पाताल भुवनेश्वर
क्या आप लोग जानते हैं दिल्ली से लगभग 480 कि॰मी॰ दूर उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट नगर से 14 कि॰मी॰ दूरी पर स्थित है पाताल भुवनेश्वर। यह एक प्राकृतिक गुफा है जिसमे भगवान शिव, 33 करोड़ देवी-देवताओं के साथ विराजमान है जो भगवान शिव की स्तुति करते हैं। ये गुफा जमीन से लग्भग 90 मीटर नीचे है और 160 वर्ग मीटर क्षेत्र में हैं।
देवदार के वृक्षो और पहाडों से घिरी ये गुफा अपने आप में ही आश्चर्यजनक हैं। चांदी की तरह चमकती हुई हिमालय की चोटियाँ - नन्दादेवी, पंचचूली, पिंडारी, ऊंटाधूरा जिनसे नज़र ही नही हटती हैं। यहां का शांत वातावरण आपके शहर की सारी थकावट दूर कर देगा।
गुफा के अंदर जाने के लिए 3 फीट चौड़ा और 4 फीट लंबा मुंह बना हुआ है। संकरे रास्ते से होते हुए, लोहे की जंजीरों का सहारा लेकर, लगभग 90 सीढ़ियों से नीचे उतरना पड़ता है। हम सब बहुत संभल के चल रहे थे क्योंकि पत्थरों से बनी दीवारों से पानी रिस्ता रहता है जिसके कारण यहां के जाने का रास्ता बेहद फिसलन भरा है।
थोड़ा नीचे जाते ही पत्थरों पर शेषनाग के फनों की तरह आकृति उभरी नज़र आती है। कहते है कि इन्ही फनों पर धरती टिकी है।
गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत पर गाय के एक थन की आकृति नजर आई। यह कामधेनु गाय का स्तन है, कहा जाता हैं कि सतयुग मे इस स्तन से दूध की धारा बहती थी। कलियुग में इससे पानी टपक रहा है।
गुफा के अंदर गणेशजी का कटा हुआ शिश हैं। जैसा की हम सब जानते हैं कि भगवान शिव ने क्रोध और अनजाने में गणेशजी का शिश धड़ से अलग कर दिया था, बाद में भगवान गणेश को गज का सिर लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया था, वही मस्तक भगवान शिव ने पाताल भुवनेश्वर में रखा हैं, जिस के ऊपर 108 पंखुड़ी वाले ब्रह्म कमल से पानी की बूँद टपकती रहती हैं।
गुफा में चार युगो के प्रतीक के रूप में चार पत्थर रखे हैं। इसमें से एक पत्थर जिसे कलयुग का प्रतीक मानते हैं वो धीरे धीरे बड़ रहा हैं। कहा जाता हैं जिस दिन ये पत्थर ऊपर दीवार को छु जायेगा, उस समय कलयुग का अन्त हो जायेगा। गुफा में मुड़ी गर्दन वाला गरूड़ एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखाई देता है। कहते है शिवजी ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन मरोड़ दी।
गुफा में केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के शिलारूप (मूर्तियां) हैं। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। हम इस जीभ पर रेंगते हुए थोड़ा आगे तक गये पर घबराहट की वजह से वापिस भी आ गये।
पत्थरों से बना कल्पवृक्ष भी इस गुफा में है जिसके नीचे खड़े होकर हमने प्रार्थना की। कहते हैं यहां सारो मनोकामना पूर्ण होती हैं।
ऐसी बहुत सी किद्वन्तियां और उसके साक्ष्य यहाँ मिलते हैं। यहाँ गुफा में आकर हमें लगा के हम अलग ही दुनिया में आ गये हैं। भगवान के प्रति आस्था और मजबूत हो जाती है। यहां आना कोई कठिन भी नही हैं। यह नगर प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। टनकपुर, चंपावत, पिथौरागढ़, लोहाघाट से गंगोलीहाट जाने के लिए बस और टैक्सी उपलब्ध है। रास्ता बहुत ही मनमोहक हैं।
रुकने के लिये यहां कुमाऊं मंडल विकास निगम टूरिस्ट गेस्ट हाउस हैं। जो सभी जरुरी सुविधाएँ उपलब्ध कराता है। पिथौरागढ में भी रुकने के लिये कुछ गेस्ट हाउस हैं।
कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।
अपनी यात्राओं के अनुभव को Tripoto मुसाफिरों के साथ बाँटने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती के सफ़रनामे पढ़ने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।