" राज मंदिर ज़रूर जाना सर, जयपुर का बेस्ट है |"
"राज मंदिर देखिए, सब भूल जाएँगे |"
"दुनिया का सबसे अच्छा मूवी हॉल है जनाब, राज मंदिर जैसा कोई नहीं|"
ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, जिस भी ट्रैवल गाइड में जयपुर के मशहूर राज मंदिर के बारे में पढ़ा, यही लिखा हुआ पाया | इसलिए इसे देखना तो बनता ही था |
मैं अपने परिवार के साथ इस अजूबे से 10 मिनट की दूरी पर ही ठहरा था | जब मैंने टिकट बुक करने की कोशिश की तो पता चला कि सिर्फ़ रात के शो की टिकट मिल सकती थी | रात के शो में जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था, क्योंकि सुबह के शो बुक थे |
#पहली ग़लती
मैंने रात का शो देखने का प्लान बनाया क्योंकि सुबह के शो बुक थे |
फ़ायदा: 100 रु से शुरू एकदम सस्ती टिकट | मैंने पिछले 10 सालों में इतने कम दाम वाली टिकट नहीं देखी | मैं दिल्ली से हूँ और वहाँ मुझे मनोरंजन के लिए दुगने दाम देने पड़ते हैं | इस लिहाज से देखा जाए तो अच्छा है |
#दूसरी ग़लती
राज मंदिर तक जाने के लिए हमने ऑटो रिक्शा लिया | 7-8 मिनट में पहुँची जा सकने वाली 3 कि.मी. की दूरी के लिए 50 रु ही लगने चाहिए, मगर ऑटो वाले ने मुझसे 80 रु लिए क्योंकि जयपुर में भी दिल्ली की तरह ऑटो वालों का राज है और ये मीटर से नहीं चलते | अब चूँकि मुझे सस्ती टिकट मिल गयी थी इसलिए ये ज़्यादा चुभा नहीं |
पहली नज़र में :
सिनेमा हॉल में एक बार में 1100 लोगों के बैठने की जगह है, इसलिए मैं एक बड़ी सी इमारत को देखने की कल्पना कर रहा था | मगर असलियत में देखने पर ये इमारत ज़्यादा बड़ी नहीं है |
दूसरी झलक:
मैंने इस जगह के बारे में हर पान वाले, टैक्सी वाले, ऑटो वाले और इंटरनेट पर ऑनलाइन रिव्यू पर तारीफ़ सुनी है, इसलिए मुझे लग रहा था कि यहाँ सुरक्षा के इंतज़ाम कड़े होंगे |
पहुँचे तो देखा कि यहाँ कोई महिला सुरक्षा कर्मी नहीं थी | मुख्य द्वार पर केवल एक मर्दाना गार्ड खड़ा है और वो भी लोगों को लॉबी में जाने का रास्ता दिखा रहा था | उसने सुरक्षा के नाम पर हमारी तलाशी लेने के लिए हमें छुआ भी नहीं | नौकरी की तो शर्म करो |
लॉबी:
ये विशाल लग रही थी | छत तो किसी महल के जैसी थी | अंदर की रोशनी काफ़ी मद्धम और आँखों को सुहाती सी थी | बैठने की जगह लाउंज जैसी लग रही थी, मगर ज़्यादा आरामदेह नहीं थी | खाना सस्ता और स्वादिष्ट था | हॉल में ज़्यादातर लोग टूरिस्ट या विदेशी थे |
ऑडिटोरियम के अंदर:
हॉल की दीवारों पर साधारण से फूलों की डिजाइन बनाई हुई थी | बैठने के लिए कुर्सियाँ इस तरह से लगी हैं कि सीटों से बीच घूमना बड़ा आसान है | परदा बेहतरीन है | सीटें बहुत ही बढ़िया तो नहीं हैं, मगर आरामदायक हैं |
हॉल के अंदर माहौल अलग ही था | अंधेरे में लोगों का शोर और सीटियाँ सुनाई दे रही थी |
हॉल की हवा ही कुछ अलग थी, क्योंकि हर साँस के साथ अंदर बैठे लोगों की बुद्धि का स्तर गिरता जा रहा था |
सस्ती टिकट होने से यहाँ लोग भी सस्ते ही आते हैं, ये बात मुझे पता होनी चाहिए थी | ये लोग ऊँची आवाज़ में कमेंट कर रहे थे, जिससे मेरे साथ आई महिलाओं को बड़ा अजीब महसूस हो रहा था | थियेटर में से शराब की बू आ आयी थी, इसलिए हम परेशान थे कि कहीं फिल्म ख़त्म होते ही भीड़ बेकाबू ना हो जाए |
हमारे सीटें एग्ज़िट गेट के पास ही थी, तो जैसे ही फिल्म ख़त्म हुई, हम बिना पीछे मुड़े बाहर भागे | किस्मत से ऑटो वाले बाहर ही खड़े थे (इसमें किस्मत वाली क्या बात है? मगर उस समय थी)|
एक और धोखा:
जब ऑटो वालों को आपकी ज़रूरा की भनक लगती है तो उनके किराए के दाम भी दोगुने हो जाते हैं | मैंने 10 मिनट की उतनी ही दूरी के 150 रुपये दिए |
जयपुर
फाइनल फैसला: राज मंदिर कुछ ख़ास नहीं है | एक टूरिस्ट की नज़र से देखूँ तो ये इसे मिल रही तारिफ के हिसाब से इतना भी बढ़िया नहीं है। तो अपनी उम्मीदें यही सोचकर रखिएगा।
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