हिमाचल तो वैसे भी खूबसूरती का नगीना है, यहाँ की हर जगह प्रकृति का एक तोहफा है। प्रकृति की सुंदरता तो आपको यहाँ हर जगह मिलेगी लेकिन सुंदरता के साथ रोमांच का एहसास करना हो तो नारकंडा आना होगा। हिमाचल प्रदेश का नारकंडा भारत का सबसे पुराना स्कीइंग डेस्टिनेशन है। नारकंडा हिल स्टेशन को प्रकृति का उपहार कहा जाना चाहिए। यहाँ की सुंदरता का इन्द्रधनुषी रंग किसी को भी मोह लेता है। हिमाचल प्रदेश का छोटा-सा शहर नारकंडा में स्थित ये हिल स्टेशन प्रकृति के रंगों से पूरी तरह से लबरेज है। समुद्र तल से करीब 2,700 मीटर की ऊँचाई पर बसा नारकंडा हिल स्टेशन के चारों तरफ हरियाली है। मखमली हरी घास के ये मैदान बेहद सुखद एहसास कराते हैं। यहाँ घूमते हुए लगता है कि हम किसी दूसरी ही दुनिया में आ गए हों।
दिल्ली से हिमाचल दूर नहीं है। जो लोग शिमला जाते हैं वे नारकंडा तक तो पक्का जाते हैं। नारकंडा है ही ऐसा कि इसके बिना हिमाचल का सफर अधूरा रहता है। मैं भी नारकंडा के सफर पर निकल पड़ा था। दिल्ली से कालका पहुँचा और वहाँ से ट्रेन से शिमला। कालका से नारकंडा तक पहुँचने में करीब-करीब 6 घंटे लगे। लेकिन मेरा यकीन मानिए कि रास्ता इतना सुंदर है कि आपको ये 6 घंटे बेहद सुकून वाले लगेंगे। लहलहाते पेड़ और घुमावदार रास्तों के बीच कब सफर पूरा हो गया पता ही नहीं चला। रास्ते में दूर-दूर तक सुंदर पहाड़, जंगल और बहती नदी का दृश्य बेहद खूबसूरत था।
रंगीन फिज़ाओं-सा शहर
कुदरत की रंगीन फिज़ाओं में बसा ये छोटा-सा हिल स्टेशन खूबसूरत पहाड़ों से घिरा हुआ है। ऊँचे रई, कैल और ताश के पेड़ों की ठंडी हवा यहाँ के शांत वातावरण को और प्यारा बना देती है। हम जब यहाँ पहुँचे तब तक शाम हो चुकी थी, हम सीधे अपने होटल पहुँचे। रात को तो कहीं जा नहीं सकते थे इसलिए वहीं आसपास टहलते रहे। जब सुबह आँख खुली तो बाहर का नज़ारा देखकर तो मेरे होश ही उड़ गए। सूरज की किरणें धीरे-धीरे पहाड़ों पर गिर रहीं थीं, ये नजारा वाकई खूबसूरत था। एक पहाड़ के पीछे दूसरा पहाड़ और उसके पीछे कुछ और ये पहाड़। इन सबमें सबसे खूबसूरत थे वो घर जो पहाडों के बीच बने हुए थे। मैं पैदल चलते-चलते इस शहर को देख रहा था और इसकी खूबसूरती का एहसास कर रहा था।
मैं चलता जा रहा था और मखमली घास के सुंदर पहाड़ों को देख रहा था। पहाड़ पर बिछी बर्फ की चादर तो इस नजारे को और भी खूबसूरत बना रही थी। बर्फबारी के बीच नारकांडा और भी रोमांच से भर जाता है। यहाँ के हर मौसम का पहलू बेहद अलग और खास होता है, मौसम चाहे गर्मी का हो या सर्दी का। बर्फबारी का मजा लेना हो तो नारकंडा हिल स्टेशन आपके लिए बेहतरीन जगह है। अक्टूबर से फरवरी तक ये हिल स्टेशन बर्फ से भरा रहता है। नारकंडा हिल स्टेशन का एक बड़ा इलाका जंगलों से भरा हुआ है। जिसमें काॅनिफर, ऑक, मेपल, पापुलस, एस्कुलस और कोरीलस जैसे पेड़ पाये जाते हैं।
नारकंडा की सबसे फेमस जगह है हाटू पीक, जिसे नारकंडा हिल स्टेशन की सुंदरता का नगीना कहा जा सकता है। ये नारकंडा की सबसे ऊँचाई पर स्थित है, समुद्र तल से इसकी ऊँचाई करीब 12,000 फुट है। इस चोटी पर हाटू माता का मंदिर है, इस मंदिर को रावण की पत्नी मंदोदरी ने बनवाया था। यहाँ से लंका बहुत दूर थी लेकिन मंदोदरी हाटू माता की बहुत बड़ी भक्त थी और वे यहाँ हर रोज़ पूजा करने आती थीं। हाटू पीक नारकंडा से 6 कि.मी. की दूरी पर है। मैंने कैब बुक की और हाटू पीक के लिए निकल पड़ा। नारकंडा से थोड़ी ही आगे निकलने पर रास्ता कट जाता है जो हाटू चोटी की ओर जाता है। सुबह-सुबह हवा सर्द थी, जो थोड़ा-थोड़ा ठंड का एहसास करा रही थी।
ठंड ही वजह से आसपास कोहरा छाया हुआ था। पहाड़ों के बीच से जब हम हाटू पीक पहुँचे तो बेहद अच्छा लग रहा था। हाटू पीक का इलाका देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ था, चारों तरफ देखने पर लगता है यहाँ किसी ने सभी रंग को हवा में फैला दिए हों और वे रंग ही अब चारों तरफ नज़र आ रहे हैं। हाटू पीक का यहाँ के लिए धरती का गहना कहना सही होगा। इस सुंदरता के बीच सेब के पेड़ टूरिस्टों को और भी अच्छे लगते हैं। हाटू पीक का ऐतहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व है।
भीम का चूल्हा
हाटू मंदिर से 500 मीटर आगे चले तो तीन बड़ी चट्टानें मिलीं। इनके बारे में कहा जाता है कि ये भीम का चूल्हा है। पांडवों को जब अज्ञातवास मिला था तो वे चलते-चलते इस जगह पर रूके थे और यहाँ खाना बनाया था। ये चट्टानें उनका चूल्हा था और इस पर भीम खाना बनाते थे। ये सोचने वाली बात है कि इन पत्थरों पर कितने बड़े बर्तन रखे जाते होंगे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है पांडव कितने बलशाली थे! भीम का चूल्हा देखकर मैं वापस नारकंडा लौट आया।
सेबों का भंडार- ठानेधार
अगले दिन का प्लान सेबों के बीच घूमना और इसके लिए जगह चुनी, कोटगढ़ और ठानेधार। कोटगढ़ और ठानेधार नारकंडा से 17 कि.मी. की दूरी पर हैं। कोटगढ़, सतलुज नदी के किनारे बायें तरफ बसा है। अपने ऐसे आकार के लिए ये एक फेमस घाटी है, वहीं ठानेधार सेब के बगीचों के लिए फेमस है। कोटगढ़ घाटी को देखने वो लोग आते हैं जिनको बर्फ और पहाड़ों के बीच अच्छा लगता है। यहाँ से कुल्लु घाटी और बर्फ से ढंके पहाड़ों के नजारों को देखकर आनंद लिया जा सकता है। ठानेधार इलाका सेबों की खूशबू से महकता है और इसका श्रेय जाता है सैमुअल स्टोक्स को। स्टोक्स भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर 1904 में भारत आए। गर्मियों में वे शिमला आए और यहाँ की प्रकृति को देखकर यहीं बसने का फैसला ले लिया। वे कोटगढ़ में रहने लगे, उन्होंने यहाँ सेब का बगीचा लगाया जो बहुत फेमस हो गया। यहाँ आज भी स्टोक्स फाॅर्म है, जिसे देखा जा सकता है।
स्कीइंग का रोमांच
हिमाचल प्रदेश के तिब्बती रोड पर स्थित नारकंडा हिल स्टेशन पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रहता है। शिवालिक की पहाड़ियों से घिरा ये हिल स्टेशन पर्यटकों के लिए कुछ खास जगह बनाये हुए है। सर्दियों में नारकंडा में स्कीइंग के मज़े ही कुछ और होते हैं। बर्फ में स्कीइंग करना और देखने वाला नज़ारा अलग ही होता है। नारकंडा स्कीइंग के लिए खास माना जाता है। जब अक्टूबर से मार्च तक पूरा नारकंडा बर्फ से ढका होता है तब यहाँ स्कीइंग का रोमांच बढ़ जाता है। स्कीइंग करते हुए घना वन और सेब के बागानों की खूशबू ताज़गी भर देती है।
नारकंडा मार्केट
प्रकृति के नजारे के बीच आप यहाँ नारकंडा के बाज़ार को चलते-चलते नाप सकते हैं। यहाँ का बाजार उतना ही है जितनी एक सड़क। इस बाजार में छोटी-छोटी दुकानें हैं, बेढ़ंगी-सी। जिनमें मसाले छोले-पूरी से लेकर कीटनाशक दवाईयाँ मिलती हैं। अगर आपको नारकंडा के सेबों का स्वाद लेना है तो बागान के मालिक से पूछकर तोड़ सकते हैं। यहाँ के लोग बेहद प्यारे हैं, वे सेब लेने से मना नहीं करेंगे। काली मंदिर के पीछे यहाँ कुछ तिब्बती परिवार भी रहते हैं।
कैसे पहुँचे?
नारकंडा पहुँचने के लिए सभी साधन उपलब्ध हैं। अगर आप फ्लाइट से जाना चाहते हैं तो निकटतम एयरपोर्ट भुंतर में है। भुंतर एयरपोर्ट से नारकंडा हिल स्टेशन की दूरी 82 कि.मी. है। अगर आप ट्रेन से आने की सोच रहे हैं तो सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन शिमला है। शिमला से नारकंडा की दूरी 60 कि.मी. है। अगर आप बस से आना चाहते हैं तो वो भी उपलब्ध है। पहले शिमला आइये और शिमला से नारकंडा की सीधी बस आपको दो घंटे में पहुँचा देगी।
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