अपनी ग्रेटर नोएडा से ओमकारेश्वर की अपनी यात्रा के दौरान कल एक जानकार की शादी में जाना हुआ , शादी स्थल में जाते ही आंखें फट गई क्या शादी थी ऐसा लग रहा था जैसे किसी राजशाही समारोह में आए हो ।
शादी एक महंगे रिसोर्ट मे थी जैसा की आज कल ज्यादातर शादियों में होता है । तभी मन में ख़्याल आया की इतनी महंगी शादी ये लड़की वाले कर कैसे रहे है इनकी आर्थिक हालत इतने भी अच्छे नहीं की वो इस तरह से आलीशान शादी कर सकें ।
अभी में ये सब सोच ही रहा था की तभी लड़की का मामा जो मेरा दोस्त भी था मेरे पास आ गया और हम आपस में गप्पे मारने लगे और इस भव्य शादी का आनंद लेते हुए गोलगप्पों से शुरुआत करी ।
मेरे दोस्त यानी लड़की के मामा को इस तरह से निश्चिंत खड़े हो मेरे साथ चाट पकौड़ी का आनंद लेते हुए देख मेरे मन में ख्याल आया की ऐसे मौकों पर तो ज्यादातर मामा सबसे ज्यादा व्यस्त होते है शादी की तैयारी को देखने और संभालने में लगे रहते है पर यहां तो ऐसा कुछ होता लग नही रहा ।
अब मैने अपने दोस्त से पूछ ही लिया की यार ये बताओ लड़की के बाप की कौन सी लॉटरी लग गई जो इतने बड़े स्तर पर रिजॉर्ट में शादी कर रहा है ।
दोस्त बोला की देखो यार ये शादी जैसे समारोहों अब वो पहले जैसी तो रहे नही की सभी रिश्तेदार शादी की तैयारी करवाने में लग जाए और शादी सादगी से और आपसी सयोग से आराम से हो जाए ।
जैसे पहले लोग अपने घरों के बाहर ही शादी का पंडाल लगा पूरी शादी निपटा लेते थे फिर वक्त आया शहर या गांव के सामुदायिक भवनों में शादी के होने का और उसके बाद शादियां होने लगी मैरिज हाल में , पर अब ऐसा होना संभव नहीं क्योंकि इससे शादी करने वालो की ही नही शादी में आने वाले रिश्तेदारों की शान में कमी हो जाती है और फिर ऐसी शादी में कोई आना पसंद नही करता ।
अब समय चल रहा है डेस्टिनेशन मैरिज या शहर से बाहर महंगे महंगे रिजॉर्ट में शादियों का क्योंकि ऐसा करने से एक तो रिस्तेदारो में शान बनती है और लड़के वाले भी खुश हो जाते है फिर चाहे लड़की के पिता का तेल ही क्यों न निकल जाए ।
अब मैने अपने दोस्त से पूछा तुम तो लड़की के मामा को काफी दिन पहले आ गए होगें। ये सुन दोस्त ने ठंडी सांस भरते हुए मुस्कुराते हुए बोला नही यार अब वो समय नही रहा जब शादी से हफ्ते भर पहले आ जाते थे अब तो शादी से सिर्फ 1 - 2 दिन पहले आ जाओ काफी है क्योंकि शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है अब वो घर आना जाना बंद हो गया है आगंतुक और मेहमान सीधे यही आते हैं और यही से मिटाई का डब्बा ले विदा हो जाते हैं।
अब होता ये है शहर से इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन हैं वहीं पहुंच पाते हैं और बुलाने वाला भी यही चाहता है की शादी स्थल के पास गाड़ियों की लाइन लगे जिससे उसके सामाजिक स्तर का दूसरो को मालूम लगें और लड़के वालों पर इसका असर पड़े ।
यहां तक की शादी का निमंत्रण देने वाला भी उसी हिसाब से कार्ड देता है और अब तो शादी के कार्ड्स वॉट्सएप पर ही आ जाते है अब आमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी और सिर्फ दिखावा बचा है ।
शादियां इतनी मंहगी और अजीब तरीके से होने लगी है की अब तो ये हाल है की शादी जैसे प्रोग्राम को भी अलग अलग हिस्सों में बाट दिया है और महमानों को उसी हिसाब से बुलाया जाता है और उन महमानोँ के रूकने और खाने पीने का इंतेजाम भी उसी हिसाब से होता है जैसे :
किसको सिर्फ लेडीस संगीत में बुलाना है !किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है !
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है !
और इन महमानोँ के रूकने और खाने पीने का इंतेजाम भी उसी हिसाब से होता है
अब सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है और शादी का खर्चा इतना ज्यादा कर लिया है की लोग चाहते है रूकने के हिसाब से रिश्तेदार कम से कम आए ।
अब शादी , शादी कम और एक कॉरपोरेट इवेंट ज्यादा लगती है परिवार की ज्यादातर महिलाएं अपने अपने हिसाब से डांस सीखती है जिसके लिए वो महंगे कोरियोग्राफर से ट्रेनिंग लेती है और कोशिश होती है की उनका डांस सबसे अच्छा रहे जिससे सब उनकी तारीफ करें ।
मेहंदी के प्रोग्राम में भी अब घर की बड़ी बुजुर्ग और अड़ोस पड़ोस की महिलाओं की जगह महंदी लगाने वाले आर्टिस्ट ने ले ली है
हल्दी जैसे छोटा प्रोग्राम अब एक खर्चीला काम बन गया है
अब सिर्फ दुल्हन ही नही उसकी ख़ास सहेली और रिस्तेदारो के लिए ब्यूटी पार्लर को बुक कर दिया जाता है !
अब शादी वाले घरों में जो पहले प्यार का माहौल होता था दिन भर सब लोग शादी के कामों में व्यस्त रहते थे और रात को सब एक साथ गद्दे बिछा सोते और गप्पे मारते थे और शादी जैसे पवित्र कार्यक्रम को एक यादगार मौका बना देते है
शायद हमें आज भी पहले हुई अपने मामा चाचा मौसी आदि की शादियां याद होगी क्योंकि उसमे सब की भागीदारी थी पर क्या अपके किसी चचेरे मोसेरे ममेरे भाई बहन की शादी याद है तो जवाब शायद न ही हो ।
अब तो सब अपने अपने कमरों में सोते है वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते हैं!!और शादी में क्या कमी निकाले इसपर ज्यादा विचार होता है और कैसे एक दूसरे को नीचा दिखाए ये कोशिश ज्यादा होती है जिस कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता खत्म हो गई है
क्योंकि सब अब दिखावे वाले अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं!
मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है!
सब एक दूसरे से कट के शादी का आनन्द लेने में लगे रहते है रस्म अदायगी पर मोबाइलो से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं !
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं!
और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है !
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता !
जैसे आप किसी राजनीतिज्ञ रैली में जाते है और नेताओ के बड़े बड़े पोस्टर आदि देखते है अब वैसी तस्वीरे नव दंपती की विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें मुख्य स्वागत द्वार पर मिलती है जो हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं
एक ये प्री वेडिंग शूट आजकल शादी का मुख्य हिस्सा बन गया है ऐसा लगता है जैसे ये शूट न हुआ तो शादी ही अधूरी है और फिर उसके बाद शादी स्थल पर एंट्री गेट पर आदम कद स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं!
वैसे तो शादी में रिश्तेदार ज्यादा आते नही और जो आते है तो भी अब स्टेज परआशीर्वाद समारोह तो रहा नहीं अब सिर्फ वो फोटो शूट होता है कहीं से भी नहीं लगते है
पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर पास में लगा मंच जहां नव दंपत्ति लाइव गल - बहियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं!
ऐसा लगता है जैसे शादी न हुई कोई राजनीति खेमा बंदी हो रही है और इन सब में सबसे ज्यादा लड़की का परिवार पिसता है जो अमीर है उनके लिए तो ज्यादा बड़ी बात नहीं पर जो मध्यमवर्गी परिवार है अब वो भी दूसरो की देखा देख ऐसे ही शादी करने लगे है जिस कारण शादी के बाद वो पैसों की परेशानियों से परेशान रहते है उसपर रिस्तेदारो की बाते की शादी में ये कमी थी या वो कमी थी
अंत में दोस्त ने यही बोला की मध्यमवर्गीय लोगों को सोच और समझ के शादी जैसे काम करने चाहिए , न की दूसरो की देखा देख क्योंकि ये पैसा आपका है और आपने बड़ी मेहनत से कमाया है जिसको सिर्फ दिखावे पर बर्बाद करना सिर्फ मूर्खता है
जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करें।
4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है !
और आप कितना ही बेहतर करें लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे शादी स्थल से निकलते ही कमियां गिन्नाने लग जाते है
इसलिए लोगों को हैसियत से ज्यादा खर्चा करने से अच्छा है अपने हिसाब से खर्चा करें ।
दिखावे की इस सामाजिक बीमारी से बचे और शादी जैसे मौके पर आपसी प्यार से मिले और एक यादगार पल बनाए ।