साथ ट्रिप पर जाकर ही मुझे मेरी गर्लफ्रेंड की सच्चाई मालूम हुई...

Tripoto

मैं 20 साल का था जब पहली बार अपनी गर्लफ्रेंड के साथ ट्रिप पर गया था | मैं खुश भी था, और मुझे चिंता भी सता रही थी | खुशी इसलिए क्योंकि ट्रिप के दौरान मुझे अपनी गर्लफ्रेंड को करीब से जानने का मौका मिलने वाला था | चिंता इसलिए क्योंकि हमारे कॉलेज अलग थे और हम कुछ हफ्तों पहले ही मिले थे, इसलिए हमने एक-दूसरे के साथ 2 घंटे से ज़्यादा समय नहीं बिताया था | लेकिन मुझे क्या पता था कि आगे जो होने वाला है उसके बारे में मैं सोच भी नहीं सकता था |

मुझे पता चला कि मेरी गर्लफ़्रेंड हर 2 घंटे में अपनी किसी दोस्त की बुराई किए बिना नहीं रह सकती | ट्रिप के दौरान ही मुझे ये पता चला कि उसे बैकपैकिंग करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, छोटी-छोटी मुश्किलों में उसके पसीने छूट जाते हैं और सारा दोष वो मुझ पर मढ़ देती है | पूरी ट्रिप के दौरान मैंने उसके साथ तालमेल बैठाने के बहुत कोशिश की, मगर हद तो तब हो गई जब उसने अपने आप को होशियार साबित करने के लिए ज़रा-ज़रा चीज़ों को लेकर लोगों से मोलभाव करना शुरू कर दिया | 50 रुपये के सेब के 45 रुपये में खरीदने के लिए तो उसने ठेले वाले से विश्व युद्ध ही कर लिए था | मैं देख कर हैरान था कि क्या ये वही लड़की है जो ज़ारा के शोरूम में शॉपिंग करते हुए एक जोड़ी मोजों के डेढ़ हज़ार रुपये खुशी-खुशी दे आती है ?

ट्रैवेलिंग करते हुए ही आप किसी की आदतों और विचारों को समझ सकते हो | असल ज़िंदगी में कुछ समय के लिए लोग बनावटी बन सकते हैं, मगर साथ सफ़र करते हुए आपको उनका असली व्यक्तित्व पता चल ही जाता है |

शायद इसीलिए जब मेरी एक दोस्त को उसके परिवार वालों ने शादी के लिए लड़का दिखाया, तो उसने सीधा हाँ या ना बोलने से मना कर दिया| वो चाहती थी कि कोई भी जवाब देने से पहले वो दोनों साथ घूमने जाएँ | उसका मानना है कि घूमते हुए जब वो अंजानी परिस्थितियों का सामना करेंगे, तभी एक दूसरे के बारे में गहराई से जान पाएँगे | जिसके साथ पूरी ज़िंदगी का सफ़र तय करना है, उसे समझने के लिए साथ में एक छोटा सफ़र तो किया जा ही सकता है |

मेरी पहली महिला मित्र के साथ पहली ट्रिप से मुझे बड़ी निराशा हुई | ट्रिप के बाद हमारे रिश्तों में खटास आ गयी | मगर मुझे खुशी इस बात की थी कि हम दोनों ही एक दूसरे के बारे में जान पाए और बिना ज़्यादा समय बर्बाद किए अपने अलग-अलग रास्तों पर निकल गए |

कुछ समय बाद मेरी मुलाकात एक और लड़की से हुई | मगर इस बार मैं उसे ट्रिप पर ले जाने को लेकर उतना उत्साहित नहीं था |

क्या पता फिर से पहली बार की तरह ही हो जाए ?

क्या पता फ्लोरल फ्रॉक पहनने वाली ये छुई-मुई सी लड़की भी सुबह खाकी रंग का कच्छा पहन कर शाखा में लट्ठ चलाने जाती हो ?

अपने खाली समय में माथे पर सिंदूरी कपड़ा लपेट कर सड़कों पे हर- हर मोदी चिल्लाती हो ?

मॉल में शॉपिंग करते हुए 3 क्रेडिट कार्ड की लिमिट ख़त्म कर दे, मगर पहाड़ी लोगों से फलों के दामों को लेकर मोल भाव करती हो ?

कंधे पर कई किलो के शॉपिंग बैग लाद कर दोस्तों के साथ सरोजिनी नगर में सुबह से शाम तक डोल लेगी, मगर रकसैक लेकर चलना इसे भारी लगेगा ?

सोच कर ही रूह काँप जाती है | लड़की बड़ी सुंदर थी और 'रियलिटी चेक' करने का मेरा मन नहीं बन रहा था |

तभी दिल से आवाज़ आई -"भाई तेरे जैसी नहीं होगी तो आज नहीं तो कल, दूरियाँ तो आएगी ही| तो क्यूँ ना लक ही आज़मा लिया जाए"

शिवजी का नाम लेकर हिमाचल वाली वोल्वो में मैने दोनों की दो टिकट बुक करवा दी | इस बार रकसैक मैने हल्का ही लिया था | ट्रेकिंग करने के लिए भी सिर्फ़ 8 किमी की दूरी ही सोच रखी थी | बेस कैंप गाँव में गर्म पानी की सुविधा वाला सबसे बढ़िया कमरा भी बुक किया था | मगर मुझे क्या पता था कि वक़्त कुछ और ही साज़िश रच रहा है |

शाम को आईएसबीटी जाते वक्त ही हमें बीटी हो गयी | सड़क पर किसी स्कॉर्पियो वाले ने एक सैंट्रो वाले को ठोक दिया था और आधे घंटे से उससे अपने बाप के बारे में पूछताछ कर रहा था | सैंट्रो वाले ने हाथ तक जोड़ दिए थे, बोला 'साहब मैं नहीं जानता आपके बाप को, मुझे जाने दीजिए' , मगर स्कॉर्पियो वाले सज्जन को शायद उसी रात अपने खोए बाप की पूछताछ करनी थी | 2 किलोमीटर लंबे जाम से रेंग-रेंग कर किसी तरह हमारी कैब बस स्टैंड पहुँची | कैब में ही मुझे पता चल गया था कि हमारी बस छूट जाएगी | और वही हुआ | वोल्वो निकल चुकी थी |

मैने वापिस जाने के लिए कैब बुक करवाई ही थी कि मेरी महिला मित्र हिमाचल रोडवेज़ बस की दो टिकट ले आई | मैं कुछ देर तो टिकट को देखता रहा और फिर खुद से सोचा...

"ये कोई ख्वाब तो नहीं?"

मुझे सोच में मशगूल देख कर उसने मेरे कदमों में पड़ा मेरा रकसैक उठाया और एक कंधे पर अपना तो दूसरे पर मेरा सैक उठाए बस में चढ़ने लगी | देखकर बड़ा प्यार आया और तुरंत मैने भोले बाबा को धन्यवाद दिया | बिना मेरी समझाइश के दो कसौटीयों पर तो वो वैसे ही खरी उतर गयी थी | अब उसे ग़लत बस से उतारना बाकी था | जल्दबाज़ी में वो मेरठ जाने वाली बस में चढ़ गयी थी |

टू बी कंटिन्यूड....

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