विज्ञान ने भले ही काफी तरक्की कर ली हो मगर आज भी तमाम ऐसे रहस्य मौजूद हैं जिसके आगे साइंस पूरी तरह से फेल नजर आता है। काफी शोध के बाद कुछ रहस्यों से पर्दा तो उठाया जा चुका है मगर अभी बहुत से रहस्य अनसुलझे हैं। पुराने समय से लेकर वर्तमान समय तक सुरंगों का महत्व बरकरार हैं। जब हम इनके इतिहास और महत्व को देखते हैं तो एक रोचक दास्तान और रहस्यमयी तथ्यों का पता चलता हैं। प्राचीन काल से आज तक हमें भूमिगत, पहाड़ी और समुंद्री सुरंगों के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं। पुराने समय में मध्य काल तक आज की तरह सड़कें नहीं होती थी। पैदल चलने से पगडंडिया बन जाती थी और घोड़ों एवं हाथियों के चलने से एक रास्ता बन जाता था। ये ही आवागमन के मार्ग हुआ करते थे। जंगल घने और इनमें हिंसक जानवर होने की वजह से गुजरना खतरनाक होता था। उनसे बचने के लिए मनुष्य ऐसे मार्ग अपनाता था जो सुरक्षित होते थे। जोखिम भरे आवागमन की समस्या के चलते प्रायः पहाड़ों को खोद कर सुरंग बनाई जाती थी। कुछ भूमि के अंदर बहते पानी की धारा से प्राकृतिक रूप से बन जाती थी। सुरक्षित मान कर इनका उपयोग आने-जाने के लिए किया जाता था। आइए जानते है भारत की कुछ ऐसे ही सुरंगों के बारे में
1. मनिहरण सुरंग, सिलचर
मनिहरण सुरंग भुवन महादेव मंदिर भुवन पहाड़ी से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहां भुवन महादेव मंदिर स्थित है। इस प्राचीन सुरंग का महाकाव्य महाभारत में उल्लेख मिलता है। किंवदंती है कि भगवान कृष्ण ने इस सुरंग का इस्तेमाल किया था। पवित्र त्रिबेनी नदी सुरंग के नीचे बहती है। सुरंग के पास के क्षेत्र में स्थित एक मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। इस जगह देश और दुनिया भर से पर्यटकों की भीड़ उमड़ती है, जो इसे सिलचर की यात्रा के दौरान जरूर देखने लायक स्थान बनाती है। हर साल होली और शिवरात्रि का त्योहार इस सुरंग के बगल में मनाया जाता है, जो इस स्थान को जीवंत कर देता है।
2. चुनारगढ़ की सुरंग
चुनारगढ किले में सुरंगों का एक जाल सा बिछा है। चुनारनगर के नीचे कई जगह इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं। इसके अलावा इस किले में कई गहरे तहखाने हैं जोकि गुप्त रास्तों से एवं एक दुसरे से जुड़े हैं। कहते हैं कि इस किले में भयंकर सांपों का बसेरा हो चला है। किले के ऊपर एक बहुत गहरी बावड़ी है जिसमें पानी के अन्दर तक सीढियां बनी हैं एवं इसकी दीवारों पर कई तरह के चिन्ह बने हैं जो प्राचीन लिपि के हैं और जिन्हें समझना मुश्किल है। चुनारगढ़ किला एक तिलिस्मि आश्चर्य है। आज तक इसका रहस्य कोई नहीं जान सका है।
3. हिमालय की सुरंगें
प्राचीन काल में लोग सुरंग बनाकर दूसरे देश तक पहुंच जाते थे। ऐसी सुरंगे बहुत ही सुरक्षित और शॉर्टकट होती थी। हिंदू कुश की पहाड़ियों से लेकर अरुणाचल तक यदि आप ढूंढेंगे तो आपको ऐसी सैंकड़ों सुरंगे मिल जाएंगी जिसमें से होकर प्राचीनकाल में मानव एक जगह से दूसरी जगह सुरक्षित पहुंच जाते थे।
4. कुरुक्षेत्र की सुरंग
महाभारत की भूमि के प्राचीन कुलतारण तीर्थ किनारे प्राचीन सुरंग बनी हुई है। यह सुरंग भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के लिए अभी भी रहस्यमयी बनी हुई है। धर्मनगरी कुरुक्षेत्र से 48 कोस की परिधि के एक ओर गांव किरमच में स्थित तीर्थ कुलतारण की सुंरग पर शोध जारी है। 48 कोस की परिधि के इस तीर्थ का पुराना इतिहास है, बताया जाता है कि पांडुओं की अस्थियां इसी कुलतारण तीर्थ में विसर्जित की गई थी। तब से इस क्षेत्र के लोग अस्थियों को इस तीर्थ में ही विसर्जित करते है।
5. हाथी पोल, रामगढ़
रामगढ़ के उत्तरी छोर के निचले भाग में एक विशाल सुरंग है, जो लगभग 39 मीटर लम्बा एवं मुहाने पर 17 मीटर ऊंचा एवं इतना ही चौड़ा है. इसे हाथपोल या हाथीपोल कहते है। अन्दर इसकी ऊंचाई इतनी है कि इसमें से हाथी आसानी से गुजर सकता है। बरसात में इसमें से एक नाला बहता है। अंदर चट्टानों के बीच में एक कुण्ड है जो सीता कुण्ड के नाम से जाना जाता है जिसका पानी अत्यंत निर्मल एवं शीतल है।
6. चारमीनार
ऐसा कहा जाता है कि हैदराबाद के दो सबसे बड़े स्मारक, चारमीनार और गोलकुंडा किला एक छिपी हुई सुरंग के माध्यम से आपस में जुड़े हुए हैं। हालाँकि यह मार्ग कभी भी अपने उचित स्थान पर नहीं पाया गया, लेकिन एक दर्जन से अधिक संरचनाएं हैं जो 430 साल पुराने स्मारक के अस्तित्व का समर्थन करती हैं। 2015 में, 2 नए आर्कवेज़ पाए गए, जो 9 किलोमीटर लंबी एक सुरंग के बारे में बताते थे लेकिन लापरवाही के कारण वह नष्ट हो गई थी।
7. तलातल घर
यह अहोम युद्धों के दौरान शासकों और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा 18वीं शताब्दी में एक गुप्त सैन्य अड्डा था। यह रंगपुर पैलेस का एक हिस्सा था और ताई अहोम वास्तुकला के सबसे शानदार उदाहरणों में से एक है। इसमें वास्तव में दो गुप्त सुरंगें और जमीनी स्तर से तीन मंजिल नीचे हैं जो अहोम युद्धों के दौरान निकास मार्गों के रूप में इस्तेमाल किए गए थे। सुरंगों में से एक 3 किमी लंबी है और Dikhow नदी से जुड़ती है और दूसरी 16 किमी लंबी पलायन मार्ग है जो गढ़गांव पैलेस की ओर जाता है।इन सुरंगों का इस्तेमाल अहोम राजाओं ने अपने सभी युद्धों के दौरान बचने के मार्ग के रूप में किया था या ऐसा कहा जा सकता है कि दुश्मन के हमले के दौरान इन मार्गों को भागने के लिए इस्तेमाल किया गया था।
8. अंबर पैलेस,जयपुर
अंबर पैलेस को आमेर किला या अंबर किला कहा जाता है। इस पैलेस को जयगढ़ किले से जोड़ने वाली एक ओपन एयर टनल है। यह लगभग 325 मीटर लंबी है और कहा जाता है कि इसे 18वीं शताब्दी में बनाया गया था।
9. लाल किला
ऐसा कहा जाता है कि भारत में लाल किले से ज्यादा रहस्यमयी कोई जगह नहीं है। यह शाहजहाँ द्वारा निर्मित 17वीं शताब्दी का किला है और वह स्थान भी जहाँ से प्रधानमंत्री हर साल स्वतंत्रता दिवस पर भाषण देते हैं। इसे कई सुरंगों और गुप्त मार्गों का घर कहा जाता है, जो हाल ही में दिल्ली राज्य विधान सभा में पायी गई है। किले में लाहौरी ईंटों से बना एक कक्ष भी है, जिसके बारे में संदेह है कि यह हथियारों और गोला-बारूद का घर है जो उन्हें धूप से सुरक्षित रखता है। इसमें एक गुप्त सुरंग भी है जो मुगल संरचना को यमुना नदी से जोड़ती है।
10. परगवाल सुरंग, जम्मू
इस सुरंग की खोज भारतीय सेना ने 2014 में की थी। यह 20 फीट गहरी सुरंग है जिसका अभी तक कोई छोर नहीं मिला है।
11. शिवखोड़ी गुफा की सुरंग
भगवान शिव द्वारा निर्मित की गई इस गुफा का अंतिम छोर दिखाई नहीं देता है। बताते हैं कि कोई भी इस गुफा में स्थित शिवलिंग और पिण्डियों के दर्शन कर गुफा में आगे की तरफ बढ़ता है, वह कभी लौटकर नहीं आता। कहते हैं कि अंदर जाकर यह गुफा दो भागों में विभाजित हो जाती है, जिसका एक छोर अमरनाथ गुफा में खुलता है और दूसरे के अंतिम छोर के बारे में जानकारी ही नहीं है।
12. महम की बावड़ी, रोहतक
ज्ञानी चोर की गुफा के नाम से प्रसिद्ध यह बावड़ी जमीन में कई फीट नीचे तक बनी है। लोग बताते हैं कि अंग्रेजों के शासन के समय एक बारात इस सुरंग के रास्ते दिल्ली जा रही थी, लेकिन बारात में शामिल सभी लोग गायब हो गए। बारात के कई दिन बीत जाने के बाद भी सुरंग में गए बाराती न तो दिल्ली पहुंचे और न ही वापस आए। तब से यह सुरंग चर्चा का विषय बन गई है। किसी अनहोनी होने की घटना की वजह से अंग्रेजों ने इस सुरंग को बंद कर दिया। यह सुरंग अभी भी बंद है।
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