टाइम मशीन में बैठकर समय के आगे-पीछे जाने का का सपना तो हम सबने देखा है। लेकिन सपना देखते वक्त भी हम इसकी असल हकीकत को जानते भी थे और स्वीकारते भी थे कि यह सब हमारे जीवन में तो कभी पूरा नहीं हो रहा। इसमें कोई दोराय नहीं है कि वर्तमान में मनुष्यों के पास मौजूद वैज्ञानिक समझ के आधार पर निकट भविष्य में भूतकाल की सैर कराने वाली टाइम मशीन जैसे किसी आविष्कार की कोई खास संभावना नजर नहीं आती है।
बाकी, आपको निराश होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि हमारे पास दूसरा जरिया भी है अपने इतिहास की ओर लौटने का और फिर उसको बेहद करीब से देखने-समझने का। इस काम में हमारी मदद कोई और नहीं बल्कि मानव इतिहास से जुड़ी ऐतिहासिक इमारतें स्वयं ही करती हैं। ऐतिहासिक स्मारक दअरसल किसी टाइम मशीन की तरह ही होते हैं। इनके जरिए हम समय के उस दौर को भी जी सकते हैं, जो जीवन के चक्र में सैकड़ो-हजारों साल पीछे छूट गए हैं।
प्रतापगढ़ किले का परिचय
उपर्युक्त उद्देश्य को पूरा करने के लिए आज हम मराठा साम्राज्य के इतिहास से जुड़ी एक बेहद अहम घटना के साक्षीदार बनने वाले स्थान तक का सफर तय करने वाले हैं। हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र के मशहूर हिल स्टेशन महाबलेश्वर इलाके से करीब स्थित प्रतापगढ़ किले की। जमीन से लगभग 3500 फीट ऊंचाई पर मौजूद प्रतापगढ़ किले में ही 10 नवंबर 1659 के दिन छत्रपति शिवाजी महाराज और अफजल खान का ऐतिहासिक आमना-सामना हुआ था।
आदिलशाह की विशाल सेना के दमपर अफजल खान मराठा साम्राज्य को शुरू होने से पहले खत्म करने की चाहत रखता था। लेकिन शिवाजी महाराज ने उसके साथ पहली ही मुलाकात में उसे मौत के घाट उतार दिया। इस हत्याकांड के चलते ही प्रतापगढ़ किला हमेशा हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में अजर-अमर हो गया। इस किले को आप मुख्यतः दो भागों में विभाजित कर सकते हैं। पहला हिस्सा किले का ऊपरी भाग है और दूसरा हिस्सा किले का निचला भाग है। किले के ऊपरी हिस्से को उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया है।
प्रतापगढ़ किले में महाराज की शूरता की कहानी
मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी शूरवीरता के दम पर दुश्मनों के नाक में दम कर रखा था। महाराज एक-एक करते हुए किले जीतते जा रहे थे और मराठा साम्राज्य का बड़ी ही तेज रफ्तार से विस्तार हो रहा था। फिर महाराज के दुश्मनों ने उनका खात्मा करने के लिए अफजल खान को नियुक्त किया। अफजल खान ने छत्रपति शिवाजी महाराज को दोस्ती के बहाने इसी प्रतापगढ़ किले में मिलने के लिए आमंत्रित किया।
मैत्री के नाम पर तय हुई इस मुलाकात में अफजल खान ने अपनी नीचता का प्रमाण देते हुए शिवाजी महाराज को जान से मारने की कोशिश की। हालांकि, अफजल खान के मंसूबों से महाराज पहले ही वाकिफ और होशियार थे। इसलिए उन्होंने पलक झपकते ही पलटवार किया और अपने नुकीले वाघ पंजों के जरिए अफजल खान की पेट से आंतें निकालकर उसकी हत्या कर दी।
प्रतापगढ़ किले पर आज भी आपको अफजल खान की कब्र देखने को मिल जाएगी। इस घटनाक्रम में अफजल के अलावा उसके अंगरक्षक तक को मराठा सैनिकों द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया। असल में शिवाजी महाराज ने जब अफजल खान की हत्या की तभी उसके एक अंगरक्षक ने शिवाजी महाराज पर हमला करने की कोशिश की। लेकिन महाराज के अंगरक्षक जीवा बंदा ने बिजली की तेजी से उसे मार गिराया। तब यह वाक्य काफी प्रचलित हुआ कि 'होता जीवा म्हणून वाचला शिवा।'
इस हत्याकांड के बाद तो फिर छत्रपति शिवाजी महाराज का खौफ उनके दुश्मनों के अंदर पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ गया। इस घटना ने छत्रपति शिवाजी महाराज के दबदबे को एक बड़े स्तर पर कायम करने में बड़ी अहम भूमिका निभाई। मराठा साम्राज्य की नींव स्थापित करने में भी यह ऐतिहासिक घटनाक्रम मील का पत्थर साबित हुआ।
प्रतापगढ़ किले के आकर्षण का केंद्र
1) छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति:- प्रतापगढ़ किले में महाराज की करीब 17 फीट घुड़सवारी वाली कांस्य की प्रतिमा आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इस मूर्ति का अनावरण साल 1963 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं किया था। इस मूर्ति में घोड़े की एक टांग ऊपर है, जो इस बात का सुचक है कि यहां हुई लड़ाई में योद्धा की मृत्यु नहीं हुई थी।
2) अफजल खान का मकबरा:- इस मकबरे का निर्माण शिवाजी महाराज द्वारा अफजल खान की हत्या करने के बाद किया गया। ऐसा माना जाता है कि अफजल खान की हत्या कर उसकी लाश को इसी मकबरे की नींव में दफनाया गया था। जानी-दुश्मन की हत्या के बाद भी उसका मकबरा बनाने के पीछे लोगों को यह संदेश देने था कि- दुश्मन के मर जाने पर दुश्मनी भी खत्म हो जाती है।
3) भवानी माता मंदिर:- इस मंदिर के अस्तित्व में आने के पीछे की कहानी कुछ ऐसी है कि एक बार जब महाराज किसी कारणवश तुलजापुर जाकर भवानी माता के दर्शन नहीं कर पाए। तब उन्होंने प्रतापगढ़ किले में ही आठ भुजाओं वाली भवानी माता का मंदिर तैयार कर दिया। मंदिर में आपको मराठा सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने हथियार के साथ ही छत्रपति शिवाजी की तलवार भी देखने को मिल जाएगी।
4) महादेव मंदिर:- प्रतापगढ़ किले पर मौजूद यह दूसरा सबसे अहम मंदिर है। भवानी मंदिर के ठीक उलट महादेव मंदिर का निर्माण प्रतापगढ़ किले के अस्तित्व में आने से पहले ही हो गया था। इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग को लेकर ऐसी मान्यता है कि यह स्वयंभू शिवलिंग है। इसे त्रिगुणात्मक के रूप में भी जाना जाता है जो त्रिगुण ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक है जो शिवलिंग में अवतरित हैं।
किस महीने का मौसम प्रतापगढ़ घूमने के अनुकूल?
प्रतापगढ़ जैसी ऐतिहासिक इमारत तो साल के बारहों महीने आकर अपने पुरुखों के पराक्रम से प्रेरणा लेने लायक जगह है। बाकी अगर आप पुरूषार्थ के साथ प्राकृतिक सुंदरता को भी आंखों में संजोने की नीयत से आ रहे हैं, तो फिर आपके लिए अक्टूबर से फरवरी का महीना एकदम परफेक्ट होगा। बारिश से मुलाकात के बाद सह्याद्री में स्थित प्रतापगढ़ और आसपास का इलाका हरियाली की ऐसी चादर ओढ़ता है कि इनपर से आपकी नजर नहीं हटती। चारों और हरे-भरे पहाड़, उन्हें अपनी आगोश में लपेटते काले-घने बादल और उन बादलों से बरसते पानी से पैदा हुए झरनों का दृश्य आपकी खुशी को सातवें आसमान पर पहुंचा देगा।
फरवरी महीने के अंत तक यहां के मौसम में ठंडक की ऐसी मिश्री घुली होती है कि अपना रोम-रोम बस बहती हवा के स्पर्श से ही घूमने का चरमसुख हासिल कर लेता है। बाकी बारिश के दिनों में यहां आना इसलिए टालना चाहिए क्योंकि तब हद से ज्यादा बारिश के चलते खूबसूरत लगने वाले नजारे खौफनाक नजर आने लगते हैं। गर्मियों में भी यहां घूमने से बचना चाहिए। क्योंकि उमस और तपिश इतनी ज्यादा होती है कि आपका सफर पानी से प्यास बुझाने के असफल प्रयास में ही खत्म हो जाएगा।
प्रतापगढ़ किले के प्रांगण तक कैसे पहुंचे?
महाराष्ट्र के सातारा जिले में स्थित प्रतापगढ़ किला महाबलेश्वर से करीब 25 किमी दूर स्थित है। अगर आप महाराष्ट्र के बाहर से यहां आ रहे हैं तो फिर आपको सबसे पहले मुंबई या फिर पुणे शहर आना होगा। महाराष्ट्र के इन दो प्रमुख शहर में आप रेल और हवाई दोनों ही मार्ग के जरिए बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं। अगर आप मुंबई आते हैं, तो फिर यहां से प्रतापगढ़ तक पहुंचने के लिए आपको करीब 200 किमी की दूरी तय करनी होगी। और अगर आप पुणे शहर से होकर यहां पहुंच रहे हैं तो ऐसी स्थिति में आपको करीब 150 किमी का फासला तय करना होगा।
बाकी अगर आप महाराष्ट्र में ही रहते हैं, तो फिर राज्य के किसी से भी कोने से आप प्राइवेट या फिर सरकारी सड़क परिवहन बस सेवा के जरिए प्रतापगढ़ किले तक पहुंच सकते हैं। बाकी अपने निजी वाहन के जरिए यहां तक जाने का ऑप्शन उपर्युक्त सभी साधन से ज्यादा उपयुक्त होगा। एक बार यहां पहुंच जाने के बाद आप सुबह 10 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक बगैर किसी एंट्री फीस के किले में घूम सकते हैं।
प्रतापगढ़ घूमने के लिए ठहरे कहां?
अब जैसा कि हमने आपकों बताया कि प्रतापगढ़ किला महाबलेश्वर जैसे नामी-गिरामी हिल स्टेशन से महज 25 किमी ही दूर है; इसलिए रहने का ठिकाना ढूंढना कोई मुश्किल काम नहीं है। असल में किले के आसपास ही रहने के इतने सारे विकल्प उपलब्ध है कि उनमें से कोई एक चुनना ही आपके लिए सिर दर्द साबित हो सकता है। आप अपनी जेब के अनुसार बेसिक से लेकर सभी सुख-सुविधा संपन्न होटल में कमरा बुक कर सकते हैं।
ठहरने के लिए अगर आप निजी होटल की बजाय MTDC यानी महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित होटल का रूख करें; तो फिर प्रतापगढ़ से महज 20 किमी की दूरी पर ही आपको MTDC, महाबलेश्वर मिल जाएगा। आप https://www.mtdc.co/en/stays/mtdc-mahabaleshwar पर जाकर 1000 रुपए से लेकर 3000 रुपए प्रति व्यक्ति खर्च कर अपने लिए एक आरामदायक कमरा बुक कर सकते हैं।
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