झारखंड भारत का एक बहुत ही खूबसूरत राज्य है पर पर्यटन की दृष्टि से ये अभी भी उतना विकसित नहीं है।पर अगर बात पर्यटन स्थलों की करे तो आपको बता दें कि इस राज्य पर प्रकृति की अद्भुत कृपा है।चारो तरफ़ आपको प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नजारा देखने को मिलेगा।यही नहीं अध्यात्मिक आस्था का केंद्र भी रहा है यह राज्य।ऐसी ही एक जगह के बारे में आज हम आपको बताएंगे जो न सिर्फ पर्यटन की दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है।हम बात कर रहे है झारखंड के पारसनाथ पहाड़ी की जोकि अद्भुत नजारों के साथ ही साथ जैन धर्म के आस्था का केंद्र भी है।तो आइए जानते है इस खूबसूरत पर्यटन स्थल के विषय में।
पारसनाथ पहाड़
पारसनाथ पहाड़ झारखंड के गिरिडीह जिले में हैं, जो समुद्र तल से लगभग 1365 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं।पारसनाथ पर्वत को सम्मेद जी शिखर के नाम से भी जाना जाता है।इस पर्वत का नाम जैन धर्म के 23वे तीर्थकर पार्श्वनाथ के नाम पर रखा गया है।ऐसी मान्यता है की जैन धर्म के 20वे और 24वे तीर्थकर को यह मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।यह स्थान न सिर्फ जैन धर्म के लोगो के लिए आस्था का केंद्र है बल्कि वहां के स्थानीय लोगों की भी अपार आस्था इस स्थान से जुड़ी हुई है।
पारसनाथ पहाड़ी पर पहुंचने के लिए करना पड़ता है लंबा ट्रेक
आपको बता दें कि अगर आपको इस पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक जाना है तो इसके लिए आपको एक लंबा ट्रेक करना पड़ेगा।पारसनाथ पहाड़ी झारखंड के सबसे ऊंची पहाड़ी है।यह पहाड़ी जैन धर्मावलम्बियों के लिए विश्व में प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।जिसे देखने हर साल लाखो देशी और विदेशी पर्यटक यहां आते है।यहां जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों के मंदिर अवस्थित है।इस पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तलहटी से शिखर तक कम से कम 10 किलोमीटर का सफर तय करना होता है।पर सफर इतना सुहाना होता है कि आपका सफर कब खत्म हो गया आपको पता ही नही चलेगा।यहां सालों भर ठंडी हवा बहती है।जब आप पहाड़ पर चढ़ेंगे तो एक समय ऐसा आएगा, जहां आपको लगेगा कि आसमान और धरती का मिल हो रहा है।यह दृश्य काफी रोमांचित करने वाला होता है। शिखर को छू कर गुजरने वाली हवा जब आप तक आती है तो ऐसा लगता है, मानों वह आपसे कुछ कहना चाहती है।
पारसनाथ पहाड़ का इतिहास
पारसनाथ पर्वत जैन धर्मावलंबी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है जिसका कारण है उसका इतिहास।पारसनाथ की चोटी पर बना मंदिर दुनियाभर में जैन धर्म के लोगों का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है।इसका साक्ष्य हैं वहां स्थित पत्थरो पर खुदे हुए तारीख जोकि 1785 AD है।जैसा की हम सब जानते है कि जैन धर्म में कुल 24 तीर्थकर है और उनके मोक्ष प्राप्ति के स्थान को जैन धर्मावलंबी बहुत ही महत्वपूर्ण मानते हैं।कहा जाता है कि इन 24 तीर्थकर में से 20 तीर्थकर को यही पारसनाथ पहाड़ी पर मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। उन्हीं 20 तीर्थंकरों से संबंधित यहां मंदिरों का एक समूह है। इसलिए जैन धर्म के लोग पारसनाथ को “मोक्ष द्वार” भी कहते हैं।
संथाल आदिवासी के लोग इसे देवता की पहाड़ी कहते हैं
संताल आदिवासी के लोग इस पहाड़ी पर अपने आराध्य देव 'मारंग बुरु' का निवास मानते हैं।ऐसे में वह इस पहाड़ी को देवता की पहाड़ी भी कहते हैं।यह संथाल-आदिवासी की आस्था का भी सबसे बड़ा केंद्र है। यहां संथाल आदिवासी बैसाख पूर्णिमा में एक दिन का शिकार त्यौहार मनाते हैं।
परसनाथ जाने का सबसे अच्छा समय
पारसनाथ एक पहाड़ी क्षेत्र है इस लिए यहां सालों भर मौसम एकदम खुशनूमा रहता है गर्मियों में भी यहां का तापमान काफी कम रहता है तो रात में ठंड लगती है तो आप जिस भी मौसम में चाहे यहां आ सकते है।बस मानसून के दौरान यहां आने से बचे क्योंकि मानसून में पहाड़ी पर ट्रेक करने में आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
कैसे पहुंचें पारसनाथ
यहां तक आने के लिए आपको कोई सीधी बस या ट्रेन की सेवा नहीं मिल पाएगी।पारसनाथ रेलवे स्टेशन भी यहां से 20 किलोमीटर की दूसीर पर स्थित है।यहां वायु मार्ग से आने के लिए आपको रांची एयरपोर्ट तक आना होगा वहां से सड़क मार्ग से यहां तक की दूरी आपको तय करनी होगी। यह पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है ऐसे में यहां यात्रा बहुत संभलकर करनी होती है।
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