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आज अंडमान में मेरा दूसरा दिन था और पहले दिन मैंने सेल्युलर जेल, चाथम आरा मिल और कोर्बिन तट देखा। दूसरे दिन मुझे नील-हेवलॉक द्वीप के लिए निकलना था, लेकिन उस तारीख को अधिकतर बजट होटलों की ऑनलाइन बुकिंग पहले ही हो चुकी थी, इस कारण नील का कार्यक्रम एक दिन आगे खिसक गया और दूसरा दिन भी पोर्ट ब्लेयर में ही बिताने का सोचा क्योंकि यहाँ भी अभी देखने को काफी कुछ बचा था।
खूबसूरत रॉस द्वीप (Ross Island)
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पोर्ट ब्लेयर से लगभग सटा ही हुआ है- रॉस द्वीप जो प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही एक इतिहास को भी खुद में समेटा हुआ है। इस द्वीप पर जाने के लिए राजीव गाँधी वाटर स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स से नाव की सुविधा है। यहाँ की जेट्टी का नाम है- अबरदीन जेट्टी। रॉस जाने लिए सुबह-सुबह छह बजे ही मैं इस काम्प्लेक्स पर पहुँच गया पर मालूम हुआ की नावें तो आठ बजे से चलती हैं। पर दो घंटे बिताना यहाँ बिलकुल भी उबाऊ नहीं था। बहुत सारे लोग सुबह यहाँ मॉर्निंग वाक के लिए आये थे, बैठने के लिए भी अच्छी व्यवस्था थी, चारों तरफ समुद्र और चलती हवाएं- और सामने दिखता रॉस द्वीप और दूर नार्थ बे का लाइट हाउस। आठ बजते ही मैं टिकट काउंटर की तरफ गया, पर अभी ये खुला नहीं था। काउंटर पर तीन द्वीपों के नाव टिकट के किराये कुछ ऐसे थे- सिर्फ रॉस द्वीप का आना-जाना 200 रूपये, नार्थ बे एवं रॉस द्वीप- 550 रूपये, नार्थ बे, रॉस एवं वाईपर द्वीप- 700 रूपये। जो नाव आपको ले जायगी, आना भी उसी नाव से पड़ेगा, और कौन सी नाव किसकी है, यह पहचानने के लिए हर नाव को एक अलग नाम दिया जाता है। नार्थ बे में घूमने को कुछ नहीं, सिर्फ वाटर स्पोर्ट्स करना हो तो जा सकते हैं, वाईपर द्वीप के लिए यात्री कम आते हैं, इसलिए उसकी सेवा ही बंद थी। मैंने रॉस और नार्थ बे का टिकट लिया और मुझे नंदिनी नामक बोट में जाना था। सुबह के साढ़े आठ बजे काफी संख्या में पर्यटकों की भीड़ होने लगी, वाटर स्पोर्ट्स वाले अपना दुकान लगाने लगे- बोटिंग, राफ्टिंग, गलास बॉटम राइड, स्कूबा डाइविंग, सबमरीन राइड आदि। इनका भी टिकट पहले से कटाया जा सकता है, नाव वाले तब तक सभी यात्रियों की प्रतीक्षा करेंगे जब तक सभी की एक्टिविटी खत्म नहीं होती।
नार्थ बे असल में एक टापू नहीं बल्कि एक तट है, फिर भी इसे अक्सर टापू कहा जाता है। नक़्शे में आप देखें तो पाएंगे की यह बम्बूफ्लैट द्वीप के उत्तरी छोर पर है और चारो ओर से पानी से घिरा है ही नहीं, इसलिए इसे टापू कहना गलत होगा। एक नाव में करीब पंद्रह-बीस यात्री बैठे और पहले नार्थ बे ही ले जाया गया। लगभग आधे घण्टे की अंडमान में यह पहली समुद्री यात्रा रही। नार्थ बे के करीब आते ही नाव पर उपस्थित एक स्टाफ ने समझाना शुरू किया- "यह टापू किसी की व्यक्तिगत जागीर है, इसलिए यहां गन्दगी न फैलाएं। यहाँ छह प्रकार की वाटर एक्टिविटी होती है - तीन प्रकार की एक्टिविटी में भींगना नहीं पड़ता और बाकि के तीन में भींगना पड़ता है।" उसने दस मिनट तक सारे स्पोर्ट्स के बारे समझाया। मुझे पहले ही पता था की स्कूबा-सी वाकिंग वगैरह काफी महंगे होते हैं और इनके बारे निश्चित नहीं था की करूँ या नहीं। जिन्हे कुछ नहीं करना, उनके लिए नार्थ बे आना बेकार ही है। कोरल देखने के लिए पानी में बिना भीगे एक तरीका है ग्लास बॉटम राइड। नाव के पेंदे में मैग्नीफाइंग ग्लास लगी होती है जो बीस फ़ीट तक की गहराई के कोरल और मछलियां आपको पांच फ़ीट नीचे महसूस करा देंगी। मैंने बीस मिनट के ग्लास बॉटम राइड की फीस नार्थ बे में पांच सौ रूपये दी, पर बाद में पता चला था की कहीं-कहीं यह तीन सौ में भी होता है। अंडमान के बहुत सारे तटों पर तो कोरल यूँ ही नंगी आँखों से भी दिख जाते हैं।
ग्लास बॉटम करने के बाद मैं नार्थ बे पर आगे बढ़ा। एक बोर्ड पर मगरमच्छ होने की चेतावनी लिखी थी। शायद पहले कभी देखा गया हो। सभी लोगों की एक्टिविटी खत्म होने में अभी दो घंटे का वक़्त बाकि था, उसके बाद ही रॉस द्वीप पर जाना था। नार्थ बे वाटर स्पोर्ट्स करवाने वालों के लिए सिर्फ एक बाजार है। स्कूबा से सस्ती एक एक्टिविटी है- स्नॉर्केलिंग जिसमें शरीर को पूरा डुबाना नहीं पड़ता, सिर्फ एक चश्मा और फेस मास्क लगा पानी के अंदर झांकना होता है। हाफ मास्क स्नॉर्केलिंग की फीस है तीन सौ रूपये और फुल मास्क की पांच सौ। सस्ती होने के कारण अंत में इसे भी मैंने आजमा ही लिया।
दिन के साढ़े बारह बजे सभी की एक्टिविटी खत्म हुई और रॉस द्वीप की ओर हमारे नाव नंदिनी ने प्रस्थान किया। रॉस एक-डेढ़ किमी लम्बा एक छोटा सा टापू है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व काफी अधिक है। वर्तमान में यह नौसेना के अधीन है और अंदर जाने के लिए तीस रूपये का टिकट लेना होता है। अंदर जाते ही द्वीप की सुंदरता का क्या कहना! नारियल के इतने ऊँचे-ऊँचे पेड़ आज तक कहीं नहीं देखे थे! द्वीप पर रंग-बिरंगे हिरण और मोर आसानी से विचरते हुए देखे जा सकते हैं।
पैदल रास्ते के दोनों तरफ रॉस का संक्षिप्त इतिहास लिखा हुआ है, सारा कुछ तो अभी याद नहीं पर सारांश में यह बताऊंगा की अंग्रेजों ने दो सौ वर्षों से भी पहले इस द्वीप पर अपना बसेरा बनाया था। भौगोलिक सुंदरता के कारण धीरे-धीरे अनेक फौजी, व्यापारी, अफसर यहाँ बसने लगे। लगभग पांच सौ की आबादी यहाँ रहती थी जिसमें कुछ भारतीय व्यापारी भी शामिल थे। डाकघर, गिरिजाघर, स्विमिंग पूल, दुकान, अस्पताल आदि का निर्माण होने लगा। शाम के वक़्त तह टापू एक विशाल जहाज की भांति चमकता था। इतनी सारी सुख सुविधाओं के कारण ही इसे उस वक़्त पेरिस ऑफ़ ईस्ट (Paris of East) कहा जाता था। आज के समय ये सारे खँडहर में तब्दील हो चुके हैं और उनपर बड़े-बड़े पेड़ों का कब्ज़ा हो चुका है।
1942 में इस द्वीप पर दोहरी मार पड़ी- एक भयंकर भूकंप की और दूसरी विश्वयुद्ध की। भूकंप ने द्वीप के दो टुकड़े कर दिए। लोग भयभीत होकर द्वीप से भागने लगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय इस द्वीप पर भी जापानियों का कब्ज़ा हो गया, सारे अंग्रेज उनके डर से पहले ही मुख्य भूमि पलायन कर चुके थे। भारतीयों ने सोचा की अब वे अंग्रेजों से आजाद हो गए हैं, लेकिन यह उनकी ग़लतफ़हमी थी। उलटे जापानियों ने भारतीयों को अंग्रेजों का जासूस मानकर उनके ऊपर भी जुल्म करना शुरू कर दिया। द्वीप के चारो तरफ अपने बंकर बनाने शुरू कर दिए, एक बंकर तो आज भी द्वीप के मुख्य द्वार पर बिल्कुल सही अवस्था में मौजूद है।
2004 की सुनामी के वक़्त रॉस द्वीप ने खुद क्षतिग्रस्त होकर पोर्ट ब्लेयर को नष्ट होने से बचा लिया। सुनामी के कारण द्वीप के कुछ हिस्सों में दरारें आ गयी, कुछ हमेशा के लिए जलमग्न ही हो गए।
द्वीप के बिलकुल आखिरी सिरे तक मैं गया और यहाँ समुद्र के नीले रंग की बहुत सारे फोटो लिए। खंडहरों को देखता रहा, ये तब क्या थे और अब क्या हैं, दोनों के फोटो लगे हुए हैं। दो-ढाई घंटे तक यहाँ विचरता रहा, वक़्त न जाने कब निकल गया। रॉस द्वीप से वापस अबरदीन जेट्टी लौटते समय एक दिलचस्प वाक्या हुआ। हेवलॉक से पोर्ट ब्लेयर की और तेजी से प्राइवेट शिप मैक्रूज आ रहा था। हमारी ये बोट नंदिनी उसके मुकाबले काफी छोटी थी, इसलिए उसे पास देने के लिए इसे अपनी गति कम करनी पड़ी, मैक्रूज सामने से गुजरा, फिर हम आगे बढे।
रोस द्वीप के खुबसूरत नज़ारे
रोस द्वीप के कुछ विडियो भी -
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