भारत विभिन्नताओं का देश है जहाँ अनेको धर्म के लोग रहते है। हर धर्म की अपनी अलग पहचान है जिनमे से एक सबसे प्राचीन धर्म हिन्दू धर्म है जिसकी संस्कृति व उत्पत्ति लाखो वर्ष पुरानी है जिसके सबूत भारत मे स्थित प्राचीन मंदिर है जो अपनी अद्भुत नक्काशी और रहस्य के लिए दुनिया भर मे प्रसिद्ध है। इनका वर्णन हिन्दू ग्रंथो व शास्त्रो मे भी हुआ है। हर मंदिर के पीछे अलग अलग कहानी है। दुनिया में ऐसे कई मंदिर ऐसे भी है जहाँ विशेष प्रकार की शक्तियों को महसूस किया गया है। हालाँकि इन शक्तियों का रहस्य आज तक कोई नहीं समझ पाया है। बड़े बड़े विज्ञानी भी मंदिरों के रहस्य की खोज में फेल हो चुके हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही अजीबो-गरीब और रहस्यमय मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका राज आज भी राज ही बना हुआ है। तो आइए जानें विस्तार से।
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करनी माता का मंदिर
करनी माता का मंदिर बीकानेर में मौजूद है। यह मंदिर काफी अनोखा बना हुआ है। इसमें लगभग 20,000 काले चूहे रहते आ रहे हैं। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए आते हैं। करनी देवी को दुर्गा माँ का अवतार माना गया है। इनके मंदिर में ढेरों चूहे पाए जाने के कारण कुछ लोग इसे चूहों वाला मंदिर कह कर बुलाते हैं। यहाँ चूहों को काबा कहते हैं। चूहों के खान-पान का विशेष ख्याल रखा जाता है। मंदिर में अगर किसी के पैरों के नीचे कोई चूहा आ जाता है तो इसे बहुत बड़ा अपशगुन माना जाता है। यदि कोई चूहा आपके पैरों पर से गुजरता है तो उसे देवी माँ का आशीर्वाद माना जाता है। इसके इलावा इस मंदिर को लेकर एक और मान्यता यह है कि यदि कोई भक्त दर्शन के दौरान सफेद चूहा देख लेता है तो उसकी तमाम इच्छाएं पूरी हो जाती है।
कन्याकुमारी देवी मंदिर
कन्याकुमारी पॉइंट को दुनिया का सबसे निचला हिस्सा माना जाता है। यहाँ समुद्र तट पर कुमारी देवी का मंदिर है। बता दूं कि इस मंदिर में माँ पार्वती के कन्या रूप का पूजन किया जाता है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर हैं, जहाँ पुरुषों को उनके परवेश से पहले कमर से ऊपर तक के कपड़े उतारने पड़ते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ देवी माँ का विवाह ना हो पाने के कारण यहाँ के बचे हुए दाल चावल कंकर और पत्थरों में बदल गये थे। शायद यही वजह है जो कन्याकुमारी में मौजूद रेत के बीचों बीचों दाल और चावल की तरह दिखने में कंकर पाए जाते हैं। आश्चर्य की बात यह भी है कि यह सभी कंकर आकर में भी दाल और चावल के समान ही होते हैं। मंदिर का सूर्य उदय और सूर्यास्त देखने लायक है जोकि कई सुंदरता प्रेमियों को अपनी और आकर्षित करता है। मंदिर की उत्तर दिशा में सनसेट पॉइंट है जिसे देखने लाखों लोग आते हैं।
शनि शिंगणापुर
भारत में सूर्य पुत्र शनिदेव के कई मंदिर है। उन्ही में से महाराष्ट्र के अहमदाबाद में मौजूद शनि शिगणापुर मंदिर हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। विश्व प्रसिद्ध इस शनि मंदिर की खासियत यह है कि यहाँ शनिदेव की प्रतिमा बिना किसी छत या गुबंद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर बिराजित है। यहाँ के रहने वाले लोग शनिदेव के प्रकोप से इतना डरते हैं कि काफी लोगों के घरों में दरवाज़े और तिजोरियां नहीं हैं। यहाँ दरवाज़ों की जगह पर्दे लगाये गये हैं। यहाँ किसी के घर में चोरी नहीं होती। कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति यहाँ चोरी की नीयत रखता है तो उसे स्वयं शनि देव महाराज सजा देते हैं। इसके कईं उदाहरण भी देखे गये हैं। यहाँ हर शनिवार लाखों लोग दर्शनों के लिए आते हैं।
मेरु रिलिजन स्पॉट, कैलाश पर्वत
हिमालय के मानसरोवर में मौजूद यह एक बेहद खूबसूरत जगह है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महादेव यहाँ आज भी बिराजमान हैं। यह धरती का केंद्र बिंदु है। दुनिया के सबसे ऊंचे स्थान पर स्तिथ कैलाश मानसरोवर के कुछ ही आगे मेरु पर्वत स्तिथ है। यहाँ के संपूर्ण क्षेत्र को शिव और देवलोक माना जाता है। हिंदू धर्म के वेदों में इस जगह का जिक्र किया गया है। यहाँ के रहस्यों को आज तक कोई मनुष्य नहीं समझ पाया है। हर श्रद्धालु यहाँ जाने की उम्मीद रखता है।
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर
यह मंदिर गुजरात के वड़ोदरा से कुछ दूरी पर जंबूसर तहसील के कावी कंबोई गांव में अरब सागर के मध्य कैम्बे तट पर स्थित है। इस अद्भुत स्तंभेश्वर महादेव मंदिर को गायब मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यह मंदिर दिन मे दो बार गायब हो जाता है, यह घटना समुद्र मे ज्वार भाटा उठने के कारण होती है, ज्वार भाटा दिन मे दो बार सुबह शाम आता है और पूरा मंदिर लहरों मे समा जाता है जिससे ये गायब प्रतीत होता है। कहा जाता है की ये लहरे शिव के जल अभिषेक करने आती है। पौराणिक कथाओ के अनुसार इस अद्धभुत शिवलिंग को शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने बनवाया था। यह मंदिर अपनी इसी खासियत के लिए लाखो भक्तो को अपनी ओर आकर्षित करता है।
कामाख्या मंदिर
कामाख्या मंदिर को तांत्रिकों का गढ़ कहा गया है। माता के 51 शक्तिपीठों में से एक इस पीठ को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह असम के गुवाहाटी में स्थित है। यहाँ त्रिपुरासुंदरी, मतांगी और कमला की प्रतिमा मुख्य रूप से स्थापित है। दूसरी ओर 7 अन्य रूपों की प्रतिमा अलग-अलग मंदिरों में स्थापित की गई है, जो मुख्य मंदिर को घेरे हुए है। पौराणिक मान्यता है कि साल में एक बार अम्बूवाची पर्व के दौरान मां भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती की गर्भगृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर 3 दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। इस मंदिर के चमत्कार और रहस्यों के बारे में किताबें भरी पड़ी हैं। हजारों ऐसे किस्से हैं जिससे इस मंदिर के चमत्कारिक और रहस्यमय होने का पता चलता है।
ज्वाला देवी मंदिर
ज्वालादेवी का मंदिर हिमाचल के कांगड़ा घाटी के दक्षिण में 30 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मां सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माता की जीभ गिरी थी। हजारों वर्षों से यहाँ स्थित देवी के मुख से अग्नि निकल रही है। इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी। इस जगह का एक अन्य आकर्षण ताम्बे का पाइप भी है जिसमें से प्राकृतिक गैस का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अलग अग्नि की अलग-अलग 9 लपटें हैं, जो अलग-अलग देवियों को समर्पित हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार यह मृत ज्वालामुखी की अग्नि हो सकती है। हजारों साल पुराने मां ज्वालादेवी के मंदिर में जो 9 ज्वालाएं प्रज्वलित हैं, वे 9 देवियों महाकाली, महालक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, चंडी, विन्ध्यवासिनी, हिंगलाज भवानी, अम्बिका और अंजना देवी की ही स्वरूप हैं। कहते हैं कि सतयुग में महाकाली के परम भक्त राजा भूमिचंद ने स्वप्न से प्रेरित होकर यह भव्य मंदिर बनवाया था। जो भी सच्चे मन से इस रहस्यमयी मंदिर के दर्शन के लिए आया है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
खजुराहो का मंदिर
आखिर क्या कारण था कि उस काल के राजा ने सेक्स को समर्पित मंदिरों की एक पूरी श्रृंखला बनवाई? यह रहस्य आज भी बरकरार है। खजुराहो वैसे तो भारत के मध्यप्रदेश प्रांत के छतरपुर जिले में स्थित एक छोटा-सा कस्बा है लेकिन फिर भी भारत में ताजमहल के बाद सबसे ज्यादा देखे और घूमे जाने वाले पर्यटन स्थलों में अगर कोई दूसरा नाम आता है तो वह है खजुराहो। खजुराहो भारतीय आर्य स्थापत्य और वास्तुकला की एक नायाब मिसाल है। चंदेल शासकों ने इन मंदिरों का निर्माण सन् 900 से 1130 ईसवीं के बीच करवाया था। इतिहास में इन मंदिरों का सबसे पहला जो उल्लेख मिलता है, वह अबू रिहान अल बरुनी (1022 ईसवीं) तथा अरब मुसाफिर इब्न बतूता का है। कला पारखी चंदेल राजाओं ने करीब 84 बेजोड़ व लाजवाब मंदिरों का निर्माण करवाया था, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ 22 मंदिरों की ही खोज हो पाई है। ये मंदिर शैव, वैष्णव तथा जैन संप्रदायों से संबंधित हैं।
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