जी हाँ आपने शीर्षक सही पढा। दुनिया में ऐसी बहुत सारी खूबसूरत जगह हैं जहां आप जाना पसंद करते होंगे,पर मैं आपको उस ट्रिप के बारे में बताने जा रहा हूं जहां जाकर आपको घुमने के साथ साथ ऐसे कई लज़ीज़ व्यंजन खाने को मिलेंगे जो पूरे भारत में ही नहीं अपितु विश्व विख्यात हैं। जी हाँ हम बात कर रहे हैं अमृतसर की। जहां घुमने से पेट नहीं भरता, खाने की तो बात ही कुछ अलग है। इसलिए इस पर एक पंथ दो काज मुहावरा स्टीक बैठता है।
चलिए सबसे पहले हम बात कर लेते हैं अमृतसर में मौजूद विश्वविख्यात स्वर्ण मंदिर की, जो देखने में जितना अद्भुत लगता है उतना ही अद्भुत है मन्दिर का इतिहास।
अमृतसर का स्वर्ण मंदिर केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का मशहूर मंदिर है। ये सिख धर्म के मशहूर तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर का ऊपरी माला 400 किलो सोने से निर्मित है, इसलिए इस मंदिर को स्वर्ण मंदिर नाम दिया गया। बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन इस मंदिर को हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है। कहने को तो ये सिखों का गुरुद्वारा है, लेकिन मंदिर शब्द का जुडऩा इसी बात का प्रतीक है कि भारत में हर धर्म को एकसमान माना गया है। यही वजह है कि यहां सिखों के अलावा हर साल विभिन्न धर्मों के श्रद्धालु भी आते हैं, जो स्वर्ण मंदिर और सिख धर्म के प्रति अटूट आस्था रखते हैं।
स्वर्ण मंदिर अमृतसर का इतिहास
अमृतसर का इतिहास करीब 400 साल पुराना है। यहां गुरूद्वारे की नींव 1577 में चौथे सिख गुरू रामदास ने 500 बीघा में रखी थी। अमृतसर का मतलब है अमृत का टैंक। पांचवे सिख गुरू गुरू अर्जन देव जी ने इस पवित्र सरोवर व टैंक के बीच में हरमंदिर साहिब यानि स्वर्ण मंदिर का निर्माण किया और यहां सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ आदि ग्रंथ की स्थापना की। श्री हरमंदिर साहिब परिसर अकाल तख्त का भी घर माना जाता है।
एक और संस्करण में बताया गया है कि सम्राट अखबर ने गुरू रामदास की पत्नी को भूमि दान की थी, फिर 1581 में गुरू अर्जुनदास ने इसका निर्माण शुरू कराया। निर्माण के दौरान ये सरोवर सूखा और खाली रखा गया था। हरमंदिर साहिब के पहले संस्करण को पूरा करने में पूरे 8 साल का समय लगा। ये मंदिर 1604 में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ था। हालांकि कई बार स्वर्ण मंदिर को नष्ट किया गया, लेकिन 17वीं शताब्दी में महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया द्वारा इसे फिर से बनवाया गया था। मार्बल से बने इस मंदिर की दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है, जो देखने में बहुत ही सुंदर लगती हैं।
क्या खाएँ?
कहा जाता है कि अगर आप घूमने-फिरने और खाने-पीने के शौकीन हैं, तो आप किसी भी परेशानी को आसानी से झेल सकते हैं। तनाव को कम करने के लिए घूमना और खाना दोनों ही बहुत कारगर साबित होते हैं।
1. मक्की की रोटी-सरसों का साग
अमृतसर आए चटौंरों नें अगर मक्के की रोटी और सरसों साग का मजा नहीं लिया तो समझिए आपकी अमृतसर की ट्रिप अधूरी मानी जाएगी। अमृतसर ही नहीं बल्कि पूरे पंजाब में ये डिश काफी मशहूर है। एक बार चख कर जरूर देखें।
2. छोले-कुल्चे और लस्सी
अमृतसर में छोले भटूरे से ज्यादा छोले कुल्चे मशहूर है। लच्छेदार प्याज और हरी चटनी के साथ आपको छोले कुल्चे हर गली और नुक्कड़ पर मिल जाएंगे। साथ ही यहां की लस्सी लाजवाब होती है।
3. स्वर्ण मंदिर का लाजवाब लंगर
गुरु का लंगर में गुरुद्वारे आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खाने-पीने की पूरी व्यवस्था होती है। यह लंगर श्रद्धालुओं के लिए 24 घंटे खुला रहता है। खाने-पीने की व्यवस्था गुरुद्वारे में आने वाले चढ़ावे और दूसरे कोषों से होती है। लंगर में खाने-पीने की व्यवस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की ओर से नियुक्त सेवादार करते हैं। वे यहाँ आने वाले लोगों (संगत) की सेवा में हर तरह से योगदान देते हैं।
अनुमान है कि करीब एक लाख लोग रोज यहाँ लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। सिर्फ भोजन ही नहीं, यहां श्री गुरु रामदास सराय में गुरुद्वारे में आने वाले लोगों के लिए ठहरने की व्यवस्था भी है। इस सराय का निर्माण सन 1784 में किया गया था। यहां 228 कमरे और 18 बड़े हॉल हैं। यहाँ पर रात गुजारने के लिए गद्दे व चादरें मिल जाती हैं। एक व्यक्ति की तीन दिन तक ठहरने की पूर्ण व्यवस्था है।
स्वर्ण मंदिर में जाने से पहले ध्यान रखें ये बातें:
1) अपने सिर को रूमाल, डुपट्टा या स्कार्फ से ढंक सकते हैं।
2) घुटनों से ऊपर की कोई भी ड्रेस पहनना यहां अलाउड नहीं है।
3) यहां फोटोग्राफी केवल परिक्रमा तक ही अलाउड है, इसके बाद अंदर फोटो खींचने के लिए विशेष तौर से परमिशन लेनी होती है।
4) अगर आप पहली बार स्वर्ण मंदिर जा रहे हैं तो आपको पहले इंफॉर्मेशन ऑफिस और सेंट्रल सिख म्यूजियम देखने के लिए कहा जाएगा। यहां आपको गुरूद्वारे से जुड़ी सभी जानकारियां मिलेंगी।
स्वर्ण मंदिर में दर्शन करने का सही समय
स्वर्ण मंदिर में दर्शन के लिए आपको लंबी लाइन में लगना ही होगा। जल्दी दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग जैसी कोई चीज यहां नहीं है। फिर भी आप लंबी लाइन से बचना चाहते हैं तो सुबह 4 बजे से लाइन में खड़े हो सकते हैं, आपका नंबर जल्दी आ जाएगा। मंदिर में दर्शन सुबह 3 बजे से रात 10 बजे तक होते हैं। वीकेंड्स पर मंदिर के दर्शन अवॉइड करें। क्योंकि लंबी लाइन के चलते आपका नंबर तीन से चार घंटे में भी नहीं आएगा। इसलिए अगर आप अच्छे से दर्शन करना चाहते हैं तो शनिवार-रविवार को छोड़कर किसी भी दिन आ जाएं।
कैसे पहुंचे स्वर्ण मंदिर?
अगर आप दिल्ली से अमृतसर ट्रेन या बाय रोड जा रहे हैं, तो लगभग 9 घंटे का समय लगेगा जबकि फ्लाइट से जाने में मात्र 1 घंटे का समय खर्च होगा। गोल्डन टैंपल के लिए जा रहे हैं तो यहां राजासांसी एयरपोर्ट है। अमृतसर से यहां आने में 15 मिनट का समय लगता है।
अगर आप दिल्ली से बाय रोड जा रहे हैं तो ग्रैंड ट्रंक रोड द्वारा अमृतसर पहुंच सकते हैं। इसके साथ ही आप हाईवे से जा रहे हैं तो करनाल, अंबाला, खन्ना, जलंधर और लुधियाना से होते हुए भी अमृतसर पहुंच सकते हैं। बता दें कि यहां से पाकिस्तान की दूरी केवल 25 किमी है।
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