हिन्दू धर्म भारत का ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे पुराना धर्म है। इस धर्म के लोगों में कई देवी-देवताओं की कहानियाँ प्रसिद्द है। मगर इनमें एक कहानी है जो अमर हो गयी। वो कहानी जिसका सम्बन्ध कज़ाकिस्तान से लेकर कंबोडिया तक है।
ये कहानी दशरथ के बेटे राम की है, जिसके चरित्र में इतने गुण थे, कि हमने इन्हें भगवान का दर्जा दे दिया।
राम, जो उत्तर भारत के सवर्ण राजा सूर्यवंशियों के कुल में पैदा हुआ, मगर सांवला।
राम, जिसे सबसे बड़ा भाई होने के नाते राजगद्दी मिलनी थी, मगर पिता के दिए वचन का मान रखने के लिए एक झटके में मस्तक का मुकुट अपने छोटे भाई भरत के हवाले कर दिया।
राम, जिसे राजगद्दी का हक़ ही नहीं, बल्कि अपना महल, राज्य, जनता और सुख-सुविधाएँ सभी को छोड़ना पड़ा। अपनी नवविवाहिता राजकुमारी पत्नी सीता को साथ लेकर जंगल में रहना पड़ा।
ऐसे घने जंगल जहाँ खूँखार जानवरों का ही नहीं, बल्कि अधर्मी-कुकर्मी राक्षसों का भी राज था।
एक दिन जंगल से कुटिया की और वापिस लौटते हुए राम देखते हैं कि उनकी पत्नि गायब है। झोपडी में है ही नहीं।
हाथ में सिर्फ तीर-कमान और साथ में छोटा भाई लक्षमण। अब कहाँ ढूंढें ऐसे घने जंगलों में अपनी पत्नी को।
कहाँ गयी होगी ?
कौन उठा ले गया ?
क्या किसी जंगली जानवर ने दबोच लिया?
या कहीं घूमते हुए रास्ता भटक गयी ?
कहाँ ढूंढें? कहाँ जाए ? क्या करे?
राज्य से सेना की मदद भी तो नहीं ले सकता। मृत पिता की आज्ञा का भी तो पालन करना है। 14 साल वनवास, ऋषि-मुनियों की तरह। राज्य से कोई नाता नहीं।
कहीं कोई राक्षस तो नहीं उठा ले गया ?
राक्षस भी कोई मामूली नहीं; वेद-पुराणों का ज्ञाता, शिव-भक्त, लंकापति रावण सीता को उठा ले गया।
कहाँ ?
कुटिया से हज़ारों मील दूर, ऊंची-ऊंची लहरों के थपेड़ों से गरजते समुद्र के परे एक टापू पर, जिसका नाम भी नहीं पता।
राक्षसों का राजा रावण सीता को ज़बरदस्ती उठा कर लंका ले गया।
अब अपनी पत्नी को कैसे लाएं ? दो भाई राक्षसों की फ़ौज से कैसे लड़ें ?
और लड़ना तो दूर, पहले इतनी ज़मीन तो नापा कैसे जाए ? समुद्र को पाटा कैसे जाए ? मुश्किल को साधा कैसे जाए ?
मगर ये सब मुमकिन किया, इसी शख्सियत राम ने।
भालू-बंदरों को सैनिक बनाया। लहरों को पत्थरों के पुल से बाँधा।
दुष्ट पर प्रहार किया।
लंकापति का संहार किया।
और जिस पत्नि के लिए राम ने इस महान काम को अंजाम दिया, जनता की राय को सर्वोपरि मानकर उसे भी छोड़ दिया।
पूरी दुनिया इसके लिए आज भी राम को धिक्कारती है, मगर सीता कहती रही कि राम ही सत्य है।
इस सत्य और मर्यादा की मूरत के देशभर में कई अनोखे मंदिर बने हैं।
आइये आज आपको इनमें से कुछ सबसे बड़े और अनोखे मंदिरों में घुमाते हैं।
राम की गाथा चाहे एक ही क्यूँ न हो, इनके हरेक मंदिर की कहानी बड़ी दिलचस्प और अलग है .....
राम राजा मंदिर मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में श्री राम को भगवान् के रूप में नहीं, बल्कि राजा के रूप में पूजते हैं। ये राजा राम मंदिर दरअसल महल में बना है।
इतना ही नहीं, ये भारत का ऐसा अनोखा मंदिर है, जहाँ मध्य प्रदेश पुलिस के गार्ड राजा राम की सुरक्षा में तैनात होते हैं। और तो और, यहाँ मंदिर में मध्य प्रदेश पुलिस हर रोज़ राजा राम को बन्दूक चलाकर सलामी देती है।
ये मंदिर देखने के लिए आपको ओरछा जाना होगा, जहाँ से सबसे करीबी रेलवे स्टेशन 18 किलोमीटर दूर झाँसी और सबसे करीबी हवाई अड्डा ग्वालियर में है।
कालाराम मंदिर, नासिक
ये धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से राम का काफी महत्वपूर्ण मंदिर है। धार्मिक रूप से ऐसे, कि ये पंचवटी में वहीँ बना हुआ है, जहाँ राम चंद्र कुटिया बना कर रहते थे।
ऐतिहासिक रूप से ऐसे कि सन 1930 में बाबा भीमराव आंबेडकर के नेतृत्व में दलितों ने यहाँ सत्याग्रह किया था। मुद्दा था दलितों को मंदिर में प्रवेश करने की इजाज़त देने की गुज़ारिश। ये सत्याग्रह ५ साल एक चला, जिसमें अपने आप को ऊँचे कुल का और धर्म का रक्षक समझने वाले कई लोगों ने दलितों पर खूब पत्थर और लाठियाँ बरसाई। उस समय तो मंदिर के पण्डे-पुजारियों ने राम को जनता से दूर रख लिया, मगर आज इस मंदिर में सभी लोग अपने राम को देख सकते हैं।
कहते हैं कि कालाराम मंदिर में रखी राम की काले रंग की मूर्ति गोदावरी नदी से निकली थी।
मुंबई से 160 और पुणे से 210 किलोमीटर दूर नाशिक आप रेल, सड़क और हवाई जहाज़ से आसानी से पहुँच सकते हैं।
कनक भवन मंदिर अयोध्या
श्री रामचंद्र की जन्मभूमि अयोध्या में बना ये कनक मंदिर असल में श्रीराम की शादी के समय इनकी सौतेली माता कैकेयी ने सीता माता को मुँह दिखाई में दिया था।
राम-सीता के इस मंदिर के जीर्णोद्धार का काम चलता ही रहता है। कहते हैं कि राम के पुत्र कुश ने इस भवन का नवनिर्माण द्वापर युग में शुरू करवाकर राम और सीता की मूर्तियाँ रखवाई थी।
कनक भवन अयोध्या में है, जो लखनऊ से 135 किलोमीटर दूर और वाराणसी से 210 किलोमीटर दूर है।
भद्राचलम मंदिर, तेलंगाना
ये 400 साल पुराना मंदिर तेलंगाना के खम्मन जिले में गोदावरी नदी के किनारे बना हुआ है, जहाँ वैकुण्ठ एकादशी और राम नवमी पर खूब भीड़
इसके नाम की कहानी काफी दिलचस्प है। कहते हैं कि भद्राचलम का एक तहसीलदार गोपन्ना राजकोष में से पैसे निकाल कर मंदिर बनवाता था। जब राजा को ये बात पता चली तो उन्होंने गोपन्ना को कैद कर लिया। मगर जब राज्य की प्रजा मंदिर में जाकर राजा के गुणगान करने लगी तो गोपन्ना को छोड़ दिया गया।
यही कंचला गोपन्ना 19वीं शताब्दी में महान संत संगीतकार हुए, जिन्होनें राम के चरित्र पर तेलुगु भाषा में खूब गीत लिखे।
हैदराबाद से 300 किलोमीटर दूर इस मंदिर से सबसे करीब भद्राचलम का रेलवे स्टेशन है, और विजयवाड़ा में हवाई अड्डा भी है।
रामस्वामी मंदिर तमिलनाडु
रामस्वामी मंदिर 16वीं शताब्दी में अचुत रामचंद्र नायक के राज में बना हुआ राम का काफी बड़ा मंदिर है।
मंदिर के चारों तरफ पत्थर की महीन खुदाई की शिल्पकारी की हुई है, और दूसरी और तीसरी मंज़िल पर गोपुरम बना है और सबसे ऊपर कलशम रखा हुआ है।
मंदिरों के बारे में पढ़ते हुए गोपुरम के बारे में जान लेना ज़रूरी है। मंदिर के द्वार पर बने बड़े सारे टावर को कहते हैं, जिस पर खुदाई का काम किया होता है। गोपुरम कई मंज़िलों में बने होते हैं और ऊपर जाते-जाते संकरे होते जाते हैं।
क्या आप इनमें से किसी मंदिर में घूमे हैं ?
मैं आपकी यात्रा की तस्वीरें ज़रूर देखना चाहूंगा।
साथ ही अगर आप इन मंदिरों के बारे में कोई और दिलचस्प बात जानते हैं तो कमेंट्स में लिखिए।
आज के लिए इतना ही। हिन्दुस्तान के सबसे लोकप्रिय सम्बोधनों में से एक से इस आर्टिकल का समापन करते हैं।
जय सिया राम