रोड ट्रिप किसे पसंद नहीं होती है? हर कोई ज़िंदगी में एक बार रोड ट्रिप ज़रूर करना चाहता है। मैं ख़ुद की स्कूटी से कुमाऊँ यात्रा करना चाहता हूँ। पूरा प्लान डायरी पर उतर चुका है लेकिन दिमाग़ में कई प्रकार की बातें चल रही हैं। एक मन कह रहा है कि जब बस और पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घूमा जा सकता है तो स्कूटी से जाने का क्या मतलब है? दिमाग़ में स्कूटी के चोरी होने का भी डर सता रहा है। इन सारी उधेड़बुन को झेलते हुए एक सुबह मैं झाँसी से उत्तराखंड की तरफ़ निकल पड़ा।
कुमाऊँ यात्रा शुरू करने के लिए पहले मुझे उत्तराखंड पहुँचना होगा। उसके लिए मुझे 600 किमी. से भी ज़्यादा की यात्रा करनी होगी। मैंने अपनी उत्तराखंड तक पहुंचने की यात्रा को दो दिनों में बाँट लिया। पहले दिन मैं लखनऊ पहुँचूँगा और अगले दिन उत्तराखंड। पहले दिन का टारगेट लखनऊ है। लखनऊ मेरे घर से 300 किमी. की दूरी पर है। लगभग 1 घंटे की यात्रा के बाद मेरी गाड़ी बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पर चढ़ गई।
बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे
जब से देश में एक्सप्रेसवे बने हैं यात्रा काफ़ी सुगम हो गई है। फोरलेन एक्सप्रेस वे पर ना तो गाड़ियों की भीड़ मिलती है और ना ही शहर के अंदर से होकर गुजरना होता है और रोड भी एकदम शानदार होती है। एक्सप्रेसवे पर गाड़ी चलाने का अपना मज़ा है। बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे झाँसी से ऊरई होते हुए मानिकपुर की तरफ़ गया है लेकिन मैं हमीरपुर की तरफ़ मुड़ गया। कुछ देर में मैं हमीरपुर पहुँच गया।
हमीरपुर के रास्ते में काफ़ी ट्रक मिले। ट्रक की वजह से मैं गाड़ी सही से नहीं चला पा रहा था। दोनों तरफ़ से ट्रक बार-बार आ रहे थे। हमीरपुर से दो नदियाँ गुजरती हैं। पहली बेतवा नदी, जिसे बुंदेलखंड की जीवनदायिनी कहा जाता है और दूसरी यमुना नदी। हमीरपुर से लगभग 1 घंटे की यात्रा के बाद मैं कानपुर पहुँच गया। उत्तर प्रदेश के कई शहरों में मेट्रो का कार्य चल रहा है। इसमें कानपुर शहर भी शामिल है।
लखनऊ
नौबस्ता पहुँचते ही मुझे जाम से दो चार होना पड़ा। कानपुर में मेट्रो और फिर ट्रक की वजह से काफ़ी जाम का सामना करना पड़ा। एक चौराहे से मुड़ने के बाद मैं लखनऊ की तरफ़ बढ़ गया। कानपुर के पुल से गंगा नदी दिखाई दी। गंगा नदी का पानी एकदम काला लग रहा था या फिर मैंने पहले से ऐसा सोच लिया था ऐसा इसलिए लग रहा था। कानपुर से निकलने के बाद भी कानपुर ख़त्म होने में काफ़ी समय लग गया।
कानपुर से लखनऊ की दूरी 85 किमी. है। रास्ते में उन्नाव भी मिला। रास्ता बढ़िया है इसलिए स्कूटी चलाने में ज़्यादा दिक़्क़त नहीं हुई। लखनऊ से कुछ किलोमीटर पहले एक ढाबे पर रूककर घर से लाया हुआ खाना खाया और कुछ देर वहीं पर आराम भी किया। वहाँ से आधे घंटे में मैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ ही रहा। लखनऊ में मैं एक दोस्त के फ़्लैट पर रहा और जमकर आराम किया। मुझे अगले दिन फिर से एक लंबी यात्रा पर निकलना था।
दिन 2
फिर से रोड ट्रिप
पहले दिन 300 किमी. स्कूटी चलाने के बाद अब फिर से इतनी दूर तक गाड़ी चलाने का मन नहीं हो रहा था। ट्रेन से गाड़ी को टनकपुर पार्सल कराने के लिए लखनऊ पहुँच गया। वहाँ जाकर पता चला कि स्कूटी टनकपुर पार्सल नहीं होगी। अब तो मेरे पास स्कूटी को चलाकर ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मैं फिर से एक लंबी रोड ट्रिप पर निकल पड़ा। सुबह-सुबह रोड ख़ाली थी इसलिए लखनऊ से निकलने में टाइम भी नहीं लगा।
लखनऊ से सीतापुर 95 किमी. है। लगभग डेढ़ घंटे गाड़ी चलाने के बाद मैं सीतापुर पहुँच गया। वहाँ से टनकपुर के लिए निकल पड़ा। ग्रामीण इलाक़ों से गुजरते हुए मैं बढ़ा जा रहा था। रास्ता वाक़ई में एकदम मज़ेदार और शानदार है। बीच में कई मिलों के पास बड़ी संख्या में गन्ने से लदे ट्रैक्टर भी मिले। पुरनपुर से टनकपुर जाने के दो रास्ते हैं। पहला पीलीभीत होते हुए और दूसरा शारदा सागर होते हुए। मैंने शारदा सागर वाला रास्ता पकड़ लिया।
उत्तराखंड
शारदा सागर वाले रास्ते में पीलीभीत टाइगर रिज़र्व का गेट भी मिला। यहाँ पर बड़ी संख्या में लोग सफ़ारी के लिए आते हैं। शारदा सागर के किनारे-किनारे चलते हुए मैं एक ऐसी जगह पर पहुँचा। जहां लिखा था, उत्तराखंड की सीमा प्रारंभ। लगभग 600 किमी. की यात्रा के बाद आख़िरकार मैं उत्तराखंड पहुँच गया। खटीमा पहुँचकर सबसे पहले गाड़ी का सर्विस करवाई क्योंकि अभी मुझे और गाड़ी चलानी थी।
गाड़ी सर्विस कराने के बाद मैं कुछ देर बाद खटीमा से टनकपुर पहुँच गया। पहले मैंने सोचा कि टनकपुर में हूी रूकूँगा लेकिन कोई ढंग का कमरा नहीं मिला। इस वजह से मैं चंपावत की तरफ़ चल पड़ा। टनकपुर से 15 किमी. दूर एक जगह है सूखीढांगी। वही पर एक बढ़िया सा होटल में रूक गया। दो दिन में 600 किमी. स्कूटी चलाने के बाद मैं कुमाऊँ में पहुँच गया। अब यहाँ से मेरी कुमाऊँ यात्रा शुरू होने वाली थी।
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