नन्दा देवी पर्वत: खुफिया परमाणु मिशन से लेकर नरकंकालों तक, इस खूबसूरत जगह में दफ़्न हैं कई राज़!

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भारत एक विशाल और विविधताओं वाला देश है। यहाँ न केवल सांस्कृतिक विविधता है बल्कि प्राकृतिक रूप से भी कदम-कदम पर भिन्नता दिखती है।  यही कारण रहा कि हमारा देश पूरी दुनिया के लोगों को आकर्षित करता रहा है। कई बार ये विविधता कई रहस्यों को जन्म देती है और उन्हें सुलझाना वैज्ञानिकों के लिए भी मुश्किल हो जाता है। दिलचस्प बात है कि ट्रैवलर लोगों के लिए ऐसे देश में घूमना बेहद रोचक हो जाता है जहाँ इतनी वैरायटी मौजूद हैं। वहीं किस्सों और जानकारियों को इकठ्ठा करते हुए यात्रा को मज़ेदार बनाना कौन नहीं चाहता!

रहस्यों से भरपूर नंदादेवी पर्वत भी यात्रियों को खूब आकर्षित करता है। प्राचीन काल से ही इसका धार्मिक महत्व रहा है तो वहीं कई किस्से ऐसे हैं जिससे कि ये भयानक जगहों में शुमार किया जाता है। हम यहाँ आपको नन्दा देवी पर्वत से जुड़े किस्से बता रहे हैं ताकि आप चाहें तो एक साहसी यात्रा का मन बना सकते हैं। साथ ही एक यात्री के तौर पर यहाँ देखने के लिए क्या ख़ास है, इसका भी ज़िक्र कर रहे हैं।

भारत का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत शिखर

नन्दा देवी पर्वत भारत का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है जो कि 7,824 मीटर (25,663 फीट) की ऊँचाई पर सीधा खड़ा है। भारत में कंचनजंघा पर्वत के बाद इसे ही सबसे ऊँचा पर्वत का खिताब मिला हुआ है। उत्तराखंड के गढ़वाल ज़िले में पड़ने वाली ये चोटी भारत-नेपाल के बॉर्डर इलाके में फ़ैली है। पूर्व में गौरीगंगा तथा पश्चिम में ऋषिगंगा की घाटियों के बीच ये पर्वत बेहद सुंदर और अप्रतिम दिखता है।

नन्दा देवी पर्वत की चोटी कठोर चट्टानों से घिरी हुई है लिहाजा यहांँ जाना बेहद दुष्कर काम है। यहाँ ऊँचाई पर एक ओर ऑक्सीजन की कमी हो जाती है तो वहीं हिमनद और दर्रों वाले दुष्कर रास्ते चोटी तक पहुँचने में चुनौती पेश करते हैं।

श्रेय: आशीष ममगई

Photo of नन्दा देवी पर्वत: खुफिया परमाणु मिशन से लेकर नरकंकालों तक, इस खूबसूरत जगह में दफ़्न हैं कई राज़! by Rupesh Kumar Jha

नन्दा देवी चोटी की परिधि 70 मील में फ़ैली हुई है जिसमें पहली बार 1934 ई. में किसी ने दाखिल होने का साहस किया। बता दें कि अंग्रेज़-अमरीकी माउंटेनियर की टीम ने 1936 ई. में चोटी पर विजय हासिल की। इसके 30 साल बाद 1964 में एन. कुमार के नेतृत्व वाले भारतीय टीम ने चोटी पर पहुँचने में सफलता हासिल की। हालांकि इसके बाद कई सफल-असफल कोशिशें चलती रही हैं।

इस पूरे क्षेत्र को नन्दा देवी नेशनल पार्क के रूप में उल्लिखित किया जाता है तो वहीं इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का सम्मान मिला हुआ है। दुर्गम रास्तों के चलते चोटी पर जाने के क्रम में भयंकर परिणाम आते हैं। यही कारण है कि कई घटनाएँ और रहस्य की बातें मीडिया में देखने को मिलती हैं।

रहस्यों से भरा है नंदा देवी पर्वत

1. ग्लेशियर में दबा हुआ है रेडियोएक्टिव डिवाइस

नन्दा देवी के आस-पास ग्सलेशियर में रेडियोएक्टिव डिवाइस के छुपे होने का खुलासा जब हुआ तो सब हैरान रह गए। दरअसल, मामला 1965 के शीत युद्ध का है जब चीन लगातार अपने परमाणु परीक्षण की दिशा में बढ़ता है। ऐसे में अमेरिका सहित कई देश इस योजना के बारे में जानने और इसे सुरक्षा पर खतरे की दृष्टि से देखते हुए विफल करने की कोशिश करते हैं। चीन की इस परियोजना पर नज़र रखने के लिए अमेरिका और भारत नन्दा देवी पर्वत पर एक यंत्र की तैनात किया। बताया जाता है कि 56 किलो वजनी यंत्र और लगभग 10 फिट ऊँचा एंटीना के साथ ही रेडियोएक्टिव एनर्जी जनरेटर, न्यूक्लियर फ्यूल में प्लूटोनियम के 7 कैप्सूल आदि लगाने के क्रम में जब मौसम बेहद खराब हुआ तो लोग वहाँ से सुरक्षित जगह पर आए लेकिन यंत्र और सभी साज-सामान वहीं छोड़ दिया

जानकारी हो कि लगभग 200 लोगों की टीम इस परियोजना पर काम कर रही थी। जब मौसम में सुधार हुआ तो टीम जब यंत्र लगाने के स्थान पहुँची तो उनके हाथ कुछ न लगा। दरअसल, सारा सामान हिमस्खलन में दब गया जो कि निकलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन हो गया। परियोजना अधूरा रहा सो रहा लेकिन हिमखंड में रेडियोएक्टिव डिवाइस दबा होना अपने आप में बड़ा खतरा है। वैज्ञानिकों की मानें तो ये डिवाइस सौ साल तक एक्टिव रह सकता है, जिसकी आयु अभी लगभग 40 साल और है। खुफिया मिशन की जानकारी तब और पुख्ता हो गई जब उत्तराखंड सरकार के मंत्री सतपाल महाराज ने प्रधानमंत्री से इस मामले को गंभीरता से देखने की अपील की। सूचना है कि इस पूरे मामले पर एक हॉलीवुड फिल्म बन रही है।

नरकंकाल वाली रूपकुंड झील

श्रेय: श्विकी

Photo of रूपकुंड झील, Roopkund Trail, Uttarakhand, India by Rupesh Kumar Jha

कर्णप्रयाग से 85 कि.मी. की दूरी पर लोहाजंग से जो रास्ता जाता है, वो आपको रूपकुंड झील तक ले जाता है। ये झील कई रहस्यमय कारणों से चर्चा में बनी रहती है। दरअसल, इस झील में सैकड़ों नरमुंड और कंकाल मिले हैं जो इसको भयानक और मिस्टीरियस बनाते हैं। नरकंकालों के पीछे कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। बताया जाता है कि कन्नौज के राजा जसधवल एक समय अपनी पत्नी रानी बलाम्पा के साथ यहाँ 12 सालों पर होने वाले राजजात यात्रा में शामिल होने आए थे। उनकी पत्नी गर्भवती थी और उनके साथ राजा के सैनिक और अन्य लोग भी यात्रा पर थे।

इस यात्रा के दौरान राजा अपने वैभव का प्रदर्शन करते जा रहे थे। लिहाजा माता नन्दा देवी कुपित हो गई और फिर मौसम विपरीत हो गया। ऐसे में वे लोग वहाँ पूरी तरह फँस गए और ग्लेशियर में सबने दम तोड़ दिया। कंकाल उन्हीं के हो सकते हैं, ऐसा लोग मानते हैं। वहीं लोग इसे जापानी सैनिकों तथा बीते समय हुए युद्धों के सैनिकों के बता रहे हैं।

हालांकि वैज्ञानिकों ने इस पर से परदा उठा दिया है। उनका कहना है कि रूपकुंड झील में मिले नरकंकाल आदिवासियों के हैं और ये कंकाल नौवीं शताब्दी के हैं। बता दें कि कई बार खतरनाक रास्तों से गुज़रते हुए लोग अपनी जान गवा बैठते हैं और अगर उन्हें खोजने में असफलता हाथ लगती है तो समय के साथ उनके कंकाल हिमखंडों में जहाँ-तहाँ दबे हो सकते हैं। ये बर्फ के पिघलने के क्रम में बाहर भी आ जाते हैं।

नन्दा देवी पर्वत का धार्मिक कनेक्शन

उत्तराखंड के निवासी इसे बेहद पावन स्थान मानते हैं। प्रकृति और पहाड़ों के बीच रहने वाले ये लोग नन्दा देवी को माता की तरह पूजते हैं। उनका मानना है कि नन्दा देवी से ही उनकी उत्पत्ति हुई है और वे उनकी जननी या सृजनकर्ता हैं। लोककथाओं की मानें तो नन्दा देवी हिमालय की पुत्री हैं। ऐसा विश्वास है कि शंकर भगवान की पत्नी नन्दा देवी इसी पर्वत पर निवास करती हैं। यहाँ माता का भव्य मंदिर बना हुआ है जिसमें पर्यटकों के साथ-साथ भारी संख्या में तीर्थयात्री पहुँचते हैं।

12 सालों में एक बार राजजात यात्रा

नन्दा देवी के सम्मान में दो तरह के ख़ास आयोजन किए जाते हैं। जो वार्षिकजात और राजजात यात्रा के रूप में जाना जाता है। इसमें मेलों का आयोजन किया जाता है और कई धार्मिक अनुष्ठान रखे जाते हैं। उत्तराखंड राज्य का यह सबसे लोकप्रिय सांस्कृतिक आयोजनों में शामिल है। जानकारी हो कि वार्षिकजात हरेक साल अगस्त-सितम्बर के महीने में आयोजित होती है। वहीं राजजात यात्रा 12 साल में एक बार आयोजित की जाती है जब गाँवों, कस्बों और शहरों से लेकर पूरे छत्तीसगढ़ में उत्सव का माहौल होता है। ये यात्रा कई भागों से होकर गुज़रती है और नन्दा देवी को समर्पित रहती है। पिछला आयोजन 2012 में रखा गया था, लिहाजा अगली राजजात यात्रा 2023 में रखी जाएगी। राजवंश की इष्ट देवी होने के कारण नंदादेवी को राजराजेश्वरी भी कहा जाता है।

कुल मिलाकर नंदा देवी पर्वत क्षेत्र एक साहसिक और धार्मिक यात्रा का मिला-जुला रूप है। नन्दा देवी नेशनल पार्क से इस क्षेत्र में अपनी यात्रा शुरू करना बेहद अच्छा निर्णय हो सकता है। थोड़ी सावधानी रखते हुए ट्रिप प्लान करें तो एक यादगार यात्रा हो सकती है।

कैसे और कब जाएँ?

नन्दा देवी नेशनल पार्क जाने के लिए देहरादून एयरपोर्ट से आसानी से पहुँचा जा सकता है, जो कि लगभग 300 कि.मी. दूर है। रेल से जाएँ तो ऋषिकेश रेलवे स्टेशन पहुँचें। यहाँ से किसी भी वाहन से आसानी से पहुँच सकते हैं। रोड द्वारा जोशीमठ तक आप पहुँच सकते हैं जिसके बाद रोमांचक यात्रा शुरू कर सकते हैं।

चूंकि नन्दा देवी का मौसम बेहद कठिन होता है। सालभर मुश्किलें आती रहती हैं। ठंड और बरसात में जाना परेशानी भरा हो सकता है। अप्रैल से जून का समय यात्रा के अनुकूल माना जाता है।

क्या आप कभी ऐसी साहसिक यात्रा पर निकलें हैं? अगर हाँ, तो हमारे साथ अपने अनुभव यहाँ शेयर करें

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