जो भी हिमाचल घूमने जाते है, उनमें से कुछ ही कांगड़ा घाटी में अच्छे से घूम पाते है | लोग अंजाने में सिर्फ़ मैकलोडगंज और बीर घूम कर ही लौट जाते हैं, मगर कांगड़ा घाटी के हसीन नज़ारे देखने का सुख सबके नसीब में नहीं होता |
कांगड़ा घाटी का इतिहास काफ़ी गहरा और संस्कृति काफ़ी दिलचस्प है | यहाँ ग्लेशियर से बहते पानी से लबालब झीलें कांगड़ा को इसकी ख़ास पहचान देती हैं | यहाँ कई जाने-माने मंदिर-तीर्थ भी हैं, तो कांगड़ा कस्बे में आपको बहुत से बजट होटल भी मिलेंगे | कस्बे के आस-पास आने-जाने के लिए ऑटो से लेकर बस तक सारे साधन हैं |
तो आइए मैकलोडगंज और बीड़ से थोड़ा आगे बढ़ कर कांगड़ा घूमें :
कांगड़ा का किला
इस किले को लोग ख़ास जानते नहीं हैं, मगर मांझी और बाणगंगा नदी के संगम के पास ही पहाड़ी पर बने इस किले से पूरी कांगड़ा की घाटी दिखती है। 1905 में आए भूकंप से इस किले का काफ़ी हिस्सा ढह गया था |
आंद्रेता पॉटरी विलेज
अगर आपको किसी नई जगह पर घूमना-फिरना ज़्यादा नहीं भाता है और दिल करता है कि कहीं रुक कर उस जगह की कला-सभ्यता देखी जाए तो ये पॉटरी विलेज आपके लिए ही है | आयरलैंड के जाने-माने कलाकार और पर्यावरणविद नोरा रिचर्ड्स ने अपनी कला की खातिर सन् 1920 में इस जगह को बसाया था | यहाँ वर्कशॉप लगते रहते हैं, तो आप चाहें तो एक-दो दिन के लिए यहाँ आकर मिट्टी के बर्तन बनाने से जुड़ी कला की बारीक़ियाँ समझ सकते हैं | रुकने के लिए आपको यहाँ सस्ते होमस्टे और बजट होटल भी मिल जाएँगे |
मसरूर रॉक-कट टेंपल
शिव, विष्णु और राम को समर्पित इन मंदिरों के बारे में कहते हैं कि ये एक ही चट्टान को तराश कर बनाए गए हैं | कांगड़ा और मसरूर के बीच कुछ बसें चलती रहती हैं तो यहाँ पहुँचना आसान है | चाहो तो नगरोटा सूरियां नाम के गाँव के पास हाइवे पर उतर कर भी रिक्शा ले सकते हो |
ज्वाला जी मंदिर
कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वालामुखी नाम की जगह पर ये मंदिर बना है | कहते हैं कि जब शिव अपने हाथों में सती का जला हुआ शरीर ले जा रहे थे, तो सती के शरीर से गिरने वाले 51 हिस्सों में से एक हिस्सा यहाँ कांगड़ा में भी गिरा और यहाँ ज्वाला जी का मंदिर बन गया | इस मंदिर की बनावट देख कर आप हैरान रह जाओगे | यहाँ नीले रंग की ज्वाला हमेशा जलती रहती है |
ब्रजेश्वरी देवी मंदिर
कहते हैं कि सती के शरीर से वक्ष अलग होकर गिर गये थे, जहाँ आज ये मंदिर बना है | मंदिर में देखने लायक कुछ ख़ास नहीं है, इसलिए जब कांगड़ा के किले में घूमने का प्लान बनाओ, उसी दिन यहाँ भी घूम आना | सन् 1905 के भूकंप से इस मंदिर का कुछ हिस्सा भी ढह गया था, जिसका सन् 1920 में जीर्णोद्धार करवाया गया | मगर आज भी इस मंदिर को देख-रेख की ज़रूरत है |
पालमपुर
अगर आप ट्रेवल पैकेज लेकर मैकलोडगंज जा रहे हैं, तो रास्ते में पालमपुर तो ज़रूर रुकना होगा | मनाली और मंडी से आते वक़्त भी पालमपुर आता है, और लोग यहाँ रुकना पसंद भी करते हैं | कारण हैं यहाँ के हरे-भरे चाय के बागान | पालमपुर में घूमने का आसान तरीका है ऑटो या टैक्सी किराए पर लेकर दिन-भर साइटसीइन्ग करना | चाहो तो यहाँ से आगे मैकलॉडगंज जा सकते हो, या घूम कर वापिस बीर की तरफ लौट सकते हो | पालमपुर से 2 घंटे दूर आगे आपको बरोट घाटी मिलेगी |
पालमपुर में रुकने के लिए कई होमस्टे हैं, मगर आप चाहें तो चाय के बागानों के बीच बने बंगलो में भी रह सकते हैं |
बाथू की लड़ी
साल के आठ महीने बाथू की लड़ी मंदिर पोंग डैम के पानी में डूबे रहते हैं | पानी के ऊपर सिर्फ़ मंदिर के गुंबद का ऊपरी हिस्सा और पास खड़ा पिलर ही दिख पाते हैं | मगर मार्च से जून के महीनों में यहाँ से पानी उतरता है और मंदिर परिसर घूमने लायक होता है | ये अजूबा 30 साल से होता आ रहा है |
पोंग डैम
हिमाचल से निकालने वाली व्यास नदी पर पोंग डैम बना हुआ है, जिसे महाराणा प्रताप डैम भी कहते हैं | आसमान साफ हो तो मैकलोडगंज और त्रीयुंड से ये डैम दिख जाता है | ये इतनी प्यारी जगह है कि हर साल हज़ारों सैलानी यहाँ स्कीइंग, सर्फिंग, कनूइंग, कयकिन्ग जैसे रोमांचक खेलों के मज़े लेने आते हैं | सर्दियों में यहाँ खूब सारे प्रवासी पक्षी आ जाते हैं, इसलिए पक्षी प्रेमियों का भी यहाँ काफ़ी मन लगता है |
पोंग डैम तक पहुँचने के लिए आपको नगरोटा सूरियाँ से बस लेनी पड़ेगी, चाहें तो किराए पर टैक्सी भी कर सकते हैं | डैम के आस-पास काफ़ी सारे तंबू भी हैं, तो आपका मन करे तो एक साइकिल उठाइए और पर्यावरण का ध्यान रखते हुए नज़ारों के मज़े लीजिए | वैसे भी बाँध पर पहुँच कर कैंप में आराम ही करना है |
विंच कैंप
ये जगह कांगड़ा में नहीं, बल्कि यहाँ से कुछ ही दूर बीड़ बिलिंग में है | जोगिंदरनगर में 2400 मीटर की ऊँचाई पर इस जगह पहुँचने के लिए जान का जोखिम भी उठना पड़ता है, क्योंकि यहाँ तक पहुँचने के लिए रास्ते में खूनी घाटी आती है, जहाँ चढ़ाई 90 डिग्री तक खड़ी हो जाती है | एक बार इस पहाड़ी पर बरोट से जोगिंदरनगर जाते वक़्त सैलानियों की एक ट्रॉली पलट गयी थी और बदक़िस्मती से ट्रॉली में बैठे सारे मुसाफिर मारे गये | तभी से इस घाटी का नाम खूनी घाटी पड़ गया | आप चाहें तो खुदका तंबू भी लेकर यहाँ आ सकते हैं, मगर वज़न उठाने की इच्छा ना हो तो बरोट से तंबू किराए पर भी ले सकते हैं |
परागपुर
परागपुर में घूमने-फिरने और देखने का बहुत कुछ है | यहाँ बना चुनौर का मंदिर पांडव काल से यहीं है | अगर चित्रकारी में आपकी दिलचस्पी है तो आप दादासिबा में कांगड़ा की ख़ास चित्रकारी देख सकते हैं | भित्तिचित्रों पर यहाँ जैसा बारीक काम शायद ही कहीं होता हो |
बैजनाथ जाने वाली बसें परागपुर होकर जाती हैं, तो यहाँ पहुँचना बड़ा आसान है | परागपुर में कई होम स्टे और होटल भी हैं तो ठहरने की चिंता भी मत ही करो |
गरली
परागपुर से 3 कि.मी. दूर गरली को सन् 2002 में हेरिटेज विलेज का दर्जा मिला था, क्योंकि यहाँ पूरे गाँव में खूब सारी हेरिटेज हवेलियाँ हैं | इन हवेलियों के मालिक अब यहाँ नहीं रहते, मगर इनकी सार-संभाल करने वाले से गुज़ारिश करेंगे, तो वो आपको हवेली दिखा सकता है |
अगर आपको भूत-प्रेत के बारे में जानना अच्छा लगता है तो गरली में आपको कई भूतहा हवेलियाँ भी मिल जाएँगी |
चतरू गाँव
आखिर में आप कांगड़ा के मशहूर गाँव चतरू के बारे में भी सुन लीजिये | गाँव के एक ओर नदी बहती है और दूसरी और पहाड़ियाँ हैं | गग्गल- धरमशाला वाली रोड पर चलने वाली बसें आपको चतरू गाँव के करीब उतार देंगी, जहाँ से आप पैदल गाँव के नादर तक पहुँच सकते हो | अगर आपको कांगड़ा की सभ्यता को स्थानीय लोगों के साथ रहते हुए जानना है, और साथ ही अपने चारों और कुदरत की खूबसूरती देखनी है तो चतरू चले आइये |
जितना कांगड़ा वैली घूमेंगे, उतनी नई जगहें मिलती जाएँगी | जब घूमने के लिए इतने ऑप्शन हैं तो फिर अगली बार लॉन्ग वीकेंड में फिर से मैकलोडगंज मत पहुँच जाना |
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