मनाली हिमाचल प्रदेश की सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है। मौसम चाहे कोई भी हो आपको मनाली में लोगों की अच्छी खासी भीड़ मिल ही जाएगी। मुझे इस भीड़ की वजह से ही मनाली पसंद नहीं है लेकिन मनाली के आसपास कई जगहें हैं जो वाक़ई में खूबसूरत हैं और वहाँ भीड़ भी कम रहती है। मनाली से कुछ ही दूरी पर एक छिपा हुआ वाटरफॉल है, जहां जाकर मेरा दिन बन गया। इस खूबसूरत झरने का नाम है, सजला वाटरफॉल।
सजला वाटरफॉल मनाली-नग्गर रोड पर स्थित है। अगर आप कुल्लू या मनाली से नग्गर की तरफ़ जाएँगे तो रास्ते में सजला नाम का गाँव पड़ेगा। इस गाँव से ही एक छोटा ट्रेक शुरू होता है जो सजला झरने तक जाता है। मनाली से सजला वाटरफॉल 10 किमी. की दूरी पर है। ब्यास नदी पर बना ये शानदार झरना 20 फ़ीट की ऊँचाई से गिरता है। ये झरना नीचे एक पूल बनाता है जिसमें आप नहा भी सकते हैं। मैंने भी हाल ही में बेहद शानदार झरने की यात्रा की।
नग्गर
नग्गर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले में स्थित है। कुल्लू से नग्गर 25 किमी. और मनाली से नग्गर 20 किमी. की दूरी पर स्थित है। ब्यास नदी के किनारे स्थित नग्गर समुद्र तल 1800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। नग्गर में दो दिन रहने के बाद मेरा किसी झरने को देखने का बड़ा मन था। नग्गर के पास जाना वाटरफॉल, संगचर वाटरफॉल और सजला वाटरफॉल भी है। काफ़ी सोच विचार के बाद सजला वाटरफॉल जाना तय किया।
अगले दिन सुबह उठकर हम नग्गर में कुल्लू-मनाली सड़क पर पहुँच गए। यहाँ हमने एक होटल पर चाय और पराँठे का नाश्ता किया। इसके बाद बस का इंतज़ार करने लगे। कुल्लू से नग्गर होते हुए मनाली जाने वाली किसी भी बस में बैठ जाइए, आप सजला गाँव पहुँच जाएँगे। थोड़ी देर बाद मनाली जाने वाली बस आ गई। बस छोटे-छोटे रास्तों से कई गाँवों से होते हुए सजला पहुँची। हम सजला पहुँच गए। अब हमें वाटरफॉल की तरफ़ बढ़ना था।
ट्रेक
सजला गाँव में लोगों से पूछने के बाद हम वाटरफॉल की तरफ़ बढ़ चले। हम सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में हमें स्थानीय घर देखने को मिले जो वाक़ई में काफ़ी सुंदर थे। थोड़ी देर बाद एक जगह आई, जहां पर लकड़ी का मंदिर बना था। ये सजला का भगवान विष्णु का मंदिर है। मंदिर का आर्किटेक्चर काफ़ी शानदार है। मंदिर के दर्शन करने के बाद हम झरने की तरफ़ चल पड़े। अभी तक हम सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे लेकिन अब हम जंगल के बीच से कच्चे रास्ते पर चल रहे थे।
चारों तरफ़ चीड़ के बेहद विशाल पेड़ लगे हुए थे। चीड़ का ये जंगल इतना घना था कि सूरज की किरणें भी ज़मीन तक छन कर आ रहीं थीं। अच्छी बात ये थी कि रास्ते में पत्थरों पर वाटरफॉल लिखा था और निशान भी बना हुआ था। जिसकी सहायता से हम आगे बढ़ते जा रहे थे। रास्ते में कुछ दुकानें भी बनी हुईं थीं लेकिन फ़िलहाल बंद थीं। हम सुबह-सुबह काफ़ी जल्दी आ गए थे इसलिए भी हमें दुकानें बंद मिलीं। कुछ देर चलने के बाद हमें संकरा रास्ता मिला। थोड़ी देर बाद हमें पानी की आवाज़ तेज़ आने लगी। कुछ देर बाद हमें नदी दिखाई देने लगी। रास्ते में एक छोटा-सा नाला जैसा कुछ मिला। उसके किनारे चलते हुए हम आख़िरकार सजला वाटरफॉल तक पहुँच गए।
सजला वाटरफॉल
जंगलों के बीच एक खूबसूरत वाटरफॉल हो और वहाँ आपके अलावा कोई और ना हो तो इससे सुंदर क्या ही हो सकता है। हम सुबह-सुबह जल्दी भी इसलिए आए थे कि सजला वाटरफॉल पर भीड़ ना मिलें लेकिन हमें ये पता नहीं था कि यहाँ हमारे अलावा कोई नहीं होगा। वाटरफॉल के पास में एक छोटा-सा कैफ़े है जहां आप नाश्ता कर सकते हैं। कैफ़े के आगे बैठने के लिए कुर्सियाँ पड़ी हुई हैं।
ब्यास नदी पर बना सजला वाटरफॉल वाक़ई में खूबसूरत है। 20 फ़ीट की ऊँचाई से गिरने वाला ये झरने देखकर मैं तो खुश हो पड़ा। मेरा प्लान था कि मैं कुछ देर यहाँ पर नहाऊँ लेकिन पानी में पैर डालने के बाद समझ आया कि पानी बहुत ज़्यादा ठंडा है। पानी में कुछ देर पैर को डालना भी एक कठिन काम है। कुछ देर के बाद लोगों की आमद शुरू हो गई। हम यहाँ पर 2-3 घंटे रूके। इसके बाद वापस लौटने लगे। रास्ते में एक दुकान पर हमने आंटी जी को मोमोज बनाने के लिए बोल दिया और हम नीचे नदी किनारे चले गए। नदी किनारे गया तो नहाने का मन कर गया फिर क्या था ठंडे-ठंडे पानी से नहा ही लिया। नहाने के बाद मोमोज खाए और फिर बस से वापस नग्गर आ गया। तो कुछ इस तरह पूरा हुआ सजला वाटरफॉल का शानदार सफ़र।
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