हर अनजान जगह, अनजान सफर कुछ नया दिखाती है। कहते हैं कि अगर आपको पहाड़ों की तबियत जाननी है तो ट्रेकिंग कीजिए। ट्रेकिंग में बहुत कुछ देखने को मिलता है लेकिन अगर आप ग्लेशियर को देखना चाहते हैं तो पिंडारी ग्लेशियर ट्रेक सबसे सही सफर होगा। मेरे हिसाब से तो पहाड़ों की यात्रा करने के लिए अप्रैल और जून सबसे सही वक्त होता है। उस समय पहाड़ों पर तरह-तरह के फूल खिले रहते है जिनकी खुशबू से पूरी घाटी झूम उठती है। सबसे ज्यादा रोडोडेंड्रन भी इसी समय खिलते हैं। अगर आपको रोडोडेंड्रन के बारे में नहीं पता है तो ये एक प्रकार की झाड़ी होती है। जिसमें बड़े-बड़े फूल होते हैं जो बेहद खूबसूरत होते हैं। सीजन के खत्म होते ही पेड़ भी बैंगनी और गुलाबी रंग का चादर से ढँक जाते हैं। इसलिए मै हर साल इसी समय पहाड़ों में जाती हूँ। प्रकृति और फूलों के बीच के इस जादुई एहसास के लिए इस साल मैंने पिंडारी ग्लेशियर ट्रेक करने का मन बनाया।
पिंडारी ग्लेशियर ट्रेक की प्लानिंग?
मेरा भाई और मै दोनों ही घुम्मकड़ हैं। छुट्टियों में हम हमेशा कहीं न कहीं घूमने जाते हैं। पिंडारी ट्रेक का मन बनाया तो हमारा एक दोस्त भी साथ चलने को तैयार हो गया। पिंडारी एक लम्बा ट्रेक जरूर है लेकिन कठिन नहीं है। ये बात मुझे पहले से पता थी क्योंकि कुछ साल पहले मेरे कुछ दोस्त भी यहाँ ट्रेकिंग करने गए थे। किसी भी जगह पर जाने से पहले सबसे जरूरी होती है, प्लानिंग। हमने भी इस ट्रेक की प्लानिंग शुरू कर दी। सबसे पहले हमने धिरेन से बात की जो खाती गाँव में रहता है और इस ट्रेक के रास्ते को अच्छी तरह से जानता है। सारी प्लानिंग के बाद ये तय हुआ कि धिरेन हमारा गाइड होगा और ट्रेक में हमारे साथ रहेगा। हम अब ज्यादा देर नहीं करना चाहते थे इसलिए हम जल्दी से बागेश्वर के लिए निकल पड़े।
हमने हल्द्वानी से अपनी यात्रा सुबह 8 बजे शुरू की। हल्द्वानी से बागेश्वर पहुँचने में 5-6 घंटे लगते हैं। हमने जल्दी इसलिए भी निकले क्योंकि ये हमारी रोड ट्रिप भी थी। अगर आप पहाड़ों में रोड ट्रिप पर जाते हैं तो पहाड़ आपको कई बार रोक ही लेते हैं। हल्द्वानी से बागेश्वर के बीच हम पहली बार हम कैंची धाम पर रूके। यहाँ पर आप नींबूपानी और लंच कर सकते हैं। अगर आपको यहाँ भूख नहीं लगती है तो गरमपानी जगह पर लंच कर सकते हैं और रास्ते में पड़ने वाना डोकने वाटरफाॅल देखने के लिए हम एक बार फिर से रूके। सुयलबड़ी के पास का ये झरना बहुत ही सुन्दर था। हरे-भरे पहाड़ों के बीच से गिरते इस झरने को देख कर ही हम समझ गए कि हमारा आगे का सफर कितना शानदार और सुंदर होने वाला था।
बागेश्वर पहुँचे तो हमारा स्वागत मूसलाधार बारिश से हुआ। मानो बादलों को हमारे आने का संदेश मिल गया था। मौसम के आगे किसकी चलती है इसलिए हमने बागेश्वर में ही रूकना ठीक समझा। अगले दिन की सुबह हमारे लिए किसी तोहफे से कम नहीं थी। पिछली रात की बारिश ने पूरी सड़क को गुलमोहर के फूलों से भर दिया था। हम रुक कर उसे देखना चाहते थे लेकिन हमारे पास समय कम था और दूरी ज्यादा। इसलिए बिना देर किए भराड़ी स्टैंड से टैक्सी की और आपनी आगे की यात्रा पर निकल पड़े। चारों तरफ गेंहू से भरे खेत इस रास्ते पर एक अलग ही चमक बिखेर रहे थे। सफर का अगला पड़ाव था भराड़ी से खरकिया तक का रास्ता।
पिंडारी रूट पर ये आखिरी सड़क है जहाँ तक गाड़ियाँ जाती हैं। विनायक वो जगह है जिसके बाद आप बाकी दुनिया से कट जाएँगे यानी कि इस जगह के बाद मोबाइल नेटवर्क नहीं आते हैं। बागेश्वर से खरकिया पहुँचने में लगभग 4 घंटे लगते हैं और फिर खरकिया से शुरू होती है ट्रेकिंग। खरकिया से खाती तक की दूरी 5 किलोमीटर है। इस आसान ट्रेक का रास्ता बलूत और रोडोडेंड्रन के पेड़ों के बीच से होकर गुजरता है। आपकी पूरी ट्रेकिंग में केवल इसी रास्ते पर चटख लाल रंग के रोडोडेंड्रन फूल देखने मिलेंगे। इसके आगे इनका रंग और आकार दोनों बदल जाते है।
खाती से द्वाली( 14 किमी.)
पिछली रात हमने केएमवीएन गेस्ट हाउस में गुजारी। ये गेस्ट हाउस खाती के ऊपरी हिस्से में है। दिन भर के लंबे सफर के बाद थकान ऐसी थी कि हमने खाना-पीना वहीं किया। कम सामान लाने का फायदा भी है। आपको ऐसे गेस्ट हाउस हर थोड़ी दूर पर मिल जाएँगे। तीसरे दिन की शुरुआत पिंडारी ब्रिज की ओर चलने से हुई। थोड़ा चलने के बाद ही हमें जो नजारा देखने को मिला वो अब तक का सबसे खूबसूरत नजारा था। पिंडारी नदी के उस पार एक रास्ता दिखाई दे रहा था लेकिन 2003 में आई बाढ़ की वजह से अब वो रास्ता पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था।
जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, हमारा गाइड हमें हर जगह के बारे में कुछ न कुछ बता रहा था। यहां के लोगों का भी कहना था कि बाढ़ के पाँच साल बाद भी कफनी ग्लेशियर ट्रेक का रास्ता टूरिस्ट के लिए नहीं खोला गया है। देवदार के जंगल को पार करने के बाद आखिरकार हम उस जगह पर पहुँच गए जिसके लिए हमने ये पूरा सफर तय किया था। पिंडारी नदी और द्वाली की कैंपसाइट हमारे ठीक सामने थी। बाढ़ से हुई तबाही चारों तरफ एकदम साफ दिखाई दे रही थी। प्रकृति कितनी घातक हो सकती है यह हमने द्वाली का हाल देख कर जाना। कफनी ट्रेक का रास्ता यहीं से बदल जाता है।
द्वाली से फूर्किया( 7 किलोमीटर)
चौथे दिन भी खाने के लिए आलू और नाश्ते के लिए परांठे ही मिले। जब यहाँ पहुँचे थे उसी दिन फुर्किया के लिए निकल सकते थे लेकिन बारिश की वजह से द्वाली में ही रूकना पड़ा। खैर, अगले दिन मौसम पूरी तरह से साफ था और हम फुर्किया के लिए चल पड़े। द्वाली से फुर्किया का दूरी कम जरूर है लेकिन अब तक के सफर की सबसे कठिन चढ़ाई थी। चढ़ाई के समय हमारा साथ रोडोडेंड्रन फूलों ने एक बार भी नहीं छोड़ा। हर थोड़ी दूर चलने के बाद एक नए रंग का रोडोडेंड्रन फूल हमारे स्वागत के लिए तैयार खड़ा मिलता। शुरु में मिले लाल रोडोडेंड्रन और ये फूल पूरी तरह से अलग थे। इन्हे देख कर नंदा देवी सैंक्चुरी की याद आ गई।
केएमवीएन वालों ने हर थोड़ी दूर पर बैठने के लिए बेंच और शेड बना रखें हैं। यहाँ से चंगोश पहाड़ एकदम साफ दिखाई पड़ते हैं। हरे मैदान के बीच पिंडारी नदी बहती हुई दिखाई देती है और उसके पास से निकलते झरने भी बेहद खूबसूरत लगते हैं। इन्हीं सबके बीच हमें मोनाल पक्षी मिला जो उत्तराखंड का राष्ट्रीय पक्षी है। जिन्हें पहले जंगली मुर्गी समझा जाता था।
फूर्किया से जीरो प्वॉइंट और वापस द्वाली
अगले दिन की सुबह देखने लायक थी। चंगोश पहाड़ पर गिरती सूरज की किरणों ने मानो कुछ जादू कर दिया था। पहाड़ों का सूर्योदय हर कोई देखना चाहता है। इस हसरत को पूरा करने के लिए हम सुबह-सुबह जल्दी ही कैंप से निकल गए। सूरज अभी पूरी तरह से निकला नहीं था लेकिन हमें सनराइज देखने की इतनी जल्दी थी कि इस घाटी में हम जितना तेज हो सके बढ़ते चले जा रहे थे।
जब हम बाबा मंदिर पहुँचे उजाला होने लगा था। थोड़ी देर बाद हम जीरो प्वाइंट पहुँच गए। जीरो प्वाइंट समुद्र तल से 3,660 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से हमने वो नजारा देखा जिसके लिए कई दिनों की यात्रा की थी। बर्फ से ढँके पहाड़ और उन से निकलते छोटे-छोटे झरने। इतने सारे पहाड़ों के बीच हम नंदा देवी, पंवली द्वार और मैक्तोली को ही पहचान पाए।
पिंडारी ग्लेशियर नंदा देवी के दाहिने तरफ है। समुद्र तल से नंदा देवी की ऊँचाई 7,816 मीटर है जिसकी वजह से ये भारत की सबसे ऊँची चोटी है। पिंडारी ग्लेशियर 3 किलोमीटर लंबा और 1.5 मीटर चौड़ा है। जीरो प्वॉइंट से ग्लेशियर 2 किलोमीटर दूर है। आपके और ग्लेशियर के बीच एक बहुत बड़ी दरार है जिसमें कलकल करती पिंडारी नदी बहती हुई दिखाई देती है।
द्वाली से खरकिया और वापस बागेश्वर
इस सफर का आखिरी दिन हमारे लिए सबसे लंबा दिन होने वाला था। हमें जीरो प्वाइंट से द्वाली जाना था और रात टीआरएच में बितानी थी। हमारे पास बहुत कम सामान था इसलिए हमे आज ही द्वाली से खाती होते हुए खरकिया पहुँचना था। हमने अपनी यात्रा सुबह 5 बजे शुरू कर दी। उस समय रोशनी कम जरूर थी लेकिन हमारे चलने के लिए काफी थी।
अभी हम द्वाली से पाँच किलोमीटर ही चले थे कि मेरे भाई को बांस की झाड़ियों में भालू का बच्चा दिखाई दिया। तब मन में डर बैठ गया कि बच्चा यहीं तो उसकी माँ भी आसपास होगी। आगे हमें एक चाय की दुकान मिली जो अभी बंद थी लेकिन हम थोड़ी देर के लिए वहीं रूक गए।
दुकान से थोड़ा आगे ही बढ़े और पुल पर पहुंचे तो अचनाक ऊपर से हमारे सामने एक बड़ा-सा पत्थर आ गिरा। ऊपर देखा तो हमें एक भालू दिखाई दिया। बिना कुछ सोचे-समझे हमने वापस उस चाय की दुकान की ओर दौड़ लगा दी। हमने चाय वाले को अपनी पूरी कहानी बताई तो वो अपने साथ अपने कुत्ते को भी लेकर आया। हम डर से काँप रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ चाय वाला एकदम शांत खड़ा था। भालू यहाँ रोज के मेहमान हैं लेकिन हमारे लिए ये इस सफर का सबसे रोमांचक पल था।
भालू के डर से आगे के सफर हमने धीरे-धीरे तय किया। खाती पहुँचकर हमने दाऊ के यहाँ चाय पी और खरकिया के लिए निकल पड़े। हमारी किस्मत अच्छी रही की दोपहर को भी हमें गाड़ी मिल गई लेकिन उसके लिए हमें दो गुना किराया देना पड़ा। बागेश्वर पहुंचे तो बारिश फिर से हमारा स्वागत कर रही थी।
जरूरी जानकारीः अगर आप भी इस ट्रेक पर जाने का मन बना रहें हैं तो आप जयकुनी गाँव में खिंपाल सिंह और आनंद सिंह से 7579454213 और 7830125563 पर संपर्क कर सकते हैं। आप खाती गाँव के पास जयकुणी में इनके खूबसूरत से अन्नपूर्णा कॉटेज में भी रह सकते हैं।
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