पिछली पोस्ट में मैंने बताया था कि कैसे हमारी श्रीखंड यात्रा ना हो पाई, हमारी टेक्सी के आगे ही भूस्खलन हुआ और हम टैक्सी समेत ऐसी रोड में फंस गए थे जिसके दोनो ओर भूस्खलन हुआ ही था। मेरे साथ मेरी मम्मी,बहन और पत्नी थी।
उस भूस्खलन से तो हम बच गए ,पर अब जिस 400 –500 मीटर लंबी सड़क दोनो तरफ से बंद सड़क पर हम खड़े थे वहां भी डर था। डर यह था कि अब उपर से पर पहाड़ ही ना गिर जाएं हम सब पर। ऐसा ख्याल आ रहा था कि दोनो तरफ़ का भूस्खलन कही वापस ना चालू हो जाय और दोनो ही भूस्खलन मिलकर एक होकर बीच के उस क्षेत्र को ना तबाह कर दे जहां हम फंसे हैं। पर अब ना आगे जा सकते थे ना पिछे। पिछे लौटने का मतलब कुछ एक डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना ,अपने सारे लगेज को लेकर और फिर टूटी सड़क ,बहते पानी, गिरे हुए पेड़ों,पत्थरों और मलबों को पैदल क्रॉस करके " जाओ गांव " वापस पहुंचना । पर अब मम्मी को चलने में दिक्कत हो सकती थी ,और सुबह से भूस्खलन में फंस फंसकर हम सब थक चुके थे। हमारी टैक्सी के अलावा जो फंसी हुई 3-4 गाड़ियां और बाइक्स थी उनके ड्राइवर और यात्री अपनी गाड़िया वही छोड़ कर सामान लेकर बंद भूस्खलन के मलबे को पैदल क्रॉस कर वापस पीछे चले गए।
अब हम केवल कुछ ही लोग बचे थे । हमने नीचे खाई की तरफ़ नजर दौड़ाई, नीचे तीन चार मकान दिखे। सोचा , एक बार नीचे जाने वाली पगडंडी से उतरकर , उन मकान मालिकों से रहने के लिए जगह का पता करते हैं। मैं और मेरी पत्नी नीचे गए,कुछ मिनटों में जैसे ही हम पहुंचे तो उन घरों में कोई मिला ही नहीं। तभी एक मकान से एक लेडी निकली। मेरी वाइफ ने उनसे रूम के लिए पूछा । उन्होंने कहा कि उनके पास वाले मकान में शायद कुछ व्यवस्था हो जाए।पास वाला मकान उनके देवर का था ,उन्होंने मेरी फोन पर बात करवाई उनसे और कहा "आप लोग आराम से रुकिए हमारे यहां हमारे साथ,खाना खाइए,रहिए" । मैंने पेमेंट की पूछा तो उन्होंने मना कर दिया बोला "आप मेहमान हैं"..
फिल्हाल रुकने की व्यवस्था और वो भी एक हिमाचली परिवार के साथ छोटे से 5 –7 मकान वाले गांव में।सब कुछ unplanned और unexpected हो रहा था आज तो सुबह से ही। हम खुश हो गए।
हम चढ़ाई कर वापस ऊपर गए। ऊपर लोगों के मुंह से सुना कि अब कम से कम 5 दिन तक यही फंसा रहना होगा। हालांकि हमने ज्यादा ध्यान नही दिया और टैक्सी उस पगडंडी के रफ रास्ते पर जितना उतर पाई, उतरवाया फिर अपने लगेज लेके गांव की ओर उतरे। टैक्सी को जो जगह सेफ लगी, वहां खड़ा किया। लेकिन पहाड़ों का क्या भरोसा।
अब बस प्रार्थना यह थी कि रात को कोई लैंडस्लाइड ना हो जाए, टैक्सी को नुकसान ना हो जाएं। ड्राइवर भी हमारे साथ उस घर में आ गया।
नीचे, वो लेडी हमे मिली। चाबी लाकर उस पास वाले घर का दरवाजा खोला। प्रवेश करते ही एक रूम था , जिसमे सोफा सेट लगा हुआ था , उसी कमरे में एक और कमरा था , जिसमे डबल बेड लगा हुआ था। उन मैडम ने हमको बिठाया और कहा कि आप चारो इन दोनो कमरों में रहना। ओढ़ने के लिए कंबले लाकर डाल दी। ड्राइवर को पास वाले उन मैडम के खुद के मकान में रोका, जहां रात को ड्राइवर , उन मैडम के देवर के साथ ही रुके रहे। जिस मकान में हमको ठहराया उसमे उनके परिवार से कोई नही रुका। उन्होंने बताया कि उपर वाले फ्लोर पर इनका किचन और पूजा भवन हैं।
हमारे बैग्स वगेरह साइड में रखवा उन मैडम ने हमारे लिए चाय बनाई और हमारे पास बैठ गईं। उनका स्वभाव इतना अच्छा था और साथ ही साथ वो मैडम ,हमारे हमउम्र की होने के कारण मेरी बहन और पत्नी से जल्दी घुल मिल गई। उनका एक छोटा बच्चा भी वही था करीब 4 साल का ।नाम था सक्षम। बाते करते करते करीब आधे एक घंटे में तो हम यह भी भूल गए थे कि हम फंसे हुए हैं और हमारी टैक्सी रिस्की जोन में पड़ी हुई हैं। उनके पति और देवर भी घर आ गए थे। उन्होंने खाने के लिए पूछा , हमे ज्यादा भूख नही थी तो हमने हमारे साथ रखा हुआ राजस्थानी नाश्ता किया। उन लोगों को वो नाश्ते की चीजे पसंद आई। सक्षम और उसका एक छोटा दोस्त दोनो तो सबसे ज्यादा खुश थे कि उनके घर कोई मेहमान आए हैं। वो मैडम भी खुशी से अपने रिश्तेदारों को फोन लगा लगाकर बता रही थी कि आज हमारे यहां मेहमान आए हैं।
असल में,सुदूर बसें इन छोटे से गांव में मनोरंजन का कोई साधन होता नहीं, कोई अखबार वखबार आता नही , बाहरी मेहमान तो बरसों में भी ना आए। बस या तो मोबाइल चलाओ या खेत पर काम करो, यही काम करके समय कट जाता हैं। ऐसे समय में कोई नई भाषा बोलने वाले , नई जगह से कोई हमउम्र आकर दोस्त बन जाए तो मजा ही क्या।उन्हें राजस्थान और उधर के कल्चर के बारे में बता कर बहुत अच्छा लग रहा था, बदले में वो हमे हिमाचली कल्चर की शानदार नई बाते बता रहे थे।
उसके बाद हम उनके खेत की ओर गए, क्योंकि शाम को बनाने के लिए सब्जियां तोड़ कर लानी थी। खेत तेज कलकल करती हुई नदी के किनारे था। हमने ककड़ी, नाशपती, शिमला मिर्च, हरी मिर्च, टमाटर, नींबू तोड़े।
शाम को खाना खाते वक्त फिर काफ़ी सारी गपशप हुई।फिर उन्होंने हमारे लिए बिस्तर लगाए और घर को हमारे हवाले छोड़ पास वाले मकान या शायद बाहर की सीढ़ी से उपर रसोई की ओर सोने चले गाए।
बर्फीली तेज हवाओं में, मैं घर के बाहर जंगल के बीच अकेला अकेला खड़ा था ।कुछ कीड़े, मकोड़े, मेंढकों आवाजे लगातार पेड़ पौधों से आ रही थी। घने काले अंधेरे में मेरे आसपास कई जुगनू चमक रहे थे और मैं सोच रहा था कि क्या देश हैं हमारा, आज भी अंजान लोगों की मदद के लिए ये घरवाले दोपहर से ही भागदोड़ी कर रहे हैं वो भी बिना किसी स्वार्थ के। क्यों? क्योंकि वो चाहते हैं कि हम सेफ रहे और उन पहाड़ी लोगों पर हम यात्रियों का हमेशा भरोसा बना रहे।
सोच रहा था कि श्रीखंड कैलाश तो अगले साल भी हो जाएगी वापस। पर क्या कभी ऐसा अपनापन देखने को मिलता पहाड़ो में?
मुझे दुख नहीं थी कि मैं यात्रा नहीं कर पाया । मुझे खुशी थी कि आज कई लाइफटाइम अनुभव हमे मिले और मौत के बहुत पास से गुजर कर हम बच आए।
दिमाग में गाना चल रहा था : 'ऐसा देश हैं मेरा '
लेकिन अभी भी कहानी खत्म कहा हुई हैं, आगे जल्द ही लिखूंगा ।