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दिल्ली के लालक़िले के आसपास से बहुत सारी प्राइवेट बस ऋषिकेश के लिए जाती हैं। हमने भी #RedBus से टिकट बूक किया था रिषिकेश के लिए। रात को 9:30 के आसपास हमारी बस थी लालकिला के पास से, जिसका टिकट ₹900 था। दिल्ली से बस समय से चली और हम चिप्स और केक खाकर सो गए। रात में बस मुज़फ़्फ़रनगर के आसपास एक ढाबे पर रुकी, वहाँ हमने रात का खाना खाया और फिर से बस में सो गए।
अगले दिन सुबह 6 बजे बस ने हमें ऋषिकेश शहर के बाहर बाइपास पर छोड़ दिया क्योंकि वो बस देहरादून जा रही थी।
वहाँ से हमने आटो लिया और पहुँच हुए ऋषिकेश। वहाँ के मार्केट में कुछ दुकान होते हैं जो राफ़्टिंग और कैम्पिंग की सुविधा उपलब्ध कराते हैं । वहाँ एक के पास हम गए जिसने सारे प्लान बताए। ₹2000 प्रति व्यक्ति क़ीमत थी जिसमें ₹1000 रुपया कैम्पिंग (भोजन सहित) एवं ₹1000 राफ़्टिंग का था। कैम्प वहाँ से लगभग 12-13 किलोमीटर था जिसके लिए हमने उसी दुकान से एक स्कूटी किराए पर लिया। वहाँ की अच्छी बात यह है की वहाँ किराए पर टू व्हिलर्स मिल जाते हैं, स्कूटी का किराया ₹500 प्रतिदिन था। स्कूटी से हम कैम्प पहुँचे। खाना खाकर थोड़ी देर आराम किया। राफ़्टिंग के लिए उसी दिन स्लॉट ख़ाली नहीं मिलता अधिकतर ऐसा होता है कि आप अगले दिन आपको राफ़्टिंग करने को मिलेगा लेकिन सबसे अच्छी बात ये थी कि हमें उसी दिन राफ़्टिंग के लिए स्लॉट मिल गया।
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राफ़्टिंग में एक बोट पर 2 लोग तो बोट वाले होते हैं और 8 लोगों को बिठाते हैं 4-4 लोग दोनों तरफ़। राफ़्टिंग करने में बहुत मज़ा आता है। शुरू में तो डर लगता है, जब पहला रैपीड आता है तो क़सम से ऐसा लगता है कि अब तो मैं गया। और पहली बार जब पानी में उतरते हैं तो बाप रे बाप ऐसा लगता है कि आज आख़री दिन है ज़िन्दगी का । लेकिन उसके बाद तो मज़ा आना शुरू होता है। ज़बर्दस्त मज़ा। असली मज़ा तो तब आया जब हमारी राफ़्टिंग ख़त्म होने वाली थी और लक्ष्मण झूला के नीचे हम सब लोग ( मैं मेरे मित्र और अन्य लोग जो चण्डीगढ़ यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे)
बोट से उतर कर पानी पर हिचकोले खाते हुए आगे बढ़ रहे थे और अचानक मुझे एक गाना याद आया। “लग जा गले कि फिर ये हँसी रात हो ना हो” फिर क्या था , सब के सब मेरे साथ गाने लगे गाना। वो शाम एक ऐसी शाम थी जो जीवन में कभी कभी ही आती है।राफ़्टिंग ख़त्म होते होते शाम के 6 बज गए । घाट पर फिर हमने गोलगप्पे खाए और चाय पी। उसके बाद वापिस कैम्प आ गए। राफ़्टिंग करने से थकान बहुत ज़्यादा हो जाता है और पुरा बदन दर्द होने लगता है। शाम को कैम्प पहुँच कर हमने नास्ता किया और फिर कुछ देर बैडमिंटन खेले फिर कुछ देर गंगा के किनारे बैठ कर बात करते रहे, इतनी अच्छी हवा चल रही थी कि वहाँ से उठने का मन नही कर रहा था। फिर कई बार कैम्प वालों ने बोला कि डिनर कर लो आप लोग तो हमने डिनर किया और तुरंत ही सो गए क्योंकि थकान बहुत ज़्यादा थी।
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अगले दिन सुबह मेरी आँख 5 बजे ही खुल गयी और मैं जाकर गंगा के किनारे बैठ गया। क़सम से उस वक़्त ऐसा लग रहा था कि दुनियादारी छोड़कर बस यहीं रह जाऊँ।
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सुबह नाश्ता करके हम 9 बजे वहाँ से निकले और 10 बजे स्कूटी जमा करके बस स्टैंड पहुँचे और वहाँ से दिल्ली के लिए बस पकड़ ली। (यदि आप चाहें तो ऋषिकेश में बंजी जम्पिंग भी कर सकते हैं जिसके लिए ₹3500 प्रति व्यक्ति लगते हैं , लेकिन उसके लिए भी एक दिन पहले ही स्लॉट बूक कराना होता है जो कि हमने नहीं कराया था और उसी दिन के लिए स्लाट ख़ाली नहीं था और ना ही हमारे पास ज़्यादा समय था।) 11 बजे हमें बस मिली जिसने शाम के 5 बजे हमें दिल्ली छोड़ दिया।
यही था मेरा ऋषिकेश ट्रिप। कैसा लगा आप ज़रूर बताना।
क्या आप भी जाना चाहते हैं ऋषिकेश? कमेंट बाक्स में अवश्य बताएँ।