डिप्रेशन या अवसाद या मानसिक तनाव, यह एक ऐसा विषय है जो हर इन्सान ने अपने जीवन में कभी न कभी तो महसूस किया होगा। अगर हम अपने आसपास देखें तो शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसके जीवन में कोई दुःख या चिन्ता और उसके कारण अत्यधिक मानसिक तनाव न हो।
जयपुर के रवि रॉय भी ऐसे ही एक युवा हैं जो कभी डिप्रेशन के शिकार थे। हमारे देश में आमतौर पर लोग किसी भी गम्भीर डिप्रेशन से पीड़ित होने के बाद भी डॉक्टर के पास जाने से बचते हैं लेकिन रवि रॉय ने डॉक्टर की सलाह पर कुछ ऐसी गतिविधियाॅं की जिससे वह डिप्रेशन से बाहर निकल पाए। रवि को घूमने का बहुत शौक़ था; उसने यात्रा के माध्यम से अपने डिप्रेशन को दूर करने और दूसरों को डिप्रेशन के बारे में जागरूक करने के लिए पैदल यात्रा करने का फ़ैसला लिया। रवि ने जयपुर से पदयात्रा की शुरुआत की जोकि कन्याकुमारी पहुॅंचकर पूरी हुई। 2700 कि°मी° की यह विशाल पैदल यात्रा उसने 101 दिनों में पूरी की।
लोक उत्सव:
अपनी यात्रा शुरू करने से पहले अपने अनुभव को याद करते हुए, रवि ने कहा, “जब मैंने घोषणा की कि मैं कन्याकुमारी तक चलूँगा, तो मेरे परिवार के सदस्य थोड़े परेशान हुए। निश्चित रूप से, उनका चिन्तित होना जायज़ था। लेकिन कई लोगों ने मुझे समझाया कि इस समय मुझे पढ़ाई करनी चाहिए या कुछ काम करना चाहिए। 'इस तरह की यात्रा करने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए'... उस समय मैंने ख़ुद से और अपने माता-पिता से कहा कि लोग कितना समय देते हैं, जीवन का अधिकांश समय शराब, सिगरेट, चरस, गांजा, जुआ आदि नशीले कार्यों में व्यर्थ करने में। मैं इनमें से कोई भी काम कभी नहीं करता, मैं पैदल यात्रा से भारत की भूमि पर सबसे दक्षिणी शहर का दौरा करने जा रहा हूँ। इसे “समय की बर्बादी” कैसे कहा जा सकता है।”
देश के विभिन्न प्रान्तों के लोगों के अनुभव:
जयपुर से अपनी यात्रा शुरू करते हुए रवि राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और अन्त में तमिलनाडु राज्य के कई गॉंवों और कस्बों से होते हुए आगे बढ़ा। राजस्थान और मध्य प्रदेश हिन्दी भाषी राज्य हैं इसलिए कहीं भी लोगों से संवाद करने में कोई ख़ास दिक्कत नहीं हुई, लेकिन वहाँ बताया जाता है कि हर बारह गाँव के बाद बोलियाँ बदल जाती है। रवि ने कई क्षेत्रीय भाषाएँ बोलने वाले लोगों से बातचीत की।
रवि ने महाराष्ट्र में एक NGO चलाने वाले दम्पति से मुलाक़ात की जिन्हें उनकी समाज सेवा के लिए केंद्र सरकार द्वारा पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। रवि ने उनसे डिप्रेशन के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष और कन्याकुमारी तक पैदल चलने के अपने दृढ़ संकल्प के बारे में बात की।
रवि 2700 कि°मी° की पैदल यात्रा एक बहुत अच्छी शिक्षा देने के इरादे से कर रहा था इसलिए लोगों ने उसका नाम “घुमन्तू बाबा” रखा। रवि ने इसी नाम से अपनी पहचान बनाई है और विभिन्न सोशल मीडिया पर इसी नाम से काम कर रहे हैं।
रवि भारत के विभिन्न प्रान्तों के सभी प्रकार के लोगों से मिले। रवि ने कहा, "एक बार जब मैं चल रहा था तभी एक रॉल्स रॉय कार पीछे से गुजरी और कार को आगे जाने से रोक दिया। जब मैं उनके पास पहुँचा तो उन्होंने मुझे नोटों का बंडल देना शुरू कर दिया और कहा कि वह बहुत दुखी हैं और मुझे 2700 कि°मी° पैदल यात्रा करते हुए देखकर पूरे दिल से मेरी मदद कर रहे हैं। मैंने शिष्टतापूर्वक इनकार किया और उनसे कहा कि इस यात्रा के पीछे मेरा मकसद कभी भी पैसा कमाना नहीं था! अगर आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो मेरे लिए एक बार का खाना बना दीजिए। उस दिन एक करोड़पति आदमी और मैंने एक साथ बैठकर खाना खाया। इस यात्रा के दौरान मैंने बहुत उदास करोड़पतियों को भी देखा और गरीब लोगों को एक छोटी-सी झोपड़ी में सुखी रोटी खाते हुए भी देखा।"
डिप्रेशन के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी सतर्कता :
रवि ने पूरे 101 दिनों में कभी पानी की बोतल नहीं ख़रीदीं। दूसरों के सामने कोई उसे पानी की बोतल भी दे देता है तो वो बहुत विनर्मता से इनकार करता है और किसी भी ढाबे, चाय स्टॉल या पेट्रोल पम्प इत्यादि पर पानी पीता है। ऐसा करने के पीछे उसका मानना था कि "पैदल यात्रा करने के कारण मुझे दिन में कम से कम 4 से 5 लीटर पानी पीना पड़ता है। अगर मैं दिन की ख़ाली प्लास्टिक की बोतल कूड़ेदान में फेंक दूँ तो मैंने कितना प्लास्टिक बर्बाद किया है! ऐसा करने से बेहतर है कि नल या गिलास से पानी पिया जाए!”
जब तक रवि 2700 किलोमीटर की पैदल यात्रा पूरी करके कन्याकुमारी पहुँचा, तब तक उसका डिप्रेशन दूर हो चुका था। उसने यह यात्रा तो सफलतापूर्वक समाप्त की लेकिन ऐसी यात्राओं वाली उसकी जीवन यात्रा अब भी जारी है। वर्तमान में (नवम्बर 2022 में) रवि रॉय जयपुर से राम मन्दिर अयोध्या की यात्रा कर रहा है।