अब तक हम मुख्य रुप से कैलाश मानसरोवर के बारें में सुनते या जानते आ रहे हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि एक और कैलाश है जो की भारत में ही है और उसे कैलाश के समान ही दर्जा प्राप्त है। यहां पहुंचना भी इतना मुश्किल नहीं और खर्चा भी श्री कैलाश मानसरोवर की अपेक्षा बेहद कम, और वह है आदि कैलाश। यह पंच कैलाश में से एक है...
माना जाता है कि जब महादेव कैलाश से बारात लेकर माता पार्वती से विवाह करने आ रहे थे तो यहां उन्होंने पड़ाव डाला था। कैलाश मानसरोवर यात्रा के बाद आदि कैलाश यात्रा को सबसे अधिक पवित्र यात्रा माना जाता है।
समुद्रतल से 6191 मीटर की ऊंचाई पर स्थित आदि कैलाश भारत देश के उत्तराखण्ड राज्य में तिब्बत सीमा के समीप है और देखने में यह कैलाश की प्रतिकृति ही लगता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा की तरह ही आदि कैलाश यात्रा भी रोमांच और खूबसूरती से लबरेज है, इसमें भी 105 किमी की यात्रा पैदल करनी पड़ती है।
आदि कैलाश को छोटा कैलाश भी कहा जाता है। आदी कैलाश में भी कैलाश के समान ही पर्वत है। मानसरोवर झील की तर्ज में पार्वती सरोवर है। आदि कैलाश के पास गौरीकुंड है। कैलाश मानसरोवर की तरह ही आदी कैलाश की यात्रा भी अति दुर्गम यात्रा मानी जाती है।
किन्नर कैलाश हिमाचल के किन्नौर जिले में स्थित है। ये शिवलिंग 79 फिट ऊंचा है। इसके आस-पास बर्फीले पहाड़ों की चोटियां हैं। जो इसकी खूबसूरती की में चार चांद लगाते हैं।
अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण किन्नर कैलाश शिवलिंग चारों ओर से बादलों से घिरा रहता है। ये हिमाचल के दुर्गम स्थान पर स्थित है, इसलिए यहां पर ज्यादा लोग दर्शन के लिए नहीं आते हैं। किन्नर कैलाश का प्राकृतिक सौंदर्य मंत्र मुग्ध कर देने वाला है।
किन्नर कैलाश की खास बात ये है कि यहां पर स्थित शिवलिंग बार-बार रंग बदलता है। कहा जाता है कि यह शिवलिंग हर पहर में अपना रंग बदलता है। सुबह के समय इसका रंग अलग होता है और दोपहर के समय सूरज की रोशनी में इसका रंग बदला हुआ दिखता है और शाम होते ही इसका रंग फिर से बदल जाता है।
माना जाता है कि यहां पर जो पार्वती कुंड स्थित है वह कुंड देवी पार्वती ने खुद बनाया था। यहां पर पूरी तेयारी के साथ आना चाहिए क्योंकि यहां पर ट्रेक करना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए किसी स्थानीय गाइड को अपने साथ ले सकते हैं।
मणिमहेश झील हिमाचल प्रदेश में प्रमुख तीर्थ स्थान में से एक बुद्धिल घाटी में भरमौर से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। झील कैलाश पीक (18,564 फीट) के नीचे13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। हर साल, भाद्रपद के महीने में हल्के अर्द्धचंद्र आधे के आठवें दिन, इस झील पर एक मेला आयोजित किया जाता है, जो कि हजारों लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो पवित्र जल में डुबकी लेने के लिए इकट्ठा होते हैं। भगवान शिव इस मेले / जातर के अधिष्ठाता देवता हैं। माना जाता है कि वह कैलाश में रहते हैं। कैलाश पर एक शिवलिंग के रूप में एक चट्टान के गठन को भगवान शिव की अभिव्यक्ति माना जाता है।स्थानीय लोगों द्वारा पर्वत के आधार पर बर्फ के मैदान को शिव का चौगान कहा जाता है।
कैलाश पर्वत को अजेय माना जाता है। कोई भी अब तक इस चोटी को माप करने में सक्षम नहीं हुआ है, इस तथ्य के बावजूद कि माउंट एवरेस्ट सहित बहुत अधिक ऊंची चोटियों पर विजय प्राप्त की है|
एक कहानी यह रही कि एक बार एक गद्दी ने भेड़ के झुंड के साथ पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की। माना जाता है कि वह अपनी भेड़ों के साथ पत्थर में बदल गया है। माना जाता है कि प्रमुख चोटी के नीचे छोटे चोटियों की श्रृंखला दुर्भाग्यपूर्ण चरवाहा और उसके झुंड के अवशेष हैं।
एक और किंवदंती है जिसके अनुसार साँप ने भी इस चोटी पर चढ़ने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा और पत्थर में बदल गया। यह भी माना जाता है कि भक्तों द्वारा कैलाश की चोटी केवल तभी देखा जा सकता है जब भगवान प्रसन्न होते हैं। खराब मौसम, जब चोटी बादलों के पीछे छिप जाती है, यह भगवान की नाराजगी का संकेत है|
मणिमहेश झील के एक कोने में शिव की एक संगमरमर की छवि है, जो तीर्थयात्रियों द्वारा पूजी जाती जो इस जगह पर जाते हैं। पवित्र जल में स्नान के बाद, तीर्थयात्री झील के परिधि के चारों ओर तीन बार जाते हैं। झील और उसके आस-पास एक शानदार दृश्य दिखाई देता है| झील के शांत पानी में बर्फ की चोटियों का प्रतिबिंब छाया के रूप में प्रतीत होता है।
मणिमहेश विभिन्न मार्गों से जाया जाता है । लाहौल-स्पीति से तीर्थयात्री कुगति पास के
श्रीखंड आनी उपमंडल के निरमंड खंड की 18570 फीट की ऊंचाई पर बसे भोले बाबा यहां भी 35 किलोमीटर की कठिनतम,जोखिम भरी लेकिन रोमांचक यात्रा के बाद मिल पाते हैं। श्रीखंड यात्रा के लिए 25 किलोमीटर की सीधी चढाई श्रद्धालुओं के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होती है। कई दफा तो इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं की मौत भी हो चुकी है।
श्रीखंड की पौराणिक मान्यता है कि भस्मासुर राक्षस ने अपनी तपस्या से शिव से वरदान मांगा था कि वह जिस पर भी अपना हाथ रखेगा तो वह भस्म होगा। राक्षसी भाव होने के कारण उसने माता पार्वती से शादी करने की ठान ली।इसलिए भस्मापुर ने शिव के ऊपर हाथ रखकर उसे भस्म करने की योजना बनाई लेकिन भगवान विष्णु ने उसकी मंशा को नष्ट किया। विष्णु ने माता पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर को अपने साथ नृत्य करने के लिए राजी किया। नृत्य के दौरान भस्मासुर ने अपने सिर पर ही हाथ रख लिया और भस्म हो गया। आज भी वहां की मिट्टी व पानी दूर से लाल दिखाई देते हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस चोटी पर भगवान शिव का वास है। इसके शिवलिंग की ऊंचाई 72 फीट है। यहां तक पहुंचने के लिए सुंदर घाटियों के बीच से एक ट्रैक है। अमरनाथ यात्रा के दौरान लोग जहां खच्चरों का सहारा लेते हैं। वहीं, श्रीखण्ड महादेव की 35 किलोमीटर की इतनी कठिन चढ़ाई है, जिसपर कोई खच्चर घोड़ा नहीं चल ही नहीं सकता। श्रीखण्ड का रास्ता रामपुर बुशैहर से जाता है। यहां से निरमण्ड, उसके बाद बागीपुल और आखिर में जांव के बाद पैदल यात्रा शुरू होती है।
कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। साथ ही इस पर्वत को रहस्यमयी, गुप्त और पवित्र माना गया है। ... कैलाश पर्वत की ऊंचाई दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत एवरेस्ट से लगभग दो हजार दो सौ मीटर कम है। माउंट एवरेस्ट पर लोग सात हजार से अधिक बार चढ़ाई कर चुके हैं लेकिन कैलाश पर्वत अब भी अजेय है
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