वैसे तो उत्तराखंड खूबसूरती का खजाना है, लेकिन यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल है, जहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं।
उत्तराखंड में असंख्य मंदिरों का घर है, जिनमें से कई पौराणिक काल से संबंध रखते हैं।
इस जगह पर सिर्फ भगवान शिव ही नहीं बल्कि अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं, जहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं।
आज ऐसे ही एक ऐसे ही धार्मिक स्थल का जिक्र करने जा रहे हैं, जिसका संबंध पौराणिक काल से है।
इस मंदिर को लेकर कई ऐसी मान्यताएं और कथा है, जिनकी जानकारी लोगों को कम होती है।
उत्तराखंड के गढ़वाल में घूमने आए लोग बिना इस मंदिर में मत्था टेके वापस नहीं जाते हैं।
हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर की। यह हिंदुओं के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है, जो भगवान शिव के पुत्र कार्तिक को समर्पित है।
कार्तिक स्वामी मंदिर की धार्मिक महत्ता -
कार्तिक स्वामी मंदिर का इतिहास 200 साल पुराना बताया जाता है। गढ़वाल में यह मंदिर समुद्र तल से करीब 3050 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर को लेकर ऐसी कि पौराणिक किवदंती है। कहा जाता है कि इस जगह पर कार्तिक ने अपनी हड्डियां भगवान शिव को समर्पित की थी। दरअसल एक दिन भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों को ब्रह्मांड के 7 चक्कर लगाने के लिए कहा था। जिसके बाद भगवान कार्तिक निकल गए, लेकिन कुछ देर बाद गणेश जी अपने माता-पिता यानी भगवान शिव और पार्वती के 7 चक्कर लगाए और कहा कि उनके लिए वहीं दोनों ब्रह्मांड है। इस उत्तर से भगवान शिव गणेश जी प्रसन्न हुए और उन्हें सौभाग्य प्रदान किया कि आज से उनकी पूजा सबसे पहले होगी। वहीं जब भगवान कार्तिक वापस लौटते हैं तो उन्हें इस बारे मे जानकारी होती है। यह सुनने के बाद वह अपने शरीर को त्याग देते हैं और अपनी हड्डियों को भगवान शिव को समर्पित कर दिया।
80 सीढ़ियों का सफर -
भगवान कार्तिक की पूजा उत्तर भारत के अलावा दक्षिण भारत में भी की जाती है, जहां उन्हें कार्तिक मुरुगन स्वामी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की घंटियों की आवाज लगभग 800 मीटर तक सुनी जा सकती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। यहां की शाम की आरती या संध्या आरती बेहद खास होती है, इस दौरान यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लग जाता है। बीच-बीच में यहां महा भंडारा भी आयोजित किया जाता है, जो पर्यटकों और श्रद्दालुओं को काफी ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में घंटी बांधने से इच्छा पूर्ण होती है। यही कारण है कि मंदिर के दूर से ही आपको यहां लगी अलग-अलग आकार की घंटियां दिखाई देने लगती हैं।
क्यों आएं कार्तिक स्वामी मंदिर ?
कार्तिक स्वामी मंदिर की यात्रा कई मायनों में आपके लिए खास हो सकती है। धार्मिक आस्था के अलावा यहां प्रकृति प्रेमी और रोमांच के शौकीन पर्यटक भी आ सकते हैं। चूंकि यह मंदिर ऊंचाई पर और पहाड़ियों से घिरा है, इसलिए यहां से कुदरती खूबसूरती का आनंद जी भरकर उठाया जा सकता है। अगर आप एडवेंचर का शौक रखते हैं, तो यहां ट्रेकिंग और हाइकिंग का आनंद भी ले सकते हैं। अगर आप फोटोग्राफी का शौक रखते हैं, तो यहां के अद्भुत नजारों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। एक शानदार यात्रा के लिए आप इस स्थल का चुनाव कर सकते हैं। आप मंदिर के दर्शन किसी भी समय कर सकते हैं।
आने का सही समय -
मौसम से लिहाज से यहां आने का सही समय अक्टूबर से लेकर मार्च के मध्य का है, इस दौरान आप आसपास की प्राकृतिक खूबसूरती का आनंद जी भरकर उठा पाएंगे।
बैकुंठ चतुर्दशी के मेले का है महत्व -
बैकुंठ चतुर्दशी पर्व पर यहां दो दिवसीय मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां निसंतान दंपति दीपदान करते हैं। यहां रातभर दीये हाथ में लेकर दंपति खड़े रहते हैं और संतान प्राप्ति की कामना करते हैं, जो पूरी भी होती है। कार्तिक पूर्णिमा और जेठ माह में आसपास के गांवों की ओर से मंदिर में विशेष धार्मिक अनुष्ठान भी किया जाता है।
कैसे पहुंचे कार्तिक स्वामी मंदिर-
कार्तिक स्वामी मंदिर पहुंचने के लिए ट्रेन,बस फ्लाइट तीनों सेवाएं उपलब्धहै, लेकिन बेस्ट बस और ट्रेन सेवाएं रहेंगी। यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले से 38 किलोमीटर की दूरी पर कनक चौरी गाँव में स्थित है। जिसके लिए आपको बस सेवाएं आसानी से मिल जाएंगी। इसके लिए आपको रुद्रप्रयाग से पोखरी मार्ग की तरफ जाने वाली बस लेना होगा, जो आपको कनक चौरी गांव तक पहुंचा देंगे। कनक चौरी गांव से आपको करीब 3 किलोमीटर तक ट्रैक करके कार्तिक स्वामी मंदिर तक पहुंचना होगा। हालांकि, इसकी चढ़ाई ऊपर की ओर होगी, जिसमें लोगों को काफी थकावट होती है।