मानसून की शुरुआत होते ही महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट जिन्हें सह्याद्रि के नाम से भी जाना जाता है हरियाली से भर उठते हैं। मध्य जून से जब यहाँ बारिश होने लगती है तो गर्मी दूर हो जाती है और मौसम खुशगवार हो जाता है। मुंबई, पुणे और इनके आस-पास के लोग
उत्साह से भर उठते हैं क्योंकि यह वो समय होता है जब कई ट्रेक्स खुल जाते हैं। झमाझम बारिश के बीच जंगलों और झरनों के बीच से ट्रेकिंग करने का आनंद एक साल के बाद फिर जो आ गया होता है।
पिछले साल मुंबई में रहते हुए मुझे भी पहली बार सह्याद्रि में ट्रेक करने का अनुभव मिला। चूँकि मैं इस क्षेत्र से अब तक अनजान था इसलिए मैंने ट्रेक ग्रुप के साथ करने का निर्णय लिया। कुछ दिनों के सोच-विचार के बाद एक दोस्त ने ट्रेकिंग ग्रुप का एक पैकेज शेयर किया। यह पैकेज सब को पसंद आया और हमने तय किया कि इसी ट्रेक पर चल पड़ते हैं।
ऑफिस के बाद शनिवार रात को हम ट्रेक ग्रुप के बताए पिक अप स्पॉट - अँधेरी में पहुँच गए।
यहाँ उनकी बस थोड़ी देर में आयी और हम रवाना हो लिए। अँधेरी, बांद्रा-कुर्ला से होते हुए बस घाटकोपर के रास्ते होते हुए अन्य ट्रेकर्स को पिक करती गयी। रात 12 बजे तक सभी यात्री आ गए।
क़रीब 16 लोग इस ट्रेक पर आ रहे थे जिनमें लड़के और लड़कियों कि संख्या बराबर थी। एक दूसरे से परिचय के लिए ट्रेक लीडर्स ने एक मज़ेदार गेम खिलाया जिसमें सबको आनंद आया और रास्ता कब कट गया पता ही नहीं चला। सुबह बस एक ढ़ाबे पर रुकी जहाँ सब फ्रेश हुए और चाय-नाश्ता किया।
क़रीब 7 बजे सुबह बस हमें ट्रेक के बेस पर ले गयी। ट्रेक लीडर्स ने हमें ट्रेक कि सारी जानकारी और सावधानियाँ बरतने के टिप्स दिए। और फिर हमने ट्रैकिंग शुरू कर दिया।
बारिश बूंदा-बांदी से धीरे धीरे तेज़ होती जा रही थी। पर ग्रुप में सभी एक दूसरे का ढ़ाढ़स बढ़ाते चल रहे थे। क्योंकि सभी लोग घुल मिल गए थे तो हँसी-ठिठोली करते हुए, एक दूसरे को सहारा देते हुए आगे बढ़ रहे थे। इस ट्रेक पर और भी कई ग्रुप्स आये हुए थे और वह भी हमें चढ़ाई के दौरान अपने से आगे-पीछे मिल जा रहे थे।
बारिश के कारण ऊमस बढ़ती जा रही थी। कुछ लोगों ने अपने रेनकोट उतार दिए और भीगते हुए ट्रेक करना ज़्यादा मुनासिब समझा। वैसे भी रेनकोट पहने हुए भी पसीने से भीगना लाजिमी था। हिमालय से अलग सह्याद्रि में बारिश के समय ठण्ड बहुत ज़्यादा नहीं होती इसलिए भीगते हुए ट्रेक करना उतना मुश्किल नहीं था। आगे बढ़ने पर बारिश का पानी झरने कि तरह पत्थर कि सीढ़ियों से बहता हुआ नीचे आने लगा। ट्रेक करते वक़्त वाटर-प्रूफ़ जूते ही पहन कर जाना चाहिए। जब इस तरह पूरे रास्ते आपके पैर पानी में डूबे रहते हैं तो जूतों के टूटने-फटने की सम्भावना बढ़ जाती है। मेरे दोस्तों के जूते पुराने होने की वजह से फट गए थे और उन्हें ट्रेकिंग में दिक्कत आयी।
धीरे-धीरे 4 घंटों की चढ़ाई के बाद हम पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गए। ये था नानेघाट:
नानेघाट पश्चिमी घाट में स्थित एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण पहाड़ी दर्रा है। जुन्नार शहर के पास स्थित, नानेघाट सदियों से एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग रहा है, जो कोंकण क्षेत्र को डेक्कन प्लैटू से जोड़ता है। नानेघाट नाम का स्थानीय भाषा में अनुवाद सिक्का पास है, जो प्राचीन काल के दौरान व्यापार के लिए एक टोल बूथ के रूप में इसकी भूमिका को दर्शाता है।
यह पास अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, जो आसपास के मनमोहक दृश्य पेश करता है। हरी-भरी पहाड़ियाँ, गिरते झरने और धुंध से ढकी घाटियाँ नानेघाट को ट्रेकर्स और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य बनाती हैं। जैसे की मैंने ट्रैकिंग के वृत्तांत में बताया - नानेघाट की यात्रा में मध्यम चुनौतीपूर्ण मार्ग को पार करना शामिल है, जो घने जंगलों और चट्टानी इलाके से होकर गुजरता है, जो अंततः नानेघाट पास के शीर्ष तक जाता है।
अपने प्राकृतिक आकर्षण के अलावा, नानेघाट का ऐतिहासिक महत्त्व भी है। यह दर्रा सातवाहन और मौर्य काल के दौरान एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग था, जो पहली शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास का था। मार्ग के किनारे कई शिलालेख और चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएँ हैं, जिनमें प्रसिद्ध नानेघाट गुफाएँ भी शामिल हैं। ये प्राचीन गुफाएँ व्यापारियों और यात्रियों के लिए विश्राम स्थल के रूप में काम करती थीं और इनमें जटिल मूर्तियाँ और शिलालेख थे। चूँकि बारिश अब बहुत तेज़ हो रही थी और सभी ट्रेकर्स थके हुए थे तो सब इस गुफ़ा में ही थोड़ी देर विश्राम करने लगे।
15 - 20 मिनट बाद हम आगे बढ़ने को तैयार हो गए। हम पहाड़ी की चोटी पर थे जहाँ से हम नीचे 200 मीटर गहरी खाई देख सकते थे। लेकिन ये नज़ारा हमारे साथ लुक्का-छिपी कर रहा था। ये खाई पल भर में बादलों से भर जाती और अगले ही पल वह तेज़ी से आगे बढ़ जाते । ये दृश्य वाकई में शानदार था।
यहाँ हमने तसवीरें लीं और ग्रुप के सभी लोगों ने वड़ा - पाव, पोहा आदि खाया। इसके बाद हम और आगे बढ़े क्योंकि हमारी असली मंज़िल तो आगे ही थी। आधे घंटे और चलने के बाद हम वहाँ पहुँचे जिसके लिए हम इस ट्रेक पर आये थे। और यह नज़ारा इतना अद्भुत था कि न ही तसवीरें इसे बयां कर पाएँ न ही लेखनी। नानेघाट का रिवर्स वॉटरफॉल या उल्टा झरना। नीचे गहरी खाई के सामने 130 फ़ीट ऊपर से गिरता पानी। लेकिन इस से पहले कि ये पानी नीचे कि तरह 10 -20 फ़ीट गिरे, नीचे कि और से आती तेज़ हवाएँ ऊपर की तरह तीव्रता से इस पानी को उठा ले जाती हैं और सारा पानी विपरीत दिशा में आकाश की ओर फुहारें बन कर उड़ जाता है। आस-पास उमड़ती-घुमरती तेज़ हवाएँ झरने की कभी छीटें तो कभी बौझारें आपके चेहरे पर लाती हैं। इस बड़े झरने के अलावा पीछे की तरफ पहाड़ों से बारिश का बहता पानी बहुत सारे छोटे झरने और बनाता है। प्रकृति में सराबोर होने के लिए ये स्थान अति उत्तम है। मानसून की खूबसूरती कहीं देखते बनती है तो यही वो जगह है।
पानी में काफ़ी देर खेलने के बाद हमने तसवीरें लीं। पर यदि आपके पास वाटर-प्रूफ़ कैमरा या फ़ोन नहीं है तो तसवीरें लेना ख़तरनाक हो सकता है। बारिश और झरने का पानी आपके इलेक्ट्रॉनिक गैजेट को ख़राब करने के लिए पर्याप्त है।
अब समय था वापसी का। नानेघाट से हम दुबारा ट्रेक कर के नीचे उतरे। इस समय ट्रेकिंग रूट और ख़तरनाक हो गया था । बारिश का पानी तेज़ी से सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था। हर क़दम ध्यान से रखते हुए हम नीचे उतरे। नीचे पहुँच कर हमने थोड़ी देर आराम किया और फिर बस हमें सुबह वाले ढ़ाबे पर ले गयी जहाँ एक महाराष्ट्रियन थाली हमारे इंतज़ार कर रही थी। सूखे कपडे पहनने के बाद हम ने खाना खाया। इतनी थकान के बाद ही खाने का असली आनंद आता है। अब हम वापसी के लिए तैयार थे।
बस में बैठते ही ठंडी हवाओं का आनंद लेते सब की आँख लग गयी। देर रात हम मुंबई पहुँचे जहाँ से सब अपने-अपने घर रवाना हुए।
नानेघाट का दौरा प्राकृतिक सुंदरता और इतिहास का एक अनूठा मिश्रण प्रदान करता है। चाहे किसी को ट्रैकिंग, फोटोग्राफी या प्राचीन इतिहास की खोज में रुचि हो, नानेघाट एक मनोरम स्थल है जो आने वाले सभी लोगों के लिए एक यादगार अनुभव होगा।
क्या आप पश्चिमी घाट के किसी रोमांचक ट्रेक पर गए हैं? अपना अनुभव यहाँ साझा करें।