
राधा रानी और भगवान कृष्ण को एक-दूसरे का पूरक माना जाता है। भले ही उनकी शादी नहीं हुई थी। मगर वे दुनियाभर में प्यार का प्रतीक कहलाते हैं। साथ ही राधा रानी को श्रीकृष्ण की आत्म कहा जाता है। बात राधा रानी की करें तो इन्हें बरसाना की रहने वाली माना जाता है। मगर असल में, इनका जन्म बरसाना से करीब 50 किलो की दूरी पर स्थित रावल गांव में हुआ था। इसके साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की तरह वे भी अजन्मीं थी। इनके पिता का नाम श्री ब्रषभानु और माता का नाम कीर्ति था पूर्वजन्म में कीर्ति माता का नाम कलावती था।



कीर्ति माता प्रतिदिन की भांति भोर काल में श्री यमुनाजी में स्नान करके पूजा – पाठ करती थी। और श्रीयमुना जी से कहती थी कि हे ! यमुना मईया मुझे संतान दे दो।
कालांतर के बाद एक दिन जब कीर्ति माता स्नान करके देखती है कि एक कमल पुष्प यमुना नदी में तैरता दिखाई दे रहा था।
उस कमल के पुष्प के चारों ओर एक अनोखा प्रकाश जग मगाता हुआ सोने जैसी चम – चमाहट दे रहा था , तब कीर्ति माता डरने लगी धीरे – धीरे वह बहता हुआ उनके निकट आ पहुँचा।
जैसे – जैसे प्रातः होने लगी वैसे – वैसे ही सूर्य नारायण जी की किरण उस फूल पर पड़ी फूल खिल उठा , उस प्रकाश की चमक हीरे से भी कोट कोटी ज्यादा थी पूरा बृज मंडल बिजली के समान चमक गया तो देखा कि उसमें एक चंद्रमा के समान एक सुंदर छोटी सी कन्या थी। देखने के बाद यमुना मईया प्रकट होकर कीर्ति माता से कहने लगी आप प्रतिदिन संतान प्राप्ति का वर माँगती थी। यह पुत्री आपके लिए आई है। यह वही पुत्री है , राधा जी है , पूर्व जन्म के फल के अनुसार राधा जी प्रकट भई।
कीर्ति माता अत्यंत खुश हुई , और कन्या को लेकर अपने महल पहुंची और ब्रषभानु जी को बताया कि “मुझे इस प्रकार कमल के फूल पर यह कन्या मिली , बहती हुई धारा के विपरीत आयी , इसलिए इनका नाम राधा रख दिया”। तब ब्रषभानु जी बहुत खुश हुए और सभी जगह (बृज) में ढिढोरा पिटवा दिया कि उनके पुत्री हुई है। यह बात सुनकर सभी बृजवासी अत्यन्त प्रसन्न हुए।

11 महीने बाद भगवान कृष्ण का जन्म हुआ
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी राधा के जन्म के ठीक 11 महीने बाद मथुरा में कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म देवकी मां के गर्भ से हुआ। मथुरा, रावल से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तब कंस से बाल रूप श्रीकृष्ण को बचाने के लिए वसुदेव ने टोकरी में उन्हें बिठाकर रात के समय गोकुल में अपने मित्र नंदबाबा के घर पर छोड़ आए। पुत्र रूप में श्रीकृष्ण को पाकर नंद बाबा ने कृष्ण जन्मोस्व धूमधाम से मनाया। उस समय उन्हें बधाई देने के लिए नंदगांव में वृषभान अपनी पत्नि कृति और पुत्री देवी राधा के साथ आए थे। उस समय राधारानी अपेन घुटने के बल चलकर बालकृष्ण के पास पहुंची। फिर श्रीकृष्ण के पास बैठकर राधारानी के नेत्र खुले और उन्होंने अपान पहला दर्शन बालकृष्ण का ही किया था।


यहां सफेद संगमरमर से बना एक छोटा सा मंदिर है जहां राधारानी की शिशु मुद्रा में विराजमान प्रतिमा है। यह कुछ ऐसा है जो सबसे सुंदर देवताओं में से एक है जिसे आपने कभी देखा होगा।
मंदिर के सामने एक सुंदर सुव्यवस्थित उद्यान है जहाँ आप देख सकते हैं कि दो पेड़ आपस में जुड़े हुए हैं। इसमें दिलचस्प बात यह है कि एक पेड़ काला है और दूसरा सफेद। स्थानीय लोगों का कहना है कि ये दोनों पेड़ कोई और नहीं बल्कि श्री राधा और श्री कृष्ण हैं।

यह संपूर्ण व्रजभूमि के गोपनीय स्थानों में से एक है और रावल में बहुत कम श्रद्धालु ही प्रवेश कर पाते हैं।

राधा और कृष्ण गए थे बरसाना
श्रीकृष्ण का जन्म होने के बाद गोकुल गांव में कंस का अत्याचार बढ़ने लगा था। ऐसे में लोग परेशान होकर नंदबाबा के पास पहुंचे। तब नंदराय जी ने सभी स्थानीय राजाओं को इकट्ठा किया। उस समय वृषभान बृज के सबसे बड़े राजा थे। उनके पास करीब 11 लाख गाय थी। तब उन्होंने मिलकर गोकुल व रावल छोड़ने का फैसला किया था। तब गोकुल से नंद बाबा और गांव की जनता जिस पहाड़ी पर पहुंचे उसका नाम नंदगांव पड़ गया। दूसरी और वृषभान, कृति और राधारानी जिस पहाड़ी पर गए उसका नाम बरसाना पड़ गया।
रावल में मंदिर के सामने बगीचे में पेड़ स्वरूप में हैं राधा-कृष्ण
राधा रानी का जन्म स्थान रावल होने पर वहां पर राधारानी का मंदिर स्थापित है। मंदिर के बिल्कुल सामने एक प्राचीन बाग भी बना हुआ। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज भी पेड़ के रूप में राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण वहां पर मौजूद है। बगीचे में एक साथ दो पेड़ बने हुए है जिसमें एक का रंग श्वेत यानि सफेद और दूसरे का रंग श्याम यानि काला है। ऐसे में ये पेड़ राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माने जाते हैं। कहा जाता है कि आज भी राधा-कृष्ण पेड़ के रूप में यमुना नदी को निहारते हैं। साथ ही आज भी इन पेड़ों की पूजा की जाती है।


रावल कैसे पहुँचें?
रावल तक पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता मथुरा होकर है। यह यहां से लगभग 13 किमी दूर है और पर्यटक या अपना वाहन होना सबसे अच्छा है। यदि आप सार्वजनिक परिवहन से आ रहे हैं, तो आपको यहां पहुंचने के लिए 3 स्थान बदलने होंगे।
इसके अलावा, मुख्य मंदिर राजमार्ग से 1.5 किमी अंदर है इसलिए सार्वजनिक परिवहन के माध्यम से यहां जाना थोड़ा श्रमसाध्य है।
यदि आपके पास अपना वाहन है, तो बस Google मानचित्र का अनुसरण करें या यदि नहीं, तो कैब किराए पर लेना सबसे अच्छा है।
मेरा अनुभव -
मै मथुरा के दर्शन करके गोकुल के लिए निकल हि रही थी। तब रास्ते मे रावल गाव लगा। वाह एक जमीन पन निचे गिरा हुवा पट्टी दिखी। तभी हमारे ऑटो ड्राइवर भैया राजेश ने हमे यहा लेके गये। यह जगह् अभी भी लोगो को मालूम नहीं है। लेकिन राजेश भैया के वहाज से हम वहा जा पाये। आप भी वाह जा रहे हो ..तो इस जहग को जरूर भेट दीजिये।