बहुत घूम लिया उत्तराखंड लेकिन क्या आपने हिमालय के लंदन फोर्ट के बारे में सुना है?

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कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो बनते-बनते बीच में बिखर जाती हैं। इनका अधूरा रह जाना फिर किसी नए पहलू को जन्म देता है जो उन्हीं पुराने अवशेषों से बना होता है। कितना खूबसूरत होता है यूँ ही टुकड़ों से कहानियाँ बुनते जाना इसका असल मतलब आपको ऐतिहासिक इमारतें को देखकर मालूम चलता है। किले, महल, हवेलियाँ इन सभी जगहों पर गौरवशाली इतिहास की गाथाएँ आज भी जिंदा हैं। इनमें से कुछ जगहों पर जाना आज भी मुमकिन है। भारत के इतिहास को संजोए ऐसा ही एक खूबसूरत किला है उत्तराखंड का पिथौरागढ़ फोर्ट जिसको लंदन फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है।

किले का इतिहास

कहा जाता है इस किले का निर्माण 1789 के आसपास पीरू अलियास पृथ्वी गुस्सैन ने करवाया था। उस समय इस इलाके पर चांद साम्राज्य के पृथ्वी गुस्सैन का राज था जिन्हें इस किले की नींव रखने का श्रेय दिया जाता है। पिथौरागढ़ पर उस समय गोरखा साम्राज्य के शासकों का राज था। इस किले का नाम पिथौरागढ़ किला राजा पिथौरा चंद के नाम पर रखा गया था। हालांकि किले का नाम इस शहर के नाम के बाद रखा गया था।

1815 में नाम पड़ा लंदन फोर्ट

1815 में कुमाऊँ मण्डल पर अंग्रजों द्वारा किए गए हमले के बाद गार्डनर के राज में इस किले का नाम लंदन फोर्ट रख दिया गया था। 1881 के बाद से 30 सालों तक इस किले का इस्तेमाल महज एक ऑफिस की तरह किया जाता था। 1910 से 1920 के बीच में अंग्रेजों ने इस किले में मरम्मत कार्य भी करवाया था। लेकिन अब इसको उत्तराखंड के महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल के रूप में ढाल दिया गया है। इस किले के जर्जर हो चुके हिस्सों को संगरक्षित करने के लिए लगातार कोशिशें की जा रही हैं जिससे हमारे देश की मूल्यवान धरोहर को बचाया जा सके।

गोरखा शासकों की रचना

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श्रेय: पिथौरागढ़

इस किले का निर्माण 1791 में गोरखा शासकों द्वारा करवाया गया था। लगभग 6.5 नली क्षेत्रफल में फैले इस किले को इतनी मजबूती से बनाया गया है कि किले पाए गोलियों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। किले की सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर दीवार भी बनाई गई है। किले की दीवार में दुश्मन पर हमला करने के लिए 152 छेद भी बनाए गए हैं जिससे किले की रक्षा की जा सके। आश्चर्य वाली बात ये है कि ये सभी छेद कुछ इस तरह बनाए गए हैं कि किले को किसी भी तरह का नुकसान ना हो। किले में अलग-अलग जगहों पर मचान बनाई गई हैं जिसमें सैनिकों के लिए बैठकर और लेटकर हथियार चलाने के लिए पर्याप्त जगह है। इस किले का निर्माण पत्थरों को इस्तेमाल करके करवाया गया है जिसकी वजह से किले को मजबूती मिलती है।

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किले में दाखिल होने के लिए दो दरवाजे भी हैं। लोगों का कहना है इस किले में एक समय पर गोपनीय दरवाज़ा भी लेकिन आज वो दरवाजा कहीं नहीं दिखाई देता है। इस दरवाजे का इस्तेमाल अपातकालीन स्थिति में किया जाता था। इस किले में कुल दो मंजिल हैं और कुल मिलाकर 15 कमरे हैं। इनमें से कुछ कमरों की बनावट नेपाली आर्किटेक्चर से भी मेल खाती है। इस किले में गोरखा सैनिकों के रहने के लिए काफी जगह थी। किले में कमरों के साथ-साथ तहखाने भी हैं जिनका इस्तेमाल भंडारघर के रूप में किया जाता था। केवल यही नहीं इस किले में कारावास और न्याय भवन जैसी जगहें भी शामिल थे।

इस किले में सैनिकों के लिए सभी संभव सुविधाओं का भी बढ़िया इंतेजाम किया गया था। इस किले में रहने वालों को कभी पानी की कमी ना हो इसके लिए यहाँ एक कुआँ भी खोदा गया था लेकिन बाद में इसको बंद करके यहाँ पेड़ लगा दिया गया था।

प्रथम विश्व युद्ध का भी उल्लेख

इस किले में अंदर एक शिलापट भी लगा हुआ है जिसपर प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए योद्धाओं के नाम लिखे हुए हैं। इस शिलापट पर लिखी हुई जानकारी से मालूम चलता है कि युद्ध में कुल 1005 सैनिकों ने भाग किया था जिसमें से 32 सैनिकों ने अपने प्राण का बलिदान दे दिया था।

एंट्री फीस और टाइमिंग

इस किले में जाने के लिए हर व्यक्ति को 10 रुपए एंट्री फीस के तौर पर देने होते हैं। यदि आपके साथ बच्चे हैं जिनकी उम्र 5 साल से कम है तो उनके लिए आपको टिकट लेने की कोई जरूरत नहीं है। किले के इतिहास और रख रखाव में लगने वाले खर्च को देखते हुए ये कीमत देने में आपको कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। इस किले को घूमने के लिए आपके पास सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक का समय है। आप सप्ताह के किसी भी दिन लंदन फोर्ट घूमने आए सकते हैं।

कैसे पहुँचें?

पिथौरागढ़ उत्तराखंड में स्थित खूबसूरत जगह है। यहीं पर स्थित है लंदन फोर्ट। फोर्ट आने के लिए आपको सबसे पहले पिथौरागढ़ आना होगा। पिथौरागढ़ आने के लिए आपके पास तीन विकल्प हैं। आप फ्लाइट, ट्रेन और सड़क मार्ग से आराम से पिथौरागढ़ आ सकते हैं।

फ्लाइट से: यदि आप फ्लाइट से आना चाहते हैं तो सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पिथौरागढ़ का नैनी सैनी हवाई अड्डा है। पिथौरागढ़ एयरपोर्ट से किले तक पहुँचने के लिए आपको लगभग 7 किमी. का सफर तय करना होगा। आप एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर फोर्ट आ सकते हैं। ये सफर पूरा करने के लिए आपको 20 से 25 मिनट का समय लग सकता है।

ट्रेन से: ट्रेन से आने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर है। टनकपुर रेलवे स्टेशन किले से 148 किमी. की दूरी पर है। आप बस या टैक्सी लेकर किले तक पहुँच सकते हैं।

वाया रोड: पिथौरागढ़ आने के लिए सबसे सही तरीका है बस। उत्तराखण्ड पर्यटन की बस लेकर आराम से पिथौरागढ़ पहुँचा जा सकता है।

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