
ऊँचे ऊँचे पहाड़ और उन पहाड़ों के ऊपर जीत पाना यानि की चढाई करना ये ख्वाब बहुत सारे लोग देखते हैं, लेकिन पूरा कितने लोग कर पाते हैं। 100 में से सिर्फ 4 या 5। ये पर्वतारोहण की दुनियाँ का एक कड़वा सच है।

इसके पीछे बहुत से कारण है लेकिन सबसे बड़ा कारण है, पर्वतारोहण के पीछे लगने वाला बहुत ज्यादा पैसा। इतने पैसा लगा पाना सब की बस की बात नहीं होती है। आखिर इतने पैसे खर्च कहाँ होते हैं आइये आपको बताता हूँ।
इक्विपमेंट -
पर्वतारोहण असली खेल है इक्विपमेंट का। अगर आपके पास अच्छे इक्विपमेंट और कुशल पर्वतारोहण स्किल्स हैं तो आप किसी भी कठिन से कठिन पर्वत पर फतेह पा सकते हैं। लेकिन ये इक्विपमेंट इतने महंगे आते हैं की आप इनको खरीदने से बढ़िया पर्वतारोहण को हमेशा के लिए छोड़ने की सोच लेते हैं।

परमिशन -
पर्वतारोहण करने से पहले आपको उसकी परमिशन लेनी पड़ती है। ये प्रक्रिया बहुत जटिल है। बहुत सारे लोग तो बिना परमिशन के ही पर्वतारोहण कर लेते हैं लेकिन उनका नाम कहीं भी दर्ज नहीं हो पाता। नेपाल जैसा देश तो पर्वतारोहण की परमिशन से हर साल करोड़ों कमा लेता है।

डर -
सबसे बड़ा है इंसान का डर। पर्वतारोहण कराने वाली कंपनियों की इस फील्ड में सबसे ज्यादा मौज हैं। वो लोग आपको इतना डरा देंगे जैसे उनके बिना पर्वतारोहण संभव ही नहीं है अगर आप उनके बिना पर्वतारोहण करेंगे तो आपके जिंदा बच के आने के चांस सिर्फ 5 % रह जायेंगे। इस डर का ही वो फायदा उठा लेते हैं और जो पर्वतारोहण महज कुछ हजार रुपयों में हो सकता है वो आपसे लाखों रूपये ले लेंगे।

नॉलेज की कमी -
बहुत से पर्वतरोही किसी भी पर्वत पर जाने से पहले उसके बारे में सही से अध्यन नहीं करते और पैसा फेंको तमाशा देखो इस सिद्धांत पर कंपनी के भरोसे सब कुछ छोड़ देते हैं। जबकि अगर पूरा होमवर्क कर के खुद से शेरपा, गाइड और पोटर ले कर ये काम किया जाय तो काफी कम पैसों में हो सकता है।
