आज का सफर शुरू करने से पहले हम एक आपको एक कहानी सुनाते हैं। एक समय की बात है; भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों महाराष्ट्र के महाबलेश्वर में सृष्टि का निर्माण करने के लिए जरूरी एक यज्ञ का आयोजन करने की खातिर इकट्ठा होते हैं। इस यज्ञ को शुरू करने के लिए भगवान ब्रह्मा अपनी पत्नी सावित्री का इंतजार करने लगते है। लेकिन अज्ञात कारणों के चलते मां सावित्री यज्ञ स्थल पर समय से पहुंच नहीं पा रही होती हैं। यज्ञ में हो रहे विलंब के चलते ब्रह्मा जी नाराज हो जाते हैं, और इंद्र से अपने लिए एक नई स्त्री ढूंढने को कह देते हैं। इसके बाद ब्रह्मा जी इंद्र द्वारा ढूंढकर लाई गई स्त्री गायत्री से विवाह कर उनके साथ यज्ञ में बैठ जाते हैं।
कुछ देर बाद जब मां सावित्री वहां पहुंचती हैं, तो ब्रह्मा जी को किसी अन्य स्त्री के साथ यज्ञ में बैठा देख बहुत क्रोधित हो जाती हैं। मां सावित्री अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए आवेश में आकर तीनों देवताओं को इस स्थान पर जल रूप में बदल जाने का श्राप दे देती हैं। उनके इस श्राप से नाराज होकर भगवान ब्रह्मा भी सावित्री और गायत्री को इस स्थान पर जल रूप में बदल जाने का श्राप दे देते हैं। यही कारण है कि इस एक स्थान से ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ ही सावित्री और गायत्री तब से लेकर आज तक नदी के रूप में प्रवाहित हो रहे हैं। और एक साथ पांच नदियों के उद्गम स्थल होने की वजह से इस स्थान का नाम आगे चलकर पंचगंगा मंदिर पड़ जाता है।
तब से लेकर आज तक ब्रह्मा जी इस स्थान से वेन्ना नदी के रूप में, भगवान विष्णु कृष्णा नदी के नाम से और भगवान भोलेनाथ कोयना नदी में तब्दील होकर प्रवाहित हो रहे हैं। वहीं ब्रह्मा जी के श्राप के चलते सावित्री और गायत्री भी अपने मूल नाम के साथ इस स्थान से प्रवाहित हो रही हैं। आप यह रहस्य जानकर हैरान रह जाएंगे कि इस मंदिर से ब्रह्मा, विष्णु, महेश पूर्व दिशा की ओर बहते हैं। वहीं सावित्री और गायत्री इसके ठीक उलट पश्चिम दिशा की ओर बहकर अरब सागर में मिल जाती हैं। इस घटनाक्रम से गायत्री जी को बहुत ज्यादा तकलीफ हुई थी। क्योंकि उनकी कोई गलती न होते हुए भी उन्हें इस श्राप का भागीदार बना दिया गया।
मां सावित्री ने कहां था कि जब त्रिमूर्ति का नदी स्वरूप आपस एक दूसरे से मिल जाएगा, तब उनका दिया गया श्राप भी समाप्त हो जाएगा। और भगवान की लीला देखिए कि पहले वेन्ना नदी यानी ब्रह्मा जी और फिर कोयना नदी यानी भगवान भोलेनाथ अंततः कृष्णा नदी यानी भगवान विष्णु में आकर ही समाहित हो जाते हैं। इस तरह त्रिमूर्ति एक बार फिर से एक हो जाती हैं। वेन्ना नदी माहुली नामक स्थान पर आकर कृष्णा नदी से मिलती हैं और कोयना नदी का कराड नाम की जगह पर कृष्णा नदी के साथ संगम होता है। इन दोनों ही स्थानों पर आज भी हजारों लोग अपने जीवन के पापों से मुक्त होने के लिए श्रद्धा के साथ डुबकी लगाते हैं।
तो कैसी लगी आपको हिन्दू पुराणों के हवाले से बताई गई उपर्युक्त कहानी? इतना सब जानकर अब आप इतना तो समझ ही गए होंगे कि महाबलेश्वर में स्थित पंचगंगा का धार्मिक महत्त्व कितना ज्यादा है और क्यों हम सबको अपने जीवन में एक न एक बार इस पांच नदियों के एक कॉमन उद्गम स्थल पर हाजिरी लगानी चाहिए। तो चलिए अब जानते हैं कि अब तक जिस महाबलेश्वर को हम गर्मियों की छुट्टियों के लिए हिल स्टेशन और बारिश में मॉनसून एन्जॉय करने का फेवरेट वीकेंड स्पॉट भर समझते आ रहे थे; उस स्थान पर ही मौजूद पंचगंगा मंदिर तक कैसे पहुंचा जाता है। इसके साथ ही यहां आकर और क्या-क्या देख सकते हैं, इससे जुड़ी जरूरी जानकारी भी जुटाते हैं।
भगवान कृष्ण को समर्पित पंचगंगा मंदिर महाराष्ट्र के सतारा जिले के ओल्ड महाबलेश्वर में स्थित भगवान शंकर जी के मंदिर महाबलेश्वर के नजदीक ही मौजूद है। महाबलेश्वर बस स्टैंड से करीब 6 किमी की दूरी पर स्थित इस स्थान तक पहुंचने के लिए आपको मुंबई से करीब 250 किमी और पुणे से लगभग 120 किमी का सफर तय करना होता है। मुंबई और पुणे इन दोनों ही जगहों तक आप अपने-अपने शहर से रेल या फिर हवाई मार्ग के जरिए आसानी से पहुंच सकते हैं। यहां पर पहुंचने के बाद आप या तो निजी वाहन के जरिए या फिर राज्य परिवहन की बस में बैठकर सहजता के साथ पंचगंगा मंदिर के प्रांगण तक जा सकते हैं।
मंदिर में दर्शन करने के लिए आपको यहां सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक या फिर शाम 4 बजे से लेकर रात्रि 9 बजे तक अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होती है। मंदिर में प्रवेश करने पर आपकी मुलाकात यहां के मुख्य आकर्षण यानी पत्थर से बनाए गए गौमुख से होगी। इस गौमुख से ही कृष्णा, कोयना, वेन्ना, गायत्री और सावित्री इन पांच स्वयंभू नदियों का पानी एक साथ मिलकर बहता है। और ऐसा क्यों होता है इसके पीछे का धार्मिक कारण तो आप जान ही गए हैं। हालांकि यहां से प्रवाहित होने वाले पानी के असल स्रोत का पता तो अब तक खुद वैज्ञानिक तक नहीं लगा पाए हैं। गौमुख से गिरता पानी नीचे बने कुंड में जाकर जमा होता है। और यहां आने वाले लोग इस पानी को अपने साथ घर लेकर जाते हैं। ताकि पूजा-पाठ के दौरान इस जल का इस्तेमाल कर सकें। इस बात से आप जनमानस में इस जल की पवित्रता और महत्वता का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं।
सबसे पहले 13वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव वंश के राजा सिंहदेव ने पंचगंगा मंदिर का निर्माण कराया। आगे चलकर 16वीं शताब्दी में राजा चंद्रराव मोरे और 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मंदिर की संचरना में बड़े और खूबसूरत बदलाव किए। वैसे पंचगंगा मंदिर में सिर्फ गौमुख ही नहीं है जिसकी ओर आपका ध्यान आकर्षित होगा। यहां भगवान श्रीकृष्ण की एक बेहद मनमोहक मूर्ति भी स्थापित की गई है, जिसे देखकर आप एकदम मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। इतना ही नहीं तो पंचगंगा मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण जी को समर्पित पांच मिनी हॉल भी मौजूद है। आप मंदिर में इन सबी मिनी हॉल के भी दर्शन कर सकते हैं। और सबसे खास बात यह कि मंदिर के अंदर पांचों नदियों के उद्गम के लिए अलग-अलग विशेष स्थान बनाया गया है। जो प्रतीकात्मक रूप में इन पांचों नदियों का उद्गम स्थल माना जाता है। इनके अतिरिक्त यहां गुप्त रूप से सरस्वती और भागीरथी नदी का भी उद्गम स्थल होने की मान्यता है।
इतनी जारी जानकरी जुटा लेने के बाद अब अगर आपने भी यहां आने का मन बना लिया है, तो हमारी सलाह होगी कि आप मॉनसून के मौसम में यहां आएं। वैसे महाबलेश्वर के घने जंगलों से घिरे और पहाड़ की ऊंचाई पर होने की वजह से यहां का मौसम तो साल भर सदाबहार बना रहता है। लेकिन बरसात के समय इस जगह की खूबसूरती में कुछ और ही बात होती है। अब क्योंकि मंदिर का मुख्य आकर्षण गौमुख से एक साथ बहता पांच स्वयंभू नदियों का संगम स्थल है। तो फिर जाहिर सी बात है कि बारिश के समय यहां आना ही सर्वश्रेष्ठ होगा।
क्योंकि तब गौमुख से निकलते वक्त पंच गंगा का बहाव भी तेज होता है और कुंड में पानी भी एकदम लबालब भरा होता है। बारिश के पानी से भीगकर इस प्राचीन मंदिर के दीवारों की चमक भी देखने लायक हो जाती है। मॉनसून के मौसम में मंदिर के बाहर ऊंचे-ऊंचे पहाड़, उनके साथ गलबहियां करते काले-घने बादल, उन बादलों के पानी का पहाड़ों पर ही बरस जाना और फिर बरसकर खूबसूरत झरनों में तब्दील होना। नग्न आंखों से नजर वाला यह नजारा एक वक्त के लिए आपको इस भ्रम में डाल देगा कि आप धरती से सीधे स्वर्ग लोक पहुंच गए हैं।
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