ओल्ड मनाली
जितना प्यार मुझे मनाली से है, उतना शायद ही कभी किसी से हुआ हो |
पिछले 5 साल से मुझे जब भी वक्त मिलता, मैं पहाड़ों की तरफ निकल पड़ता था | वादियों में खुलकर साँस लेने में जो सुख है, वो शहर में एसी की हवा में कहाँ | आज से 5 साल पहले मैं ओल्ड मनाली गया था | यहाँ के पहाड़ मुझे इतना पसंद आए, कि मैनें सोचा अगर ज़िंदगी में कभी खुद का घर लेने का मौका मिला तो ओल्ड मनाली में ही लूँगा | लगातार मेहनत से फ्रीलांस काम करके और पाई-पाई जोड़ कर आज मैंने वो मुकाम हासिल कर ही लिया है | पहाड़ों में रहना अच्छा तो बहुत लगता है, मगर पहाड़ों में रहना उतना आसान भी नहीं है |
ऊँचाई पर रहकर मैंने ये 7 सबक सीखे :
1. पानी की एक-एक बूँद कीमती है
मनाली में ठंड बड़ी कड़ाके की पड़ती है | जब आसमान से सफेद बर्फ गिरती है तो नल में आने वाला पानी भी जाम जाता है | ऐसे में पानी जुटाना बड़ा भारी काम हो जाता है | एक-दो दिन ऐसा रहे तो कोई बात नहीं, मगर जब एक-एक हफ्ते बहते पानी के दर्शन नहीं होते तो पता चलता है कि जिसे हम ऐसे फालतू ही बहा देते हैं, वो आम ज़िंदगी के काम करने के लिए कितना ज़रूरी है |
2. सर्दी का सहारा है लकड़ी और तंदूर
शुरुआत में मैं इलेक्ट्रिक हीटर ले कर गया था | दिक्कत ये थी कि हीटर से पूरा कमरा गरम नहीं होता है, और पहाड़ों में बिजली का कोई भरोसा नहीं होता | ऐसे में भारी बर्फ़बारी के बीच मेरा साथ लकड़ी और तंदूर ने दिया | अगर आप मनाली में ठहर रहे हैं तो याद रखिए कि आपको लकड़ी सिर्फ़ आपका मकान मालिक ही दिला पाएगा, और कोई नहीं |
3. इतने ठंडे इलाक़े में भी कितने गर्मजोश लोग रहते हैं
पहाड़ों की मुश्किल ज़िंदगी को यहाँ के लोग आसान बना देते हैं | आपके पड़ोसी आपके लिए सेब, मिठाई और गप्पे लेकर आएँगे | अगर आप कोई वज़नी सामान ढो रहे हैं तो थोड़ा वज़न रास्ते में चलते लोग उठा देंगे | मुझे याद है, एक बार भयानक बर्फ़बारी में मैं बिना छाते के कहीं जा रहा था, तो रास्ते में एक बूढ़ी औरत ने मुझे अपने छाते की छाँव में आगे तक छोड़ा | जितने निर्दयी पहाड़ होते हैं, उतने ही दयालु यहाँ रहने वाले होते हैं |
4. मोबाइल नेटवर्क नहीं है, मगर मस्ती खूब है
मुझे याद है, एक बार सर्दियों में 13 दिन तक बिजली और नेटवर्क दोनों ही नहीं आया था | पहले तो लगा जैसे ज़िंदगी रुक सी गयी है | मगर कुछ देर बाद लगा जैसे किसी ने छाती से बड़ा से पत्थर उठा दिया हो | हर आधे घंटे में सोशल मीडिया चेक करने की खुजली मिट गयी थी | फिर जब आस पास गौर करना शुरू किया, तो लगा कि ज़िंदगी कितनी हसीन है | घरों की खिड़कियों से धीमा-धीमा संगीत सुनाई दे रहा था | लोग बर्फ से स्नोमैन बनाने की कोशिश कर रहे थे | मोबाइल में नेटवर्क नहीं था, मगर चारों ओर हँसी और खिलखिलाहट ज़रूर थी |
5. शहर के शोर से दूर पहाड़ों का संगीत
जहाँ पहले हर दिन गाड़ियों के हॉर्न सुनाई देते थे, वहीं अब चिड़ियों के चहचाहाने की आवाज़ें सुनाई देती हैं | लगता है मानों आपस में बात कर रही हैं | बातों बातों में संगीत बना रही हैं | जब शहर के कंक्रीट जंगल की जगह कुदरत का हसीन जंगल दिखाई देता है तो लगता है कि हाँ, जीने में कुछ तो मज़ा है |
6. जिस दिन सूरज निकलता है, वो दिन कुछ ख़ास होता है
पहाड़ों में सूरज आँख मिचोली-सी खेलता है | कभी कभार कई दिनों तक छुपा रहता है | इन दिनों में सबका मूड भी कुछ खराब सा ही होता है | सर्दी में कॅंपकँपाते हुए से लोग उठकर आग जलाने का बंदोबस्त करने लगते हैं | कंबल में से निकलने का ही मन नहीं करता | मगर जिस दिन धूप निकलती है, उस दिन गाँव का हर इंसान घर से बाहर निकल जाता है |
7. तेंदुए कहानियों में ही नहीं होते
एक दिन पूरा गाँव तेंदुए की बात सुनकर उठ खड़ा हुआ | ऐसी बातें छोटे से गाँव में बड़ी आसानी से फैलती हैं | सब एक दूसरे को फ़ोन करके हाल पूछ रहे थे | कुछ देर बाद पता चला कि ये कोई अफवाह नहीं थी | न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया पर तेंदुए के देखे जाने की बातें फैलने लगी | ओल्ड मनाली पुल के पास तेंदुए ने एक गाँव वाले पर हमला कर दिया था | इससे पहले की वन विभाग वाले आते, गाँव वालों ने तेंदुए को बुरी तरह से घायल कर दिया था | इसके अलावा पास के मैदान में एक और तेंदुआ देखा गया जिसने कुछ भेड़ों का शिकार कर लिया था | जंगलों में शिकार की कमी के चलते तेंदुए ओल्ड मनाली की तरफ आ रहे थे |
इस घटना के बाद जब मैं एक दिन घर आ रही थी, तो चांदनी में नहाई बर्फ जैसे मोतियों की तरह चमक रही थी। ये देखकर मैं सोच में पढ़ गई कि गाँव की ज़िंदगी कितनी सादी लेकिन खूबसूरत है। मगर इस खूबसूरती का खामियाज़ा भी गाँव वालों को ही भूगतना पड़ रहा है। पर्यावरण में होते बदलाव और लोगों की लापरवाही के चलते जहाँ गाँव वाले लोग परेशान है, वहीं जानवरों का भी घर छिन रहा है।
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