राजस्थान का ऐसा हिल स्टेशन जहाँ पहुँचने के लिए हमारे पास रेल के सिवा और कोई तरीका नहीं है।
ये है गोरम घाट। राजस्थान की इकलौती हेरिटेज रेल लाइन पर अरावली की पहाड़ियों में बना स्टेशन जहाँ ट्रैन में जाते हुए मुझे बंगाल के हिल स्टेशन दार्जीलिंग की याद आ गयी।
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सन 1932 में ब्रिटिश राज के अफसरों ने राजस्थान के मेवाड़ इलाके में रेल लाइन बिछाई। ये रेल लाइन मारवाड़ से मेवाड़ को जोड़ती है। मगर इसे बनाना इतना आसान काम नहीं था। अच्छे-अच्छे इंजीनियरों के पसीने छूट गए थे। पहाड़ों में से 2 सुरंगें खोदनी और 172 छोटे बड़े पुल बनाना कोई आसान काम नहीं है।
एक मीटर चौड़ी इस रेल लाइन के अलावा राजस्थान के दार्जिलिंग : गोरम घाट जाने का और कोई साधन नहीं है। सड़क भी नहीं।
यहाँ है गोरम घाट
राजस्थान राज्य के राजसमंद जिले का एक बेहद छोटा रेलवे स्टेशन है गोरम घाट। ये अरावली की पहाड़ियों में बना एक छोटा सा रेलवे स्टेशन है जहाँ से दिन में बस दो ही ट्रेन आती जाती है। 30 जून तक यहाँ जाने के लिए स्पेशल ट्रेन्स चल रही हैं, तो अगर आप में से कोई जाना चाहे तो आपको काफी आसानी होगी। यहाँ ठहरने की कोई जगह नहीं है। इसलिए जब मैनें यहाँ घूमने जाने का प्लान बनाया था तो मुझे इस बारे में बताया गया था कि अगर सुबह की ट्रेन पकड़ कर मैं यहाँ घूमने जाऊं तो शाम को वापसी की ट्रेन में लौटकर ज़रूर आऊं।
यात्रा शुरू हुई
मैं जोधपुर में था जब मुझे गोरम घाट के बारे में पता चला। इंस्टाग्राम पर यहाँ की फोटोज देखी तो मैनें यहां जाने के लिए बैग बाँध लिया।
ई-रेल पर सर्च करने पर जाना कि गोरम घाट तक जोधपुर से कोई सीढ़ी ट्रेन नहीं है। हाँ, अगर मैं मारवाड़ जंक्शन रेलवे स्टेशन पहुँच जाऊं तो वहां से मुझे गोरम घाट की ट्रेन मिल सकती है।
मारवाड़ जंक्शन रेलवे स्टेशन के बारे में मशहूर लेखक रुडयार्ड किपलिंग की किताब द मैन हु वुड बी किंग में लिखा है।
जोधपुर से मारवाड़ जंक्शन, फिर गोरम घाट
जोधपुर से मारवाड़ जंक्शन मुश्किल से 100 किलोमीटर दूर है। यहाँ पहुँचने के लिए वैसे तो जोधपुर से कई ट्रेनें हैं, मगर मारवाड़ जंक्शन से गोरम घाट जाने वाली ट्रेन सुबह 06.10 पर चलती है। इसे पकड़ने के लिए मैं जोधपुर स्टेशन से सुबह तीन बजे वाली ट्रेन में निकल पड़ा। सुबह सूरज निकलने से पहले साढ़े पांच बजे मारवाड़ जंक्शन पहुंचा और 06.10 वाली ट्रेन पकड़ ली।
सुबह 07.50 पर गोरम पहुँच कर मैनें अंगड़ाई ली, और बस्ता उठाये-उठाये ही जोगमंडी झरने की तरफ निकल गया। ये झरना गोरमघाट से आधा किलोमीटर पास ही है। सुबह का स्नान झरने में करने के बाद मुझे ट्रेकिंग के लिए निकलना था।
यहाँ हम ट्रेकिंग करने के लिए गोरखनाथ मंदिर जा सकते हैं। गोरमघाट से सिर्फ ढाई किलोमीटर दूर इस मंदिर का रास्ता काफी संकरा और रोमांचक है। मगर मुझे ये ट्रेक नहीं करना था।
एक बजे तक आस-पास घूमकर मैं फिर गोरमघाट स्टेशन आ गया था। यहाँ से आखिरी ट्रेन 12.50 पर निकल गयी थी। अब इस रुट पर अगली ट्रेन दोपहर के तीन बजे चलने वाली थी। बीच के 2 घंटे ट्रेक बिलकुल सुनसान था। मुझे यही ट्रेक करना था। मैं ट्रेक पर पैदल ही खामली घाट स्टेशन की और निकल पड़ा। गोरम घाट से खामली घाट 14 किलोमीटर दूर है। आराम से भी चलो तो ये रास्ता डेढ़ से दो घंटे में पूरा कवर हो जाता है।
ट्रेक पर टहलते हुए फोटोग्राफी और आसपास की हरियाली को देखते हुए मैं कब खामली घाट आ गया पता ही नहीं चला।
फिर दोपहर 03.50 की ट्रेन में बैठ कर मैं फिर मारवाड़ जंक्शन की और चल दिया। मावली जंक्शन- मारवाड़ जंक्शन का सबसे सुन्दर स्ट्रेच खामली घाट-गोरम घाट-फुलद का है।
शाम को 6 बजे मारवाड़ जंक्शन पहुँच कर मैं फिर जोधपुर की और निकल गया।
ध्यान रखें :
गोरम घाट पर कोई होटल ढाबा नहीं है, तो मैं पाने पूरे दिन का खाना जोधपुर से पैक करवा कर ले गया था। यहाँ रुकने की कोई जगह भी नहीं है तो शाम वाली ट्रेन ज़रूर पकड़नी होगी।
राजस्थान में कई ऐसी जगहें हैं जिन्हें देख कर लगता है जैसे ये राजस्थान का हिस्सा हो ही नहीं सकती। लोग सोचते हैं कि राजस्थान सूखी बंजर ज़मीन है, मगर उन्हें पता नहीं है कि राजस्थान में सभी तरह के नज़ारे देखने को मिल जाते हैं।
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