यह मंदिर हैं भीलवाड़ा से करीब 50किमी दूर स्थित "त्रिवेणी मंदिर"। भीलवाड़ा से कोटा जाते हुए रास्ते में पड़ता हैं।एरिया का नाम हैं त्रिवेणी चौराहा,जहां भगवान शिव को समर्पित मंदिर बना हुआ हैं।नाम से तो पता लग ही गया होगा कि यहां तीन नदियों का संगम होता हैं।यह तीन नदियां हैं -बनास ,बेडच और मेनाली नदी।
अब बात आती हैं कि ऐसे त्रिवेणी मंदिर तो कई जगह, कई राज्य में हैं इसमें खास क्या हैं?
खास यह है कि लगभग हर साल मानसून में इस मंदिर का कई फीट तक का हिस्सा पानी में डूब जाता हैं।अभी चार पांच दिन पहले ही इसके कुछ वीडियो मैंने देखे और पहुंच गया लाइव देखने ।पर तब तक पानी उतर चुका था ,हालांकि जो गर्भगृह हैं वो पूरा पानी में डूबा हुआ था।मतलब शिवलिंग के दर्शन नहीं हो पाए।
फिलहाल तो मंदिर के मुख्य चबूतरे तक पानी पहुंचा हुआ था।यहां मछलियां काफी होती हैं,जिन्हे श्रद्धालु चने खिलाते हैं।अभी ये मछलियां काफी पास लग रही थी ।उनके खिलाने के लिए चने डाले जा रहे थे।जहां एक तरफ मछलियां ,डॉल्फिन की तरह पानी से उछल कर कूद रही थी वही दुसरी ओर आस पास के गांव के बच्चे मंदिर के पिल्लर पर चढ़ कर नदी में कूद रहे थे।नदी का बहाव भी अभी काफी तेज था। तेज बारिश आते ही शायद जल्दी ही मंदिर का कुछ फीट तक का हिस्सा वापस डूबेगा।
भीलवाड़ा ,कोटा ,बूंदी ,टोंक , चित्तौड़गढ़ से लोग यहां दर्शन करने आते हैं।थोड़ा ही पास में ही कई झरने और बांध जेसे मेनाल , भड़क महादेव, गोवटा बांध पर लोग नहाते हैं,पिकनिक मनाते हैं।नदी में नहाते हैं,किनारे पर बैठकर सुकून को महुसूस करते हैं,बगुलों को मछली पकड़ते देखते है।आसपास के जिलों से लोग अस्थियां विसर्जन करने भी यहां आते हैं।पहाड़ों के बीच बसे जोगणिया माता धाम में नवरात्रि में पैदल जाते हैं।पास के गांव सवाईपुर का फेमस मावा खाते हैं।मंदिर के पास बने प्रसिद्ध ढाबे पर खाना खाते हैं। त्रिवेणी से ही कुछ 50 से 60 किमी कोटा की ओर जाने पर विश्वप्रसिद्ध "गराडिया महादेव मंदिर" भी आता हैं।
तो देखा कितनी चीजे हैं यहां जो इसे खास बनाती हैं।साथ ही साथ जो लोग कहते हैं कि राजस्थान में पानी नहीं होता, वो इतना पानी यहां और आसपास की जगहों में देखेंगे तो उनके भ्रम भी खत्म हो जाएंगे। मानसून में कोटा ,भीलवाड़ा ,बूंदी आना हो तो घुमक्कड़ों का एक बार इधर आना तो बनता ही हैं।
फोटो: सारे फोटो 4 से 5 दिन पहले के हैं ।केवल यह बोर्ड वाला फोटो एक महीने पुराना हैं।फिल्हाल इस बोर्ड का कुछ हिस्सा भी पानी में डूबा हुआ था।
–ऋषभ भरावा (✍️ चलो चले कैलाश)