पिछले दिनों न्यूज़ पढ़ी थी कि 30 दिसम्बर 2017 से महू से खंडवा तक चलने वाली मीटर गेज वाली ट्रेन को बंद कर दिया गया है क्योंकि मीटर गेज को ब्रॉड गेज में बदला जा रहा है. अब यह ट्रेन सिर्फ सनावद से महू तक अगली जुलाई तक ही चलेगी. ये ट्रैक अंग्रेजो के समय का बनाया हुआ है और भी काफी सुचारू रूप से कार्य कर रहा है. ब्रॉड गेज वाला ट्रैक इस पुराने ट्रैक को छोड़कर दूसरी जगह बनेगा. इस तरह एक ऐतिहासिक ट्रैक बंद हो जायेगा.
इस ट्रैक को देखने की मेरी इच्छा बहुत पुरानी थी. संयोग से यह इच्छा ऑफिस की छुट्टी होने से पूरी हो गई. सुबह सुबह ही महू से बड़वाह तक मीटर गेज ट्रेन से यात्रा करने और इस ऐतिहासिक ट्रैक को देखने का प्लान बना. नेट पर चेक किया तो महू से सनावद तक दिन में चार ट्रेन जा रही है और इतनी ही वापस आ रही है. महू से सुबह 06.05, 09.05, दोपहर 02.00 और शाम 07.30 बजे सनावद के लिए ट्रेन है. हमने दोपहर 2 बजे वाली ट्रेन से जाने का तय किया. महू से सनावद तक के 64 किलोमीटर लम्बे ट्रैक में पातालपानी, कालाकुंड, चोरल, बलवाडा, और बड़वाह स्टेशन पड़ते है.
पातालपानी स्टेशन के पास ही प्रसिद्ध पातालपानी झरना है जो कि मप्र टूरिज्म द्वारा संवर्धित किया गया है. यहाँ पुरे साल टूरिस्ट आते है. ट्रेन से ही पातालपानी झरना दिखाई देता है. ट्रेन जब पहाड़ियों और सुरंगों से होती हुई गुजरती है तो यात्रियों को बरबस शिमला कालका ट्रेन का ट्रैक याद आ जाता है. पातालपानी से अगले स्टेशन कालाकुंड के बीच अंग्रेजो के समय की ही बनाई गई 4 बड़ी सुरंगे पड़ती है. कालाकुंड स्टेशन सुरम्य पहाड़ियों से घिरा हुआ स्टेशन है जो 2 और वजहों से प्रसिद्ध है.
पहली वजह यहाँ मिलने वाला कलाकंद जो कि दो स्वादों में मिलता है - मीठा और कम मीठा और वो भी सिर्फ दस रूपये में. मालवा निमाड़ से लेकर अकोला – जलगाँव तक के यात्री यहाँ के कलाकंद का स्वाद जरुर चखते है. और दूसरी वजह यहाँ भारत स्काउट एवं गाइड का कैंप है. यहाँ अलग अलग ग्रुप में स्काउटिंग के लिए स्टूडेंट्स आते है और ट्रैकिंग करते है. मैं जब स्कूल में था तब स्काउट कैंप में कालाकुंड आने का मौका चुक गया था. हमें भी ट्रैक एक आस पास पहाड़ियों पर ट्रैकिंग करते हुए करीब 50 स्काउट्स का ग्रुप मिला था. आज यह जगह देखने के बाद मुझे स्काउट कैंप में यहाँ आने का मौका चुकने का बहुत अफ़सोस हुआ.
यही बीच में मालवा निमाड़ के आदिवासी नायक टण्टया भील की समाधी भी आती है जहाँ ट्रेन रुक कर हॉर्न बजाकर उन्हें श्रद्धांजलि देती है.
तीसरा स्टेशन चोरल है जो कि चोरल नदी के किनारे है. यहाँ से चोरल डेम और रिसॉर्ट्स नजदीक ही है. यहाँ भी पर्यटक साल भर आते है. मैं तो पुरे समय दरवाजे पर ही खड़ा रास्ते में आने वाली नदियों, पहाड़ियों, झरनों, सुरंगों, और जंगल को ही देखता रहा. कभी कभी मंजिल से ज्यादा खुबसूरत रास्ते होते है और मन करता है कि हम यूँ ही सफ़र करते रहे.
कुल 2 घंटो में हम महू से बड़वाह पहुँच गए. वहां से खेडी घाट होते हुए बड़वाह से वापस इंदौर बस से आ गए. इन 2 घंटो की यात्रा में हमने इस ऐतिहासिक ट्रैक पर वो स्थान देखे जो इतिहास के साक्षी रहे है जो शायद आने वाले समय में लोगो को देखने को ना मिले. और हाँ इंदौर से 2 लोगो को जाने और आने में इसमें सिर्फ 300 रूपये खर्च हुए.इस ट्रैक को बंद करने के बजाय बहुत कम खर्च में एक टूरिस्ट ट्रैक में बदला जा सकता है. जो कि मालवा निमाड़ के ऐतिहासिक गौरव का साक्षी रहा है.
05 जनवरी 2017
रेलवे मंत्रालय ने यात्रियों और टूरिस्ट की माँग को समझते हुए इस नैरो गेज ट्रैन की जगह नई हेरिटेज ट्रैन 25 दिसंबर 2018 से चालु कर दी है. हेरिटेज ट्रैन में भी कई टूरिस्ट अब तक यात्रा कर चुके है और जल्दी ही ये ट्रैन भी शिमला कालका और दार्जिलिंग वाली टॉय ट्रैन की तरह मध्य प्रदेश की प्रसिद्ध हेरिटेज ट्रैन हो जायेगी
- कपिल कुमार