PANCH KEDAR

Tripoto
21st Nov 2021
Photo of PANCH KEDAR by Ankit Upadhyay

केदारनाथ की बड़ी महिमा है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ और केदारनाथ-ये दो प्रधान तीर्थ हैं, दोनो के दर्शनों का बड़ा ही माहात्म्य है। केदारनाथ के संबंध में लिखा है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनापथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है। इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये १२-१३वीं शताब्दी का है। ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार उनका बनवाय हुआ है जो १०७६-९९ काल के थे।

एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर ८वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। केदारनाथ जी के तीर्थ पुरोहित इस क्षेत्र के प्राचीन ब्राह्मण हैं, उनके पूर्वज ऋषि-मुनि भगवान नर-नारायण के समय से इस स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की पूजा करते आ रहे हैं, जिनकी संख्या उस समय ३६० थी। पांडवों के पोते राजा जनमेजय ने उन्हें इस मंदिर में पूजा करने का अधिकार दिया था, और वे तब से तीर्थयात्रियों की पूजा कराते आ रहे हैं। आदि गुरु शंकराचार्य जी के समय से यहां पर दक्षिण भारत से जंगम समुदाय के रावल व पुजारी मंदिर में शिव लिंग की पूजा करते हैं, जबकि यात्रियों की ओर से पूजा इन तीर्थ पुरोहित ब्राह्मणों द्वारा की जाती है।

Photo of Kedarnath Temple by Ankit Upadhyay

Tunganath तुंगनाथ

तुंगनाथ उत्तराखण्ड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक पर्वत है। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर, जो 3460 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह मंदिर १,००० वर्ष पुराना माना जाता है और यहाँ भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपनों को मारने के बाद व्याकुल थे। इस व्याकुलता को दूर करने के लिए वे महर्षि व्यास के पास गए। 

व्यास ने उन्हें बताया कि अपने भाईयों और गुरुओं को मारने के बाद वे ब्रह्म हत्या के कोप में आ चुके हैं। उन्हें सिर्फ महादेव शिव ही बचा सकते हैं। व्यास ऋषि की सलाह पर वे सभी शिव से मिलने हिमालय पहुंचे लेकिन शिव महाभारत के युद्ध के चलते नाराज थे। इसलिए उन सभी को भ्रमित करके भैंसों के झुंड के बीच भैंसा (इसीलिए शिव को महेश के नाम से भी जाना जाता है) का रुप धारण कर वहां से निकल गए। लेकिन पांडव नहीं माने और भीम ने भैंसे का पीछा किया। इस तरह शिव के अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोड़े। ये स्थान केदारधाम यानि पंच केदार कहलाए।

कहते हैं कि तुंगनाथ में 'बाहु' यानि शिव के हाथ का हिस्सा स्थापित है। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना माना जाता है।⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀

Photo of Tungnath by Ankit Upadhyay

ऐसी कथाएं हैं कि क्योंकि पांडवों ने अपने ही कुल का नाश किया था इसलिए भगवान शिव पांडवों से नाराज थे। इसलिए जब पांडव वाराणसी पहुंचे तो भगवान शिव गुप्तकाशी में आकर छिप गए, जब पांडव गुप्तकाशी पहुंचे तो भोलेनाथ केदारनाथ पहुंच गए और बैल का रूप धारण कर लिया। कहा जाता है यहां पांडवों ने भगवान शिव से आर्शीवाद प्राप्त किया। ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ का ऊपरी हिस्सा “काठमाण्डू” में प्रकट हुआ, जिसे पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है। तो वहीं भगवान शिव की भुजाओं का तुंगनाथ में, नाभि का मध्यमाहेश्वर में, बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप का श्री केदारनाथ में पूजन होता है। इसके अलावा कहा जाता है भगवान शिव की जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई और मुख रुद्रनाथ में। इन्हीं पांच स्थानों को “पंचकेदार” कहा जाता

पंचकेदार में स्थान द्वितीय में मध्यमहेश्वर को माना गया है। मध्यमहेश्वर में भगवान शिव की नाभी की पूजा की जाती है। मध्यमहेश्वर उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र के रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 3289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चारों और हिमालय पहाड़ो से घिरे इस रमणीय स्थान की खूबसूरती देखते ही बनती है। मध्यमहेश्वर मंदिर से 3-4 किमी० ऊपर एक बुग्याल आता है जहाँ पर एक छोटा सा मंदिर है जिसे बूढ़ा मध्यमहेश्वर कहा जाता है। यहाँ से हिमालय के चौखम्बा पर्वत का भव्यदर्शन होता है। चौखम्बा के साथ साथ मन्दानी पर्वत, केदारनाथ हिमालय श्रेणी आदि के दर्शन भी होते है। भक्ति के साथ साथ यह जगह ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए भी खासी अहम् मानी जाती है। मध्यमहेश्वर के कपाट छः माह के लिए खोले जाते है। बाकी सर्दियों के छः माह उखीमठ में भगवान की पूजा अर्चना की जाती है।

Photo of Madhyamaheshwar Mandir by Ankit Upadhyay

कल्पेश्वर मंदिर गढ़वाल के चमोली जिले, उर्मगम घाटी, उत्तराखण्ड, भारत में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। कल्पेश्वर मंदिर पंच केदारों में से एक है तथा पंच केदारों में इस पांचवा नम्बर है। जो समुद्र तल से 2,200 मीटर (7,217 फीट) की ऊँचाई पर बना हुआ है। कल्पेश्वर एकमात्र पंच केदार मंदिर है, जो पूरे वर्ष में उपलब्ध हैं। यह एक छोटा सा मंदिर जो पत्थर की गुफा मंे बना हुआ है ऐसा माना जाता है भगवान शिव की जटा प्रकट हुई थी। इस मंदिर में भगवान शिव की ‘जटा’ की पूजा की जाती है। इसलिए, भगवान शिव को जतधर या जतेश्वर भी कहा जाता है। जटा शब्द का अर्थ होता है ‘बाल’। कल्पेश्वर मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था। कल्पेश्वर मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली में है।

Photo of Kalpeshwar Mahadev Temple, Udgam Valley by Ankit Upadhyay

रुद्रनाथ मंदिर जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। बता दें भगवान शंकर का ये मंदिर समुद्रतल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर की सबसे खास बात तो ये है कि यहां भगवान शिव के मुख की पूजा होती है। इतना ही नहीं, इससे भी खास बात ये है कि भगवान शिव के बाकि के शरीर की पूजा नेपाल के काठमांडू में की जाती है। जी हां, यही कारण है कि ये मंदिर न केवल देश में बल्कि विदशों में अपनी इस खासियत के कारण ही काफी प्रचलित है।

बता दें इस मंदिर को पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है चूंकि रुद्रनाथ मंदिर के अन्य मंदिरों से अलग है, इसलिए दूर दूर से लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। जहां शिव जी के लिंग रूप की पूजा होती है वहीं इस मंदिर में केवल उनके मुख की पूजा होती है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव के मुख को ‘नीलकंठ महादेव’ के नाम से जाना जाता है।

Photo of Rudranath by Ankit Upadhyay

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