एक कर्मचारी होने की वजह से मुझे कई बार काम से अपने देश के विभिन्न हिस्सों में जाने का अवसर प्राप्त होता है। इस बार मुझे पंजाब के पठानकोट जाने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं पहले कभी भी पंजाब के किसी हिस्से में नहीं रहा लेकिन मै ट्रेन से कई बार इससे गुजरा हूं देश के अन्य हिस्सों में जाने के लिए। तो ये मेरे लिए एकदम नई जगह थी। जब मुझे वहां जाने का ज्ञात हुआ तो पहले तो मैं थोड़ा निराश हुआ क्योंकि मैं उस समय देश की एक बहुत ही खूबसूरत और तेजी से बढ़ने वाले शहर जोधपुर में था। अब जब मेरा जाना एकदम तय था तो मैंने पठानकोट के बारे में जानना शुरू किया और इंटरनेट के माध्यम से खुद से भी जानकारी एकत्रित की । यकीन मानिए जैसे जैसे मेरी जानकारी आगे बढ़ रही थी मेरे अंदर इस शहर को देखने की उत्सुकता भी बढ़ रही थी। मुझे पता चला कि यह पंजाब और हिमांचल की सीमा पर स्थित है और यहां से हिमालय की वादियों का बहुत ही खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। यहां से हिमांचल के कई खूबसूरत जगहें जैसे कांगड़ा, धर्मशाला, मैक्लायड गंज, डलहौजी, खजियार आदि वगैरह काफी समीप में ही स्थित हैं। और इन जगहों पर जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन ही पठानकोट है। फिर मुझे अपने एक साथी मित्र द्वारा मिली जानकारी मेरी उत्सुकता और भी बढ़ा रही थी कि यहां से कांगड़ा और हिमाचल प्रदेश के अन्य हिस्सों के लिए रेलवे की छोटी लाइन पर टाॅय ट्रेन भी चलती है। मैंने इससे पहले कभी भी टाॅय ट्रेन नहीं देखी थी । अब मुझे ख्यालों में ही पठानकोट की अच्छी छवि दिखाई देने लगी थी।
इन सभी के बीच मैंने जोधपुर को अलविदा कहा और कुछ दिन अपने गृहनगर में बिताने के बाद पठानकोट की ओर प्रस्थान किया। अभी मैं ट्रेन में बैठा ही था कि वहां की जगहों को घूमने और देखने का प्लान बनाने लगा था। यही सोचते हुए एक रात बीती और अगली सुबह मैं पठानकोट कैंट रेलवे स्टेशन पंहुचा। जैसा पठानकोट मेरी कल्पना में था यह उससे काफी खूबसूरत था। वहां से हिमालय की वादियों का नजारा सचमुच अद्भुत था। जनवरी महीना होने की वजह से वहां से दिख रही अधिकांश चोटियां बर्फ की चादरों से ढंकी हुई थी। फिर मैंने वहां के कार्यालय में पहुंचने के बाद वहां के लोगों से और जानकारियां एकत्रित की। फिर मुझे पता चला कि कार्यालय के ही कुछ लोग उस सप्ताहांत में डलहौजी जाने का प्लान बना रहे हैं। मैं नया होने की वजह से वहां ज्यादा किसी को जानता नहीं था तो मैं इस बारे में किसी से बोलने में झिझक रहा था। उसी रात जब मैं अपने कमरे में था तो उनमें से एक साथी मेरे पास आया और बोला कि हममे से एक का प्लान बदल गया है अगर मैं चाहूं तो उनके साथ जुड़ सकता हूं।बस फिर क्या था मैंने हां बोला और खुशी खुशी वहां जाने की तैयारी की। ठण्ड का अंदाजा न होने की वजह से उन्होने मुझे कुछ गर्म कपड़े उपलब्ध कराएं। ये जैकेट उनमें से ही किसी एक का है 😝😝। एक फोर्स ट्रैवेलर जो कि पहले से ही बुक थी लेकर हम सभी चलें। उलटी वगैरह करते हुए हम सभी डलहौजी पंहुचे🤣🤣। वहां पर सड़कों में बर्फ की चादर जमी होने से गाड़ियों के पहिए फिसल रहे थे तो हमने अपनी गाड़ी थोड़ा पहले ही छोड़ दी और पैदल ही आगे बढ़ने का फैसला किया जोकि एक बहुत अच्छा फैसला था। आगे गाड़ियों का लम्बा जाम लगा हुआ था। सिर्फ आर्मी के ट्रक जिनके पहियों पर लोहे की जंजीरें लगी थी वो ही आगे बढ़ पा रहे थे। वहां ज्यादातर क्षेत्र आर्मी कैंप के अंतर्गत आता है । वहां पर हर तरफ सड़कों पर पेड़ो पर गाड़ियों पर बर्फ ही बर्फ नजर आ रही थी। वहां से जो हिमालय देखा नीचे पठानकोट शहर से तो इसका पांच प्रतिशत भी नहीं दिखता। क्या अद्भुत नजारे थे । फिर जैसा कि हर ग्रुप में होता है सब अपना मोबाइल और कैमरा उठाकर अपनी फोटोग्राफी का कौशल दिखाने लगे🤣🤣🤣🤣🤣 और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे। ऊपर बर्फ को हटाने के लिए जेसीबी मशीन लगी हुई थी। और फिर इतनी ठंड में एक गरमागरम मैगी ना खाते तो फिर एक तरह मैगी के साथ गुनाह कर बैठते तो फिर एक छोटी सी दुकान पर सबके लिए मैगी मंगायी गयी। अब क्या था बस एक ही चीज की कमी रह गई थी बर्फबारी देखने की वो भी शुरू हो गई । अब किसी से रहा ना गया फिर बर्फ के गोले के हमलों का जो सिलसिला शुरू हुआ वो रूकने का नाम नहीं ले रहा था। हमने शाम तक वहां समय बिताया और फिर बेमन वापस अपनी गाड़ी की तरफ वापस आने लगे। ये मेरे लिए एक यादगार यात्रा थी। इतने कम समय में मेरे अब इतने सारे मित्र बन गये थे।
और हां आने के बाद दूर से ही सही पर मैं जाकर टाॅय ट्रेन देख आया 😜😜😜। अभी सफर करने का अवसर नहीं मिला। तो इसलिए To be continued...