भारतीय मुद्रा पर बनी इमारतें, जिनके पीछे छिपा हैं ऐतिहासिक महत्व, जानिए यहाँ

Tripoto
23rd Jan 2021
Photo of भारतीय मुद्रा पर बनी इमारतें, जिनके पीछे छिपा हैं ऐतिहासिक महत्व, जानिए यहाँ by Smita Yadav
Day 1

जैसा कि आप सभी जानते हैं,भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है।भारत के हर ऐतिहासिक भवन के पीछे कई कहानियां एवं समृद्ध विरासत जुड़ी हुई है। भारत की भवन निर्माण शैली राजपूत व मुग़ल शैलियों का मिश्रण कही जाती है। भारत की रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए जाने वाले करेंसी नोटो पर भी कई ऐतिहासिक महत्व की इमारतों को दिखाया गया है। जो अपने आप में काफी प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों के रूप में जाने जाते हैं क्या आज से पहले आपने कभी भी इस बात को ध्यान दिया हैं? कि भारतीय करेंसी नोटो पर चित्रित इमारतें आखिर क्यों दिखाई गई हैं? इनका महत्व क्या हैं? ऐसे ही काफी सवाल मेरे मन में भी एकत्र हुए और मैंने तुरंत गूगल बाबा की मदद से अपने इन सवालों को सुलझाया। और आज मैं जो भारत की करेंसी पर चित्रित हैं। उन जगहों के बारे में तथा उनके पीछे क्या महत्व हैं ये सब इस आर्टिकल में बताऊंगी ताकि मेरी ही तरह यात्रा में रुचि रखने वाले लोगो को इन बेहतरीन जगहों कि विशेषताओं का पूर्ण अनुभव हो सकें तो आइए जानते हैं।

कोणार्क सूर्य मंदिर

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ओडिशा में स्थित कोणार्क का सूर्य मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। ये मंदिर भारत की प्राचीन धरोहरों में से एक है। इस मंदिर की भव्यता के कारण ये देश के सबसे बड़े 10 मंदिरों में गिना जाता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर से लगभग 23 मील दूर नीले जल से लबरेज चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को पूरी तरह से सूर्य भगवान को समर्पित किया गया है इसीलिए इस मंदिर का संरचना इस प्रकार की गई है जैसे एक रथ में 12 विशाल पहिए लगाए गये हों और इस रथ को 7 ताकतवर बड़े घोड़े खींच रहे हों और इस रथ पर सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। मंदिर से आप सीधे सूर्य भगवान के दर्शन कर सकते हैं।

रिजर्व बैंक द्वारा जारी दस रुपये के नोट पर कोणार्क का सूर्य मंदिर चित्रित किया गया है। ओडिशा के स्वर्णिम त्रिभुज में आने वाला यह सूर्य मंदिर तेरहवीं सदी में नरसिंहराव प्रथम के काल में बनाया गया था। सूर्य मंदिर का पहिया इस नोट में दिखाया गया है। कहा जाता है कि सूर्य के रथ में सात घोड़े सप्ताह के सात दिन हैं। पहियें में बारह जोड़े आरे हैं जो साल के महीने हैं तथा चौबीस आरे दिन के घंटे हैं। तो जब भी आप ओडिशा आए तो इस भव्य धरोहर स्थल को जरूर देखें।

एलोरा की गुफाएं

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एलोरा गुफा भारत के महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद जिले में स्थित यूनेस्को की एक विश्व विरासत स्थल है। एलोरा गुफा औरंगाबाद के उत्तर-पश्चिम में लगभग 29 किलोमीटर और मुबई से लगभग 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यह गुफा दुनिया के सबसे बड़े रॉक-कट मठ-मंदिर गुफा परिसरों में से एक है। जिसमें बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म से सम्बंधित स्मारकों की विशेषता और कलाकृति देखने को मिलती है। एलोरा की सभी गुफाओं का निर्माण राष्ट्रकूट वंश द्वारा करवाया गया था।

रिजर्व बैंक द्वारा जारी बीस रुपये के नोट पर एलोरा की गुफाओं को चित्रित किया गया है। जो भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करेगा। तो जब भी आप महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद आए तो एलोरा की गुफाओं की भव्यता का आनंद ज़रूर लें।

हम्पी का रथ

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हम्पी रथ मंदिर का इतिहास 16 वी शताब्दी से सामने आया था। हम्पी, कर्नाटक की तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित है। और इस पत्थर के अनोखे रथ का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव ने करवाया था। जब राजा कृष्ण देव ओडिशा में युद्ध करने गए थे तो कोणार्क के सूर्य मंदिर में स्थित रथ को देखकर उन्होंने अपने साम्राज्य में भी उसी प्रकार का पत्थरों से निर्मित रथ का निर्माण करने का दृढ संकल्प ले लिया। फिर उन्होंने हम्पी में इस पत्थर के रथ का निर्माण करवाया। ये प्राचीन गौरवशाली साम्राज्य विजयनगर का अवशेष है। इसे यूनेस्को ने भारत में स्थित विश्व विरासत का दर्जा दिया है। हम्‍पी में विजयनगर साम्राज्य के तमाम अवशेष मौजूद हैं। इसीलिए इतिहास और पुरातत्व के लिहाज से हम्पी एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है।

रिजर्व बैंक द्वारा जारी 50 रुपए का जो नोट है, उस पर हम्‍पी के रथ का चित्र है। भारत के प्रसिद्ध स्थलों में से यह मंदिर भी यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में जाना जाता है। भारत सरकार ने हम्पी रथ मंदिर को 50 रूपए के नोट पर भी अंकित किया है। जब भी आप कर्नाटक जाए तो हम्पी रथ मंदिर की सुंदरता के दर्शन ज़रूर करें।

रानी की वाव

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रानी की वाव भारत के गुजरात राज्य के पाटण ज़िले में स्थित प्रसिद्ध बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) है। 23 जून, 2014 को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया। यह बावड़ी एक भूमिगत संरचना है जिसमें सीढ़ीयों की एक श्रृंखला, चौड़े चबूतरे, मंडप और दीवारों पर मूर्तियां बनी हैं जिसके जरिये गहरे पानी में उतरा जा सकता है। यह सात मंजिला बावड़ी है जिसमें पांच निकास द्वार है और इसमें बनी 800 से ज्यादा मूर्तियां आज भी मौजूद हैं। यह बावड़ी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत संरक्षित स्मारक है।

रिजर्व बैंक द्वारा जारी किये गये सौ रूपये के नये नोट पर रानी की वाव को देखा जा सकता है। वाव गुजराती में बावडी को कहा जाता है। यह रानी की वाव गुजरात के पाटन में स्थित है जिसे ग्यारहवीं सदी में वहाँ की रानी उदयमति द्वारा अपने पति भीमदेव प्रथम की स्मृति में बनवाया गया था। यहाँ भगवान विष्णु और पार्वती की भी कई कलात्मक मूर्तियां बनायी गयीं हैं। तो जब कभी भी आप गुजरात आएं रानी की वाव ज़रूर आएं और इसकी खूबसूरती का आनंद लें।

सांची का स्तूप

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मध्य प्रदेश राज्य की छोटी सी जगह सांची, इस जगह का नाम आपने जरूर सुना होगा। भोपाल से 46 किलोमीटर और बेसनगर और विदिशा से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांची रायसेन जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है। यहाँ स्थित सांची स्तूप पूरी दुनिया में मशहूर है, जिसे देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। किसी भी देश की ऐतिहासिक इमारतें वहाँ के इतिहास को बयां करती है। ऐतिहासिक इमारतें ऐसी होती हैं, जो दुनियाभर के लोगों को उस देश की ओर खींच लाती है और सांची स्तूप भी उन्हीं इमारतों में से एक है। हांलाकि ऐतिहासिक महत्‍व रखने के बावजूद यह स्तूप उन ऐतिहासिक इमारतों में शुमार नहीं है, जो ताजमहल या कुतुबमीनार की तरह पॉपुलर हैं। मगर इस वजह से इसकी अहमियत को कम करके आंकना सही नहीं होगा, क्‍योंकि यह स्तूप इन इमारतों से कुछ कम नहीं है। युनेस्को ने साल 1989 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया है।

हाल ही में रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किए गए दो सौ रुपये के नोट पर सांची के स्तूप का चित्र बनाया गया है मध्य प्रदेश में स्थित इस स्तूप को सम्राट अशोक ने बनवाया था। इस स्तूप के चार द्वार हैं जिन्हें तोरण द्वार कहा जाता है। इन द्वारों पर भगवान बुद्ध से सम्बंधित कथाएं चित्रित की गई हैं। इस स्तूप को यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल किया गया है। तो जब भी आप सांची जाएं तो सांची के स्तूप की भव्यता को ज़रूर देखने जाए।

लाल किला

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राजधानी दिल्ली में स्थित भारतीय और मुगल वास्तुशैली से बने इस भव्य ऐतिहासिक कलाकृति का निर्माण पांचवे मुगल शासक शाहजहां ने करवाया था। विश्व धरोहर की सूची में शामिल दुनिया के इस सर्वश्रेष्ठ किले के निर्माण कार्य की शुरुआत मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा 1638 ईसवी में करवाई गई थी। शाहजहां, इस किले को उनके द्वारा बनवाए गए सभी किलों में बेहद आर्कषक और सुंदर बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने 1638 ईसवी में ही अपनी राजधानी आगरा को दिल्ली स्थानांतरित कर लिया था, और फिर तल्लीनता से इस किले के निर्माण में सहयोग देकर इसे भव्य और आर्कषक रुप दिया था। यह शानदार किला दिल्ली के केन्द्र में यमुना नदी के तट पर स्थित है, जो कि तीनों तरफ से यमुना नदीं से घिरा हुआ है, जिसके अद्भुत सौंदर्य और आर्कषण को देखते ही बनता है। भारत के इस भव्य लाल किले का निर्माण काम 1648 ईसवी तक करीब 10 साल तक चला। वहीं इसके आर्कषण और भव्यता की वजह से इसे 2007 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया था और आज इसकी खूबसूरती को देखने दुनिया के कोने-कोने से लोग इसे देखने दिल्ली जाते हैं।

नए 500 रुपये के नोट पर आप लाल किला देख सकते हैं।लगभग दो सौ सालों तक मुग़लों का निवास रहे इस किले को किला - ए-मुबारक भी कहा जाता था। लाल किला भारत के इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है।सत्रहवीं सदी में बने इस किले से ही देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति राष्ट्रीय पर्वों पर झंडारोहण करते हैं और देश को संबोधित करते हैं। तो जब भी आप दिल्ली जाए तो इस बेहतरीन ऐतिहासिक धरोहर के दर्शन ज़रूर करें।

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