शांत करता फतेहसागर

Tripoto
Photo of शांत करता फतेहसागर by Raman Jeet

उसने ने यह कहते हुए मेरे हाथ में इयरफोन थमा दिया कि परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा |

जब मैंने अपने उसी चिड़चिड़े अंदाज़ में उसकी ओर देखा , तो उसने तपाक से विरोध करते हुए कहा कि "तू हमेशा ही इतना तेज़ क्यों भागता है| किसी को पूरा सुनना ही नहीं चाहता |”

उसने सच ही तो कहा था भागता ही तो हूँ | जब से मैंने होश संभाला है तब से अपने जीवन में ये वाक्य मैं कई बार सुन चुंका हूँ |

रात्रि के करीब 8 बजे थे| हम दोनों ग्रीष्म ऋतु में भी ठंडी हवा की चादर ओढ़े फतेहसागर झील (उदयपुर) की ओर मुँह करके बैठे हुए थे | अँधेरे को ख़त्म करती चारों तरफ़ फैली स्ट्रीट लाइट झील में अपना खुबसूरत प्रतिबिम्ब बना रही थी| झील के किनारें जलीय पादप और इंसानी कूड़ा-करकट मिलकर अपना एक अलग ही पारितंत्र का निर्माण कर रहे थे| फतेहसागर मेरे अस्थायी निवास स्थान ड्रीमयार्ड होस्टल से तक़रीबन 3 किलोमीटर की दूरी पर था |

पीछे रोड पर तेज़ रफ़्तार में चल रही तमाम जिंदगियों के शौरगुल में, मैं उलझ-सा गया था |पारिवारिक गाड़ियों के तेज़ हॉर्न की आवाज जो अपने मालिकों के परिवार को रविवार की रात सैर करवाने निकली थी| मकई के दानों के पोपकोर्न को पैकेट में बाँधकर लटकाएं ग्राहक की तलाश में चिल्लाती बचकानी आँखें | थोड़ी-थोड़ी दूरी पर खोमचे वालें और ऑटो वालों की आवाजें हाँ भाई साहब कहाँ जाना है ?

मेरे चेहरे की उलझन को पढ़ते हुए मेरे साथी ने कहा, मैं एक गीत चालूं करती हूँ , और तुझे बस मेरे बताएं एहसासों का अनुभव करना है | गीत अपनी दिल को छू जाने वाली धून और बोल - "पीरा नु मैं सीने लावां, ते मैं हसदी जावां" के साथ शुरू हुआ| मैंने गीत में खोते हुए शीतल फतेहसागर और दूर क्षितिज पर स्थित अरावली पहाड़ियों पर अपनी जिंदगी की उम्मीदों के सिनेमा को फिल्माया |जिसका लेखक, निदेशक मैं ही था | लेकिन सलाहकार मेरी साथी और स्थान उदयपुर का फतेहसागर | बैकग्राउंड कलाकार जलीय पारितंत्र का परिवार और क्षितिज पर स्थित पहाड़ | शहर की हॉर्न बजाती गाड़ियों और इंसानों की चहलकदीमियों ने अपना म्यूजिक दिया| दर्शक मेरी आँखें और मेरा मन| इस सिनेमा की कमाई मेरी ख़ुशी और शांति थी |

थोड़ी देर के लिए मिले प्रभावशाली सुकून के बाद मैं अपने साथी को अलविदा करते हुए फतेहसागर से रवाना हुआ | झील के किनारें चलते हुए मैंने ऑटो को हाथ दिखाते हुए अंकल जी को ड्रीमयार्ड होस्टल, जगदीश चौक घाट जाने के लिए पूछा | अंकल जी ने 150 रुपए किराया बताया लेकिन मैंने 100 रुपए की दरख्वास्त के साथ फाइनल किया और फटाक से ऑटो में बैठ गया | अंकल जी ने भी अपनी प्यारी मुस्कान के साथ चलने का इशारा दिया | झील किनारें चलते हुए हवा अपने स्त्रोत से जल ग्रहण करते हुए कूलर की भांति ठंडक प्रदान कर रही थी | 5 मिनट की शान्ति को तोड़ते हुए मैंने अंकल जी को कहा कि आपकी मुस्कान बहुत प्यारी है जो आपके चेहरे पर एक अलग ही रौनक को उजागर कर देती है , आप हमेशा ऐसे ही मुस्कुराते रहना | गलती से भी आपकी इस मुस्कान को किसी की नजर न लगें |

मैं अब शांत था|

Photo of शांत करता फतेहसागर by Raman Jeet

Further Reads