नागेश्वर ज्योतिर्लिंग एक अनसुलझी कहानी

Tripoto
10th Jun 2022
Day 1

गुजरात में सौराष्ट्र के तट पर श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका और बेटद्वारका द्वीप के मार्ग पर द्वारका से लगभग 26 किमी की दूरी स्थित नागेश्वर मंदिर में स्थापित है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग। इसके बारे में उम्मीद है कि, शायद आपने कम ही पढ़ा होगा क्योंकि इसके बारे में लिखा ही कम गया है। गुजरात के सोमनाथ ज्योतिर्लिंग और द्वारकाधीश धाम की स्टोरी हम पहले ही कर चुके हैं। जिनके लिंक आपको नीचे मिल जायेंगे। आइए हम आगे बढ़ते हैं और जानते है इस रहस्यमयी ज्योतिर्लिंग की कहानी। इसी क्रम में आज हम नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में जानेंगे।

Shiva Statue at Nageshwar ज्योतिर्लिंग

Photo of Saurashtra by Roaming Mayank

लोकेशन

यद्यपि शिवपुराण के अनुसार समुद्र के किनारे स्थित द्वारकापुरी के पास स्थित स्वयंभू शिवलिंग ही ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रमाणित है। फिर भी उपर्युक्त ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त नागेश्वर नाम से दो अन्य शिवलिंगों की चर्चा होती है-

1. महाराष्ट्र के हिंगोली जनपद में स्थित औंध नागनाथ मन्दिर।

2. उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जनपद में स्थित जागेश्वर मन्दिर।

आइए इस गुत्थी को समझने का प्रयास करें!

शिवपुराण में स्पष्ट कहा गया है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग 'दारुकवन' में है, जो प्राचीन भारत में एक जंगल को इंगित करता है। 'दारुकवन’ का उल्लेख भारतीय महाकाव्यों, जैसे काम्यकवन, द्वैतवन, दंडकवन में भी मिलता है।

'दारुकवन' के पौराणिक जंगल का वास्तविक स्थान कौन सा है, इसपर ही चर्चा की जाती है। कोई अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य ज्योतिर्लिंग के स्थान का संकेत नहीं देते हैं इसलिए आज भी 'दारुकावन’ एकमात्र साक्ष्य है, जिसके आधार पर तर्क दिए गए हैं और चर्चाएं की गई हैं। तो चलिए इस साक्ष्य के आधार पर जाने की आखिर इनमें से कौन सा मन्दिर किस आधार पर ज्योर्तिलिंग माना जाता है।

Photo of Daarukavanam by Roaming Mayank

दारुकवन' नाम, दरुवन (देवदार के जंगल) से निकला है, जिनकी अच्छी तादाद उत्तराखण्ड (पश्चिमी हिमालय) में पायी जाती है। आपको बता दें कि देवदार (दरू वृक्ष) केवल पश्चिमी हिमालय में बहुतायत में पाया जाता है और प्रायद्वीपीय भारत में इनका होना न के बराबर है। प्राचीन हिंदू ग्रंथों में देवदार के वृक्षों को भगवान शिव के साथ जोड़ा गया है। सनातन ऋषिमुनि और साधु महादेव शिव को प्रसन्न करने के लिए देवदार के जंगलों में निवास और ध्यान करते थे। प्राचीन ग्रंथ प्रसादमंडनम उल्लेख करता है कि,

"हिमाद्रेरूत्तरे पार्श्वे देवदारूवनं, परम् पावनं शंकरस्थानं तत्रं शिवार्चिताः।"

यानी जिसके उत्तर में हिमालय और पश्चिम में दरुवन है तो यह अल्मोड़ा, उत्तराखंड में स्थित 'जागेश्वर' मंदिर को नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में पहचान देता है।

Photo of Jageshwar Dham by Roaming Mayank

दारुकवन नाम 'द्वारकावन' के रूप में देखा जाय तो यह द्वारका के नागेश्वर मंदिर की ओर रुख करता है। हालांकि, द्वारका के इस हिस्से में ऐसा कोई भी जंगल नहीं है, जिसका भारतीय महाकाव्यों में उल्लेख मिलता हो। श्री कृष्ण के आख्यानों में भी सोमनाथ मंदिर और निकटवर्ती प्रभासतीर्थ का उल्लेख तो है, लेकिन द्वारका में नागेश्वर या दारुकवन का कोई उल्लेख नहीं है। दारुकवन विंध्य पर्वत के साथ लगा हुआ वन भी हो सकता है। यह पश्चिम में समुद्र और विंध्यपर्वत के दक्षिण-दक्षिणपश्चिम में फैला हुआ वनक्षेत्र है।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र (6) में, आदिगुरु शंकराचार्य ने इस ज्योतिर्लिंग की नागनाथ के रूप में अभिव्यक्ति की है :

"यमये सदंगे नागरतिर्मये विभुशितांगम् विशदश्च भोगै सद्भक्तिमुक्तिप्रदीमस्मेकम् श्रीं गगनगनम् शरणम् प्रपद्ये"

अर्थ: यह दक्षिण 'यमये' के 'सदंगा' नगर में स्थित है, जो महाराष्ट्र के औंध हिस्से का प्राचीन नाम था, यह उत्तराखंड में जागेश्वर मंदिर के दक्षिण और द्वारका नागेश्वर के पश्चिम में स्थित है।

Photo of Aundha Nagnath by Roaming Mayank
Photo of Aundha Nagnath by Roaming Mayank

अब बढ़ते हैं शिवपुराण में उल्लेखित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के

पौराणिक इतिहास की ओर :

'एतद् यः श्रृणुयान्नित्यं नागेशोद्भवमादरात्‌। सर्वान्‌ कामानियाद् धीमान्‌ महापातकनाशनम्‌॥'

अर्थात- जो प्राणी श्रद्धापूर्वक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से मुक्त होकर समस्त सुखों का आनन्द लेते हुआ अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्यधाम को प्राप्त होगा.

प्राचीन काल में भारत के पश्चिमी तट पर स्थित समुद्र के पास एक वन में दारुक नामक राक्षस अपनी पत्नी दारुकी के साथ रहता था। दारूकी ने देवी पार्वती की तपस्या कर वरदान प्राप्त किया था कि, वह जिस जंगल में रहती है वह सदैव दारूकी जहां भी जाएगी, उसके साथ जायेगा। इस कारण से उन राक्षसों ने उस द्वारकावन को अपना अत्याचार और वर्चस्व फैलाने का स्थान बना लिया और विनाशकाले विपरीत बुद्धि को चरितार्थ करते हुए उन राक्षसों ने उस जंगल में रहने वाले वैदिक कार्य करने वाले निर्दोष लोगों को त्रस्त करना शुरू कर दिया। लोगों ने तब एक सिद्ध ऋषि औरवा की शरण में गए तो उन्होंने यह अत्याचार जानकार उस दारूक नामके राक्षस और उसकी पत्नी दारुकी को श्राप दिया कि जब भी यह जोड़ा पृथ्वी पर हिंसक कार्य करेगा उसी पल उनका अंत हो जायेगा। ये जानकार देवताओं ने भी मौका देखकर आक्रमण कर दिया। दोनो राक्षस असमंजस में पड़ गए की यदि युद्ध किया तो श्राप से मार जायेंगे और नहीं किया तो देवता दण्ड देंगें। अंततः दोनो राक्षसों ने अपना आधार क्षेत्र जमीन के नीचे समुद्र के तक पर बना लिया और नीचे आधार चले गए। दारुकी को मिले वरदान की वजह से पूरा दारुकावन/द्वारकावन भी उनके साथ समुद्रतल में ही स्थापित हो गया।

लेकिन! जैसे बंदर गुलाटी मारना नहीं छोड़ता वैसे ही इन युगल राक्षसों ने धरती पर आना तो बंद कर दिया लेकिन उसके बाद नौका से व्यापार के लिए जाने वाले लोगों को समुद्र के रास्ते में परेशान करना शुरू कर दिया।

एक बार वहीं पर सुप्रिय नामक एक वैश्य था जो सभी कार्य शिव को अर्पित करता था और बहुत समर्पित शिवभक्त था। एक बार सुप्रिय जब नौका पर सवार होकर उस जलक्षेत्र से जा रहा था, तब राक्षस दारुक ने नौका पर आक्रमण कर सुप्रिय समेत सभी यात्रियों को कैद कर लिया. उसकी शिवभक्ति से #दारुक क्रोधित था। सुप्रिय कारागार में भी अपने नियम के अनुसार शिव की आराधना करता रहा। ऐसा समाचार मिलते ही दारुक उस स्थान पर आया और सुप्रिय को ध्यान मग्न देख बोला कि आंख बन्द करके तुम कौन सा षड़यंत्र रच रहे हो !! सुप्रिय ने कोई उत्तर नहीं दिया, क्रोधित होकर राक्षस ने सुप्रिय को मृत्युदंड का आदेश दे दिया। फिर भी

सुप्रिय ने निडर होकर अपना ध्यान में लगाए रखा, यहां अपने भक्त को संकट में देख भोलेनाथ शिव ने कारागार में ही ज्योतिर्लिंग के रूप में दर्शन दिये और अपना पशुपतिअस्त्र रखकर अंतरध्यान हो गए। पशुपति अस्त्र ने सभी दुष्टों का संहार करके सुप्रिय और अन्य यात्रियों को बचाया और वापस शिवधाम पहुंचा। महादेव शिव के आदेश के अनुसार ही इस ज्योर्तिलिंग का नाम नागेश पड़ा है।

एक अन्य प्राचीन साहित्य 'बालखिल्य' के अनुसार, बौने ऋषियों के एक समूह ने लंबे समय तक दारुकवण में भगवान शिव की तपस्या की। उनकी भक्ति और धैर्य की परीक्षा के लिए, महादेव शिव शरीर पर केवल नाग [सर्प] पहने हुए एक नग्न तपस्वी के रूप में उनके सामने पहुंचे। लेकिन उन बौने संतो की पत्नियां इस तपस्वी की ओर आकर्षित हुईं और उनके पीछे-पीछे चली गईं और अपने पतियों को पीछे छोड़ दिया। वो ऋषि इस बात से बहुत विचलित और क्रोधित हो गए और उन्होंने अपना धैर्य खो दिया, तपस्वी को शाप दिया कि उसका लिंग(पहचान) खो हो जाए [इसके सीमित अर्थों में से एक अर्थ सामान्य लिंग है, लेकिन इसका गहरा आस्तिक अर्थ प्रतीकवाद है, अर्थात् वह जो शिव का प्रतीक है - लिंग]। तत्पश्चात् उस तपस्वी का शिवलिंग धरती पर गिर गया और पूरी दुनिया कांप उठी। भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु, भगवान शिव के पास आए, उनसे पृथ्वी को विनाश से बचाने और अपने शिवलिंग को वापस लेने का अनुरोध किया। शिव ने उन्हें सांत्वना दी और अपना लिंग वापस ले लिया।

(- वामन पुराण अध्याय 6 और 45) और तब भगवान शिव ने दारुकवण में हमेशा के लिए 'ज्योतिर्लिंग' के रूप में अपना दिव्य प्रतीक स्थापित किया।

कोटिरुद्र संहिता में शिव को 'दारुकावने नागेशं' कहा गया है. नागेश्वर- नागों का ईश्वर। नागेश्वर शब्द नागों के भगवान यानी महादेव शिव को इंगित करता है। नाग, जो सदैव भगवान शिव की गर्दन के चारों ओर कुंडली मारे पाए जाते हैं, और शिव के आभूषण कहे जाते हैं। इस कारण यह मंदिर विष और विष से संबंधित रोगों से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है।

Photo of Nageshwar Jyotirling by Roaming Mayank

मन्दिर संरचना और वास्तु

नागेश्वर शिवलिंग गोल काले पत्थर वाले द्वारका शिला से त्रि-मुखी रूद्राक्ष रूप में स्थापित है, शिवलिंग के साथ देवी पार्वती की भी उपासना की जाती है। मंदिर का पौराणिक महत्व ये माना जाता है कि यहां भगवान कृष्ण रुद्राभिषेक के द्वारा भगवान शिव की आराधना करते थे। और बाद में आदि गुरु शंकराचार्य ने कलिका पीठ पर अपने पश्चिमी मठ की स्थापना की।

Photo of Nageshwar by Roaming Mayank
Photo of Nageshwar by Roaming Mayank

यहां महादेव शिव की 25 मीटर ऊंची मूर्ति और तालाब के साथ एक बड़ा बगीचा, सामान्य रूप से शांत इस जगह के प्रमुख आकर्षण हैं। कुछ पुरातात्विक उत्खनन इस स्थल पर पहले पांच शहरों के जीवंत होने का दावा करते हैं।

Photo of नागेश्वर ज्योतिर्लिंग एक अनसुलझी कहानी by Roaming Mayank
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किस प्रकार पहुंचें :

गुजरात के द्वारका पहुंचकर नागेश्वरमन्दिर के लिए बस, टैक्सी, ऑटो आदि साधन आसानी से मिल जाते हैं।

रेल यात्रा के लिए राजकोट से जामनगर और जामनगर रेलवे से द्वारका पहुँचा जाता है।

हवाई यात्रा के लिए नजदीकी एयरपोर्ट जामनगर है।

द्वारकाधीश मंदिर 👇

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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग👇

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