एक दोपहर बापु के सानिध्य में। (Sabarmati Ashram - Ahmadabad)
मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी के सफर का साक्षी - साबरमती आश्रम।बापू के सानिध्य में - साबरमती आश्रम, अहमदाबाद।
हृदय कुँज, बापू की कुटिया का अगला हिस्सा। इसमें सिर्फ बैठक, कस्तूरबा का कमरा, मेहमानों का कमरा, रसोई और भंडार गृह है। कोई भी कमरा 10 बाय 10 फ़ीट से ज्यादा नहीं है।
1915 में साउथ अफ्रीका से लौटने के बाद पूरे एक साल गाँधी जी ने भारत भ्रमण किया फिर 1917 में अहमदाबाद की साबरमती नदी के किनारे आश्रम की स्थापना की। 1918 से 1930 तक मोहनदास करमचंद गाँधी और कस्तूरबा गाँधी ने हृदय कुंज नामक छोटी सी कुटिया में निवास किया था। दांडी के नमक सत्याग्रह के लिए बापू ने यही से कूच किया था।
ह्रदय कुञ्ज - बापू की कुटिया में बैठक का वो कमरा जहाँ बापू चरखा चलते हुए स्वतंत्रता संग्राम से जुडी सारी बैठक करते थे. यही पर देश विदेश से मिलने आने वाले सभी लोग बापू से मिलते थे. 10 x 15 फ़ीट का यह कमरा दो तरफ से खुला हुआ है. इसे बापू की याद में अभी भी वैसे ही रखा गया है.
सम्पूर्ण विश्व से बापू को पत्र लिखे जाते थे लेकिन बापू स्वतंत्रता आंदोलन के चलते देश मे घूमते रहते थे। इसलिए उन्हें पत्र लिखने वाले पते की जगह पर "महात्मा गाँधी जहाँ हो वहाँ" लिखकर पोस्ट कर देते थे। और पत्र देशभर में जहाँ भी बापू होते थे वहाँ पहुँच जाता था।
टेक्सटाइल इंजीनियरो के लिए तीर्थ स्थान। साबरमती आश्रम अहमदाबाद में एक वस्त्र विद्यालय 1919 से 1933 तक चलाया जाता रहा। अब भी आंशिक कार्यरत है। इसके संचालक स्व. मगनलाल गाँधी रहे। इस विद्यालय में स्वदेशी खादी वस्त्र तैयार करने की सभी प्रोसेस यानी स्पिनिंग, डाइंग, वीविंग, सिलाई आदि सिखाया जाता था। ये बापू के ग्राम स्वराज और उद्योग का ही एक हिस्सा था।
बापु ने चरखे को देश की आत्म निर्भरता और स्वाभिमान का प्रतीक बनाया था !उनके अनुसार अगर हम लोग उपयोगी चीजो को खुद ही उत्पादित कर लेंगे तो हमें किसी की और ताकना नहीं पड़ेगा और हमें दोबारा कोई गुलाम बनाने की कोशिश नहीं करेगा !लगभग 12 साल पहले जब मैंने इंजीनियरिंग में पढने के लिए टेक्सटाइल ब्रांच ली थी तब मुझे पता नहीं था की मैं देश के दुसरे सबसे बड़े उद्योग का हिस्सा बनने जा रहा हूँ. आज मुझे गर्व है कि मैं देश के दोनों प्रमुख उद्योगों - कृषि और वस्त्र उद्योग से जुड़ा हुआ हूँ.बेशक बापू कि इस खाली जगह को कोई भर नहीं सका है और नहीं ही कभी भर सकेगा.लेकिन हम उनसे प्रेरणा तो हमेशा ही ले सकते है ...उन्हें नमन !!
साबरमती आश्रम आकर ऐसा लगता है हम सीधे इतिहास से साक्षात्कार कर रहे हो। गुजरात की राजधानी गांधीनगर और अहमदाबाद शहर दोनों ही विख्यात है। यहाँ आने के लिए एयर, ट्रैन और बस सभी तरह के परिवहन के साधन उपलब्ध है। साबरमती आश्रम जाने के लिए एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और बस डेपो से टैक्सी, BRTS बस, ऑटो सभी उपलब्ध रहते है. रुकने के लिए भी सभी तरह की होटल मिल जाती है।