मुंबई लोकल: पटरियों पर दौड़ता दुनिया का एकलौता शहर

Tripoto
1st Jul 2020
Photo of मुंबई लोकल: पटरियों पर दौड़ता दुनिया का एकलौता शहर by रोशन सास्तिक

एक फ़िल्म आई थी पैडमैन। उस फ़िल्म के ट्रेलर में एक डायलॉग था- अमेरिका के पास सुपरमैन है, बैटमैन है, स्पाइडर मैन... लेकिन इंडिया के पास पैडमैन है। कुछ इसी अंदाज में कहें तो अगर दुनिया के पास बुलेट ट्रेन है, तो आमची मुंबई के पास लोकल ट्रेन है। जो बुलेट ट्रेन से तकनीक के मामले में भले बेहतर ना हो, लेकिन बात जब जरूरत पूरी करने की हो, तो मुंबई लोकल का कोई मुकाबला नहीं है। जी हां, क्योंकि बुलेट ट्रेन भले बहुत ज्यादा स्पीड से दौड़ सकती है, लेकिन बुलेट ट्रेन मुंबई की लोकल ट्रेन की तरह बहुत ज्यादा लोगों को साथ लेकर नहीं दौड़ सकती।

Photo of Kalyan, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

कितने लोग? अध्ययन के मुताबिक मुंबई लोकल से एक दिन में तकरीबन 75 लाख लोग और एक साल में लगभग 2 अरब 20 करोड़ लोग सफर करते हैं। इसे ऐसे समझिए कि मुंबई लोकल से एक दिन में स्विट्जरलैंड जैसे देश की पूरी आबादी सफर करती है और एक साल में संसार की एक तिहाई आबादी जितने लोग मुंबई लोकल से सफ़र कर लेते हैं। क्या हुआ? इन आंकड़ो को पढ़कर आश्चर्य से मुंह खुला रह गया आपका? अगर हां, तो चलिए आपको लिए चलते हैं मुंबई लोकल से जुड़े ऐसे ही हैरतअंगेज जानकारियों के सफर पर, जहां हम आपकों बताएंगे कि क्यों हमनें शीर्षक में मुंबई लोकल को पटरियों पर दौड़ता शहर बताया है।

Photo of Dombivli, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

हर शहर की एक खासियत होती है और मुंबई जैसा शहर तो सैकड़ों खासियतों को अपने अंदर समाए हुए है। मुंबई शहर की सैकड़ों खासियतों में से इस शहर की सबसे बड़ी खासियत या फिर कहे कि इस शहर की आत्मा है मुंबई लोकल। दुनिया मुंबई को एक ऐसे शहर के रूप में पहचानती है जो कभी नहीं रुकता। और मुंबई की इस पहचान को बनाने में सबसे बड़ा हाथ मुंबई लोकल का ही है। कैसे? इस सवाल का जवाब यह है कि मुंबई के सेंट्रल लाइन में स्थित सीएसएमटी और वेस्टर्न लाइन के चर्चगेट से सुबह की पहली ट्रेन 4 बजकर 15 मिनट पर चलती है। और रात की आखिरी ट्रेन सेंट्रल लाइन पर अपने गंतव्य स्टेशन कसारा रात तीन बजे तक पहुंचती है, वहीं वेस्टर्न लाइन पर मुंबई लोकल की आखिरी ट्रेन 2 बजकर 5 मिनट पर बोरीवली पहुंचती है।

Photo of Thane, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

इसका मतलब मुंबई लोकल मुंबई शहर को रात भर चलाने के लिए खुद भी रातभर जागती रहती है। अपने 24 घंटे की शिफ्ट में उसे मुश्किल से डेढ़-दो घंटे मिलते हैं सुस्ताने के लिए। क्यों, एक बार फिर चौंक गए ना आप। अब क्या करें, मुंबई लोकल को मुंबई शहर की लाइफलाइन यूं ही तो नहीं कहा जाता है। मुंबई जैसे शहर को चलाने के लिए मुंबई लोकल को दिन-रात चलना पड़ता है। दिन में कितनी बार? मुंबई शहर को दिनभर चलाए रखने के लिए मुंबई लोकल को दिन में 2300 बार चलना पड़ता है। मुंबई में टाइम का मतलब पैसा होता है और जब लोग पैसों के पीछे भाग रहे हो तब टाइम का महत्व बहुत बढ़ जाता है। ऐसे में किसी का भी टाइम खोटी(खराब) ना हो, इसलिए औसतन हर पांच मिनट पर एक ट्रेन प्लेटफॉर्म पर दौड़ती चली आती है। अभी आपने एक ट्रेन के छूटने का अफ़सोस किया नहीं कि दूसरी ट्रेन के जल्द आने की घोषणा हो जाती है।

Photo of Ghatkopar Railway Station (W), भट्टवाडी, Kapol wadi, Ghatkopar West, Mumbai, Maharashtra by रोशन सास्तिक

मुंबई लोकल की शुरुआत तब हुई, जब 16 अप्रैल 1853 के दिन ठाणे से सीएसएमटी(तब बोरी बंदर) के 34 किलोमीटर फासले के बीच भारत ही नहीं तो एशिया तक में पहली बार लोहे की पटरियों पर कोई ट्रेन दौड़ी थी। तो ठाणे से सीएसएमटी के बीच 34 किलोमीटर से शुरू हुआ मुंबई लोकल का सफर आज करीब 167 साल बाद 400 किलोमीटर में फ़ैल गया है। इस 400 किलोमीटर के दायरे में मुंबई लोकल मुख्य रूप से सेंट्रल, वेस्टर्न और हार्बर इन तीन लाइनों में बंटा हुआ है। सेंट्रल लाइन में लोकल ट्रेन सीएसएमटी से कसारा/कर्जत तक जाती है, वेस्टर्न लाइन में ट्रेन चर्चगेट से दहाणु तक जाती है और हार्बर लाइन में लोकल ट्रेन का संचालन सीएसएमटी और पनवेल के बीच होता है। इन तीन मुख्य लाइन के अलावा इन तीनों लाइनों को जोड़ने के लिए कई उपलाइन भी है। अब जब एक दिन मे करीब 75 लाख लोग 400 किलोमीटर में फैले भूभाग में सफर करते हो, तो क्यों ना कहा जाए कि मुंबई लोकल पटरियों पर दौड़ता शहर है।

Photo of Dadar, Mumbai, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Dadar, Mumbai, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Dadar, Mumbai, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Dadar, Mumbai, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Dadar, Mumbai, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

मुंबई लोकल मुंबई शहर के अंदर एक बसा एक चलता-फिरता शहर है। मुंबई लोकल को शहर कहने का कारण यह है कि मुंबई में ऐसे लाखों लोग हैं जो रोजाना मुंबई लोकल से सफर करते है। मुंबई लोकल से रोज सफर करने वाले यात्री हर दिन औसतन 2 से 3 तीन घंटा ट्रेन में ही बिता देते हैं। अब कोई हर रोज ट्रेन में 2 से 3 घंटे बिताएगा तो इस दौरान अपने हमसफर यात्रियों के साथ रिश्ते भी कायम करेगा और कुछ अलिखित नियम कायदे भी बनाएगा। मुंबई लोकल में लोगों का रिश्ता इस आधार पर तय होता है कि आप किस समय की और कौन-सी लोकल पकड़ते हैं। एक बार रिश्ता बन जाने के बाद आपसी सहमती से कुछ नियम भी तय हो जाते हैं। जैसे अगर कोई कल्याण स्टेशन से सीट पर बैठकर आ रहा है, तो उसे ठाणे स्टेशन में उठाना होगा और कल्याण से खड़े होकर सफर कर रहे व्यक्ति को बैठने के लिए अपनी सीट देनी होगी। तीन लोगों के लिए बनाने गए सीट पर अगर कोई चौथा आदमी आकर बैठना चाहे तो मुंह बनाते हुए ही सही लेकिन उसके लिए थोड़ी-बहुत जगह बनानी ही होगी।

Photo of Masjid Bandar, Mumbai, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

जैसा कि शुरू में ही बताया गया कि 400 किलोमीटर के दायरे में एक दिन में 2300 बार चलने वाली मुंबई लोकल से रोजाना 75 लाख लोग सफर करते हैं। अब जब 400 किलोमीटर के दायरे में इतनी बड़ी आबादी हर दिन सफ़र करेगी तो लोगों को मुश्किलों का सामना भी करना ही पड़ेगा। और रोजाना सफर करने वाले लोग तो हर रोज़ इन मुश्किलों से दो-चार होते भी हैं। पहले तो समय से तयशुदा ट्रेन पकड़ने की लड़ाई, फिर खचाखच भरे ट्रेन में अजनबियों से धक्का-मुक्की कर अपने लिए खड़े भर रहने के लिए जगह की खातिर लड़ाई, एक बार ट्रेन में चढ़ जाने के बाद खुद को ट्रेन में दबने से बचाए रखने के लिए लगातार जोर आजमाइश करते रहने की लड़ाई, किसी तरह सफर पूरा कर लेने के बाद सही सलामत अपने गंतव्य स्टेशन पर उतरने लड़ाई। ये लड़ाई तो वो लोग करते है जो अपना सफर सावधानी पूर्वक सुरक्षित तय करना चाहते है। लेकिन दरवाजे पर लटकने वालें, रेल की छत पर बैठकर सफर करने वालें, रेलवे पटरी क्रॉस करने वाले लोग अपनी लापरवाही के चलते आए दिन जानलेवा दुर्घटना का शिकार होते रहते हैं। कितने लोग? सरकारी और निजी संस्थाओं द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक हर रोज 75 लाख लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाली मुंबई लोकल एक दिन में औसतन 10 से 12 लोगों की जान भी ले लेती है।

Photo of C S T M Stiton, Sewri, Mumbai, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

मुंबई लोकल का बोझ कम करने के लिए शहर में मोनो और मेट्रो ट्रेन भी शुरू की गई है। बावजूद इसके आज भी ज्यादातर मुंबईकर सुबह घर से निकलकर काम पर जाने और शाम को काम से लौटकर घर आने के लिए मुंबई लोकल का ही सहारा लेते हैं। इसके दो मुख्य कारण है; पहला तो यह है कि मुंबई लोकल की तरह अभी मेट्रो और मोनो रेल की पंहुच मुंबई के हर इलाके तक हुई नहीं है और दूसरा इसके टिकटों की कीमत भी मुंबई लोकल ट्रेन की कीमतों से कहीं ज्यादा है। वैसे पिछले कुछ सालों में बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए सरकार ने मुंबई लोकल ट्रेन की बोगियों और फेरियों में बढ़ोतरी के साथ-साथ स्टेशनों पर मौजूद सुविधाओं को भी सुधारने और बढ़ाने का काम किया है। जैसे पहले 9 डिब्बों की ट्रेन चला करती थी, जिसे बढ़ाकर 12 डिब्बों का कर दिया गया। कुछ-कुछ लोकल ट्रेन में तो 15 डिब्बे भी लगे होते हैं। इसके अलावा महिलाओं की सुविधा के लिए दिन में कई बार लेडीज स्पेशल ट्रेन भी चलाई जाती है। ट्रेन के साथ ही लोकल रेलवे स्टेशनों का भी पिछले कुछ सालों में कायाकल्प कर दिया गया है। मुंबई के प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर पदचारी पुल की संख्या बढ़ा दी गई हैं, एलीवेटर(स्वचालित सीढ़ियां) बना दिए गए हैं, दिव्यांगो के लिए लिफ्ट तक की व्यवस्था कर दी गई है। और मुफ्त वाईफाई की सुविधा से तो आप वाकिफ ही होंगे।

Photo of Bandra, Mumbai, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

मुंबई लोकल के बारे में कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक कहना हो तो इतना ही कहा जा सकता है कि अगर मुंबई शहर एक शरीर है, तो मुंबई लोकल उस शरीर के नस-नस में खून दौड़ाने वाला दिल है। अगर मुंबई शहर फेफड़ा है, तो मुंबई लोकल शहर को को जिंदा रखने के लिए सबसे जरूरी ऑक्सीजन है। मुंबई लोकल मुंबईकरों की जिंदगी है। मुंबई लोकल के बिना मुंबई शहर कुछ ऐसा ही है जैसे बिना आत्मा के शरीर। आज मुंबई शहर ने सफलता और शोहरत की जिन ऊँचाइयों को छुआ है उसमें सबसे अहम भूमिका मुंबई लोकल की ही रही है। क्योंकि शहर को चलाने वाले लोगों को घर से दफ्तर और दफ्तर से घर लाने और ले जाने के लिए मुंबई लोकल बिना रुके चले जा रही है। और जिस दिन मुंबई लोकल रुक गई, उस दिन समझ लीजिएगा कि कभी ना थमने वाली मुंबई भी थम जाएगी।

Photo of Andheri, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

-रोशन सास्तिक

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