस सिनेमा की कमाई मेरी ख़ुशी और शांति थी |
थोड़ी देर के लिए मिले प्रभावशाली सुकून के बाद मैं अपने साथी को अलविदा करते हुए फतेहसागर से रवाना हुआ | झील के किनारें चलते हुए मैंने ऑटो को हाथ दिखाते हुए अंकल जी को ड्रीमयार्ड होस्टल, जगदीश चौक घाट जाने के लिए पूछा | अंकल जी ने 150 रुपए किराया बताया लेकिन मैंने 100 रुपए की दरख्वास्त के साथ फाइनल किया और फटाक से ऑटो में बैठ गया | अंकल जी ने भी अपनी प्यारी मुस्कान के साथ चलने का इशारा दिया | झील किनारें चलते हुए हवा अपने स्त्रोत से जल ग्रहण करते हुए कूलर की भांति ठंडक प्रदान कर रही थी | 5 मिनट की शान्ति को तोड़ते हुए मैंने अंकल जी को कहा कि आपकी मुस्कान बहुत प्यारी है जो आपके चेहरे पर एक अलग ही रौनक को उजागर कर देती है , आप हमेशा ऐसे ही मुस्कुराते रहना | गलती से भी आपकी इस मुस्कान को किसी की नजर न लगें |
मैं अब शांत था|