सलाम नमस्ते केम छू दोस्तों 🙏
प्रयागराज, जिसे कुछ समय के लिए इलाहाबाद भी कहा जाता था, एक छोटा किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण नगर है। भारत के तीन प्रधानमंत्री प्रयागराज नगर के निवासी थे जिनमें दो का जन्म भी प्रयागराज में हुआ था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी इस नगर की महत्वपूर्ण भूमिका थी। अध्ययन क्षेत्र में भी प्रयागराज का नाम, इसके इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कारण प्रसिद्ध है।
अतः जब मैं प्रयागराज की यात्रा पर था, तो मैंने इस नगर की धरोहरों के दर्शन करने के लिए एक आत्म-निर्देशित पदभ्रमण करने का निश्चय किया। उत्तरप्रदेश पर्यटन द्वारा जगह जगह पर लगाई गई सूचना पट्टिकाओं ने इस पदभ्रमण में मेरा भरपूर मार्गदर्शन किया। इन पट्टिकाओं में पदभ्रमण से सम्बंधित प्रत्येक बिंदु के विषय में स्पष्ट जानकारी दी गयी है जिनका पालन करते हुए आप प्रयागराज नगर की विरासती धरोहरों का पूर्ण आनंद ले सकते हैं। तब तक के लिए आईये, मैं अपने इस संस्मरण के द्वारा आपको इस मनमोहक यात्रा पर ले चलता हूँ।
कुंभ मेले के दर्शन के बाद उधर से आते वक्त मैंने अपना पदभ्रमण प्रातः ही आरम्भ कर दिया था। इस समय तक कोई भी स्मारक, संग्रहालय अथवा बगीचे खुले नहीं थे। अतः मैंने अपनी पदयात्रा ऋषि सूर्योदयभारद्वाज आश्रम से आरम्भ की क्योंकि यह प्रातः के साथ ही खुल जाता है।
प्रयागराज धरोहर यात्रा
ऋषि भारद्वाज आश्रम
प्रयागराज के मुख्य मार्ग पर ऋषि भारद्वाज की एक विशाल प्रतिमा है। मार्ग से जाते समय आप इसे अनदेखा कर ही नहीं सकते। इस प्रतिमा के पीछे एक छोटा व मनोरम बगीचा है। यह सुबह ९ बजे खुलता है एवं इसका प्रवेश शुल्क रुपये १०/- है। बगीचे का रखरखाव उत्तम है। बगीचे की भित्तियों पर भित्तिचित्र बने हुए हैं जो भारद्वाज मुनि की कथा कहते हैं।
बगीचे के पास से एक रास्ता प्राचीन आश्रम परिसर की ओर जाता है। इस मार्ग में रंगबिरंगे सुन्दर घर हैं। प्रत्येक घर एक मंदिर सा प्रतीत होता है। एक संकरी गली आपको आश्रम तक ले जाती है जो कई छोटे मंदिरों का समूह है।
तुलसी रामायाण में भारद्वाज आश्रम का उल्लेख है। इसके अनुसार भगवान् राम वनवास मार्ग पर यहाँ होते हुए गए थे, जिसकी स्मृति में उनकी चरण पादुका यहाँ उत्कीर्णित है। कई देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियाँ आप यहाँ देख सकते हैं। यहाँ ऋषि अत्री व उनकी पत्नी अनुसूया, ऋषि याज्ञवल्क्य, ऋणमोचन, पापमोचन, सत्यनारायण एवं देवी के कई रूपों को समर्पित मंदिर हैं। भगवान् शिव यहाँ कोटेश्वर महादेव के रूप में विराजमान हैं।
आश्रम की पुजारिन ने मुझे बताया कि एक समय यह आश्रम गंगा किनारे था। अकबर ने नदी पर बाँध बांधा तथा गंगा को आश्रम से दूर ले गया। किन्तु भक्तगण आश्रम को नहीं भूले। वे जब भी प्रयाग तीर्थ अथवा प्रयाग संगम के दर्शनार्थ यहाँ आते हैं, वे भारद्वाज आश्रम के दर्शन अवश्य करते हैं। जैसा कि आप सब जानते हैं, ऋषि भारद्वाज सप्तऋषियों में से एक हैं जो हम सब के पूर्वज हैं। उन्हें बृहस्पति का पुत्र तथा आयुर्वेद का लेखक माना जाता है
एक समय भारद्वाज मुनि का यह आश्रम एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय रहा होगा। ऐसा माना जाता है कि इसी आश्रम में पुष्पक विमान की निर्मिती की गयी थी।
आनंद भवन
आनंद भवन कदाचित इलाहाबाद का सर्वाधिक प्रसिद्ध स्मारक है। यह नेहरु परिवार का निवासस्थान था जहां जवाहर लाल नेहरु एवं इंदिरा गाँधी का जन्म हुआ था। महात्मा गाँधी जब इलाहाबाद आये थे, तब वे भी यहीं ठहरे थे।
इसका प्रवेश शुल्क अधिक है( रुपये ७०/-) एवं छायाचित्रीकरण की भी अनुमति नहीं दी जाती है। प्रवेश करते ही आप एक सुन्दर दुमंजिला घर देखेंगे जो एक बड़े घास के मैदान के बीचोंबीच स्थित है।
इसके ऊपर छत्री के सामान एक गुम्बद बना हुआ है। ऊपरी तल में नेहरु एवं इंदिरा के कक्ष हैं। एक विशाल पुस्तकालय भी है जहां बैठकें की जाती थीं। पुस्तक प्रेमी होने के कारण मुझे सदैव ऐसे पुस्तकालयों में भरपूर समय बिताने की इच्छा रहता है।
घर के पीछे छायाचित्रों की प्रदर्शनी है जहां मुख्यतः नेहरु-गाँधी परिवारों के चित्र हैं। पुस्तकों की एक सुन्दर दुकान भी है जहां एक बार फिर नेहरु-गाँधी परिवारों से सम्बंधित पुस्तकें ही हैं। इस परिसर में नेहरु तारामंडल भी है। यहाँ की प्रदर्शनी देखने के लिए एक और टिकट खरीदने की आवश्यकता है।
स्वराज भवन
आनंद भवन का पिछला द्वार स्वराज भवन की ओर जाता है। यह मोतीलाल नेहरु का मूल निवासस्थान था। यह आनंद भवन से अपेक्षाकृत अधिक विशाल है। इसका एक अत्यंत छोटा भाग ही खुला है। यहाँ एक छायाचित्र प्रदर्शनी है जो इंदिरा की इस घर में एक नन्ही बालिका से लेकर प्रधान मंत्री बनने तक की यात्रा का चित्रण है। यद्यपि इस स्थान को इंदिरा के जन्मस्थान के रूप में नहीं जाना जाता है। स्वराज भवन का एक अत्यंत छोटा सा भाग ही आप देख सकते हैं तथा इसके लिए प्रवेश शुल्क नहीं है।
इलाहाबाद विश्विद्यालय
इलाहाबाद विश्वविद्यालय आधुनिक भारत के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक है। कई विख्यात महानुभावों के यहाँ शिक्षा प्राप्त की है तथा कईयों ने यहाँ पढ़ाया भी है। इन प्रसिद्ध हस्तियों में हरिवंशराय बच्चन का भी नाम है। विश्वविद्यालय की कई पुरानी इमारतें आपको अंग्रेजी शासन का स्मरण करायेंगी। अधिकतर इमारतें अब भी सक्रिय हैं। विद्यार्थी इन इमारतों में अन्दर बाहर होते दिखाई पड़ते हैं। मैं सोचने लगा कि इन विद्यार्थियों में से कितनों को वास्तव में इस विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक महत्व का अनुमान होगा!
चन्द्र शेखर आजाद उद्यान
रास्ता पार कर दूसरी ओर जाने पर आप स्वयं को चन्द्र शेखर आजाद उद्यान के समक्ष पायेंगे। इस बगीचे को पूर्व में अल्फ्रेड बाग भी कहा जाता था। स्थानीय लोग इसे कंपनी बाग भी कहते हैं।
उद्यान के भीतर चन्द्र शेखर आजाद की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा साक्षी है, किस प्रकार २४ वर्ष की अल्पायु में चन्द्र शेखर आजाद ने १९३१ में भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने अनमोल प्राणों की बलि दे दी थी। चन्द्र शेखर आजाद उन कुछ स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं जिनके कारण आज हम स्वतन्त्र भारत में चैन की सांस ले रहे हैं। आप अपने चप्पल-जूते उतार कर प्रतिमा के समक्ष नतमस्तक होकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं।
आजाद की मूर्ति के आसपास मैंने कई पौधे देखे जिन्हें अनोखे पात्रों में उगाया गया था। पौधों के पात्रों के रूप में गाड़ी के फेंके गए चक्कों का प्रयोग किया गया था। फेंकी गयी वस्तु का यह अनोखा प्रयोग देख मुझे अत्यंत आनंद आया।
इलाहाबाद नगर का सार्वजनिक पुस्तकालय
थॉर्नहिल मेन मेमोरियल, स्कॉटिश सामंती गोथिक पद्धति में बनी इस इमारत का आरंभिक नाम था। १८६३-६४ में स्थापित इलाहाबाद पुस्तकालय को कई स्थानों में स्थानांतरित करने के पश्चात अंततः १८८९ में इस इमारत में स्थायी स्थान प्राप्त हुआ। अब यह राज्य सार्वजनिक पुस्तकालय है। मैं जब इस पुस्तकालय के भीतर चलते हुए इसका अवलोकन कर रहा था तब इसकी भीतरी सज्जा मुझे गिरिजाघर का स्मरण करा रहा था। मैंने जानने की चेष्टा की कि क्या यह इमारत पूर्व में एक गिरिजाघर थी? किन्तु मुझे इसका उत्तर ‘नहीं’ में प्राप्त हुआ। इसका निर्माण पुस्तकालय के लिए ही किया गया था। यद्यपि, बाहर लगी सूचना पट्टिका के अनुसार इस इमारत का उपयोग आरम्भ में संयुक्त प्रांत के विधानसभा कक्ष के रूप हुआ था।
मेरा यह सफर लॉर्ड कर्जन ब्रिज पर आ के खत्म हुआ।
मेरे इस पदयात्रा में मुझे ४ घंटों का समय लगा। इसमें भारद्वाज आश्रम एवं संग्रहालय में बिताये गए समय का भी समावेश है। आप चाहें तो इस पदयात्रा को २ घंटों में भी समाप्त कर सकते हैं। पदयात्रा के लिए सहायक सूचना पट्टिकाओं का पालन अवश्य करें।
कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
अपनी यात्राओं के अनुभव को Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती के सफ़रनामे पढ़ने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।