घूमते ही कई बार आप ऐसी जगहों पर पहुँच जाते हैं जिसकी आप कल्पना ही कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश की यात्रा में हमने एक ही ऐसी ही शानदार जगह देखी। कल्पा हमारी कल्पना से भी शांत और खूबसूरत निकला। कल्पा तक पहुँचने की यात्रा हमारी हिमाचल प्रदेश के रामपुर बुशहर से शुरू हुई। हमें हिमाचल आए एक दिन हुआ था लेकिन अभी से मेरा दिल यहाँ लगने लगा था।
हम सुबह 4 बजे उठकर तैयार होने लगे थे क्योंकि रामपुर बुशहर से रिकांगपिओ के लिए सुबह 5 बजे पहली बस निकलती है। हम इसी बस से रिकांगपिओ जाना चाहते हैं। रामपुर बुशहर शिमला जिले में आता है और रिकांगपिओ किन्नौर जिले में पड़ता है। अब हम किन्नौर घाटी की यात्रा पर जाने वाले हैं। तैयार होकर थोड़ी देर में हम रामपुर की सड़कों पर चल लगे। रामपुर पूरी से सुनसान था और अंधेरा भी था। सतलुज नदी के बहने की आवाज हमें साफ-साफ सुनाई दे रही है।
रामपुर बुशहर
हम जहाँ रूके थे वहाँ से बस स्टैंड 1 किमी. की दूरी पर है। बस स्टैंड पहुँचने में हमें आधा घंटे का समय लग गया। रामपुर बुशहर बस स्टैंड पर भी अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। हम वहीं एक बेंच पर बैठ गए। थोड़ी देर बाद एक बस स्टार्ट हुई। पता किया तो वही बस रिकांगपिओ जाने वाली थी। हम अपने सामान के साथ बस में बैठ गए। बस पूरी तरह से खाली पड़ी हुई थी। ठीक 5 बजे बस रामपुर बुशहर से चल पड़ी।
थोड़ी देर बाद हम रामपुर बुशहर से निकलकर पहाड़ी रास्तों पर आ गए। उजाला होने लगा लेकिन जब तक सूरज ना निकले दिन का आना नहीं माना जाता। रामपुर बुशहर से रिकांगपिओ की दूरी 90 किमी. है। बस में हमारे अलावा कुछ और भी लोग आ चुके हैं चारों तरफ बस पहाड़ ही पहाड़ नजर आ रहे हैं। रास्ते में कई गाँव भी मिले लेकिन इतनी सुबह होने के चलते लोग कम दिखाई दिए। हालांकि कुछ लोग टहलते हुए जरूर नजर आए। 7 बजे हमारी बस बधाल नाम की जगह पर रूकी। यहाँ पर एक होटल था जहाँ नाश्ता किया जा सकता है, हमने गर्म-गर्म चाय की चुस्की ली।
किन्नौर वैली
थोड़ी देर बाद बस चल पड़ी। मेरे कैमरे को देखकर बस के कंडक्टर ने अपनी सबसे आगे वाली सीट मुझे दे दी। अब नजारे बेहद शानदार दिखाई दे रहे थे जो ड्राइवर देख रहा था, वही मैं देख रहा था। अब मेरी पिओ तक की यात्रा शानदार होने वाली थी। थोड़ी देर बाद एक गेट आया जिस पर लिखा था, किन्नौर जिले में आपका स्वागत है। इस तरह हमने किन्नौर घाटी में प्रवेश कर लिया।
किन्नौर के शुरू होते ही रास्ता और नजारे दोनों खूबसूरत होने लगे। कंडक्टर ने मुझे बताया कि अब वो सड़क आने वाली है जिसे पहाड़ को काटकर बनाया गया है। थोड़ी देर में काले पहाड़ के नीचे से बस गुजरने लगी। ऐसे लग रहा था कि हम किसी गुफा से गुजर रहे हैं जो एक तरफ से खुली हुई है। इन्हीं खूबसूरत नजारों को देखते हुए हमारी यात्रा बढ़ रही थी। बस में बज रहे पुराने गाने इस सफर को और भी शानदार बना रहे थे।
करचम डैम
बात करते हुए कंडक्टर ने बताया कि अभी कुछ देर बाद करचम डैम आएगा। डैम से पहले दायीं तरफ की ओर पुल गया है। अगर आपको रकचम, सांगला और चितकुल जाना है तो उसी रास्ते से जाना होगा। अगर आपके पास खुद की गाड़ी है तो उस पुल के रास्ते जा सकते है। अगर आप बस से जाना चाहते हैं तो इन जगहों के लिए रिकांगपिओ से आपको बस मिल जाएगी।
थोड़ी देर बाद करचम बांध भी आ गया। अब हम पिओ के रास्ते पर थे। जैसे ही रिकांगपिओ पास आने लगा बर्फ से ढंके पहाड़ हमें दिखाई देने लगे। इस नजारे को देखकर मन एकदम खुश हो गया। जून के महीने में बर्फ देखने को मिले तो क्या ही कहने? कंडक्टर से बात करने पर पता चला कि कल्पा यहाँ से 10 किमी. है। उसके लिए बस रिकांगपिओ बस स्टैंड के बाहर से मिलेगी। पहले हमारा प्लान रिकांगपिओ और बाद में कल्पा घूमने का था लेकिन अब हम कल्पा जाने वाले थे।
कल्पा
थोड़ी देर बाद हम रिकांगपिओ बस स्टैंड पर खड़े थे। सुबह के 9 बजने वाले थे और कल्पा वाली बस 9:30 बजे आने वाली थी। बस में अभी समय भी था और सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। बस स्टैंड के पास में ही एक दुकान में घुस गए। मस्त परांठा खाया और वापस रिकांगपिओ बस स्टैंड के बाहर खड़े गए। थोड़ी देर बाद हिमाचल परिवहन की एक चमचमाती बस आई। हम उसी बस में बैठ गए।
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कंडक्टर ने बताया कि ये बस चुगलिंग तक जाएगी। अब हमारे दिमाग में यही था कि कल्पा कैसे पहुँचेंगे। छोटे-छोटे रास्ते से होकर बस बढ़ रही थी और खिड़की से बर्फ से ढंके पहाड़ों का नजारा शानदार दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर बाद बस चीनी मार्केट में रूकी। कंडक्टर ने हमें बताया कि ये मिनी कल्पा और ऊपर कल्पा है। हम आपस में यही बात कर रहे थे, तभी एक स्थानीय व्यक्ति ने हमें टोका।
उन्होंने बताया कि यही पुराना और असली कल्पा है। ऊपर तो सिर्फ टूरिस्ट प्लेस हैं इसिलए वो ज्यादा फेमस है। कुछ देर में बस आगे चल पड़ी। कुछ ही मिनटों में बस चुगलिंग पहुँच गई। हमारे साथ 20 महिलाएं नीचे उतरीं। सभी महिलाएं पारंपरिक परिधान भी थीं। इन महिलाओं को भी आगे गाँवों में जाना था। उनकी एक गाड़ी आने वाली थी।
कंडक्टर ने उन लोगों से बात करके हमें सुसाइड प्वाइंट तक छोड़ने की बात कर ली। अब हम उस गाड़ी के इंतजार में थे। कई बार मंजिल से ज्यादा खूबसूरत रास्ता होता है। मैं न तो किसी बाइक से था और खुद की गाड़ी से था। हम तो बसों से ही इस हिमाचल यात्रा को कर रहे थे और आगे भी इसी तरह बढ़ने वाले थे लेकिन शिमला जिले से किन्नौर का रास्ते बेहद खूबसूरत है। इस रास्ते पर जाए बिना हिमाचल यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी।
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