मधुपुरी! जी हाँ, मथुरा किसी समय इसी नाम से जाना जाता था। यमुना नदी के तट पर बसा मथुरा, भारत के प्राचीनतम, सर्वाधिक महत्वपूर्ण व सर्वाधिक लोकप्रिय नगरों में से एक है।
मथुरा नगर का प्राचीनतम उल्लेख पद्म पुराण में किया गया है जहां इसका सम्बन्ध अयोध्या के राजा श्री राम के अनुज, शत्रुघ्न से बताया गया है। शत्रुघ्न ने असुर मधु के पुत्र लवणासुर का वध करने के पश्चात इस क्षेत्र की रचना की थी। यह वही असुर मधु है जिसके विषय में आपने देवी महाम्त्य में पढ़ा होगा। इसका अर्थ है कि इस स्थान की उत्पत्ति त्रेता युग में हुई थी। द्वापर युग में यह स्थान श्री कृष्ण का लीलास्थल था। वास्तव में यह स्थान कृष्ण की लीलाओं के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय है।
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर
मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर निस्संदेह, ना केवल मथुरा का, अपितु सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिर है। इसी नगर के कारागृह की एक कोठरी में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था जहां उनके माता एवं पिता को उनके मामा कंस ने बंदी बनाकर रखा हुआ था। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं जिन्होंने द्वापर युग में जन्म लेने के लिए इस स्थान का चयन किया था।
इस मंदिर के विषय में सर्वप्रथम उल्लेख के अनुसार इस मंदिर की स्थापना श्री कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने करवाया था। उन्होंने ही द्वारका में द्वारकाधीश मंदिर का भी निर्माण करवाया था। पुरातात्विक दृष्टिकोण से, उपलब्ध प्रमाण छठीं शताब्दी में निर्मित एक मंदिर की ओर संकेत करते हैं।
गजनी ने ११वीं शताब्दी में इस मंदिर पर प्रथम आक्रमण किया था। उसके संस्मरण में उल्लेख किया गया है कि यह मंदिर मानव निर्मित नहीं अपितु कोई दैवी रचना ही हो सकती है। १६वीं शताब्दी में सिकंदर लोधी ने इस मंदिर को उध्वस्त कर दिया था किन्तु शीघ्र ही बुन्देल राजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया। १७वीं शताब्दी में औरंगजेब ने इसे पुनः नष्ट कर दिया। प्राचीन काल के अनेकों यात्रियों ने अपने यात्रा संस्मरणों में इस मंदिर की अद्वितीय सुन्दरता एवं भव्यता का उल्लेख किया है। ब्रिटिश अधिकारी फेड्रिक सालमन ग्राउस ने अपने मथुरा संस्मरण में इस केशवदेव मंदिर की भव्यता का उल्लेख किया है।
केशव देव जी मन्दिर
इस मंदिर के विशाल प्रांगण में होली का भव्य उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। स्वाभाविक रूप से मथुरा नगरी एवं इस मंदिर का सर्वाधिक लोकप्रिय उत्सव कृष्ण जन्माष्टमी है।
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बाह्य भाग में केशवदेवजी का मंदिर है।
दुखद यह है कि मंदिर के भीतर किसी भी प्रकार के यन्त्र ले जाने की अनुमति नहीं है। अतः आप मंदिर के भीतर चित्र नहीं ले सकते।
द्वारकाधीश मंदिर
मथुरा का द्वारिकाधीश मंदिर नगर के राजाधिराज बाज़ार में स्थित है। यह मन्दिर अपने सांस्कृतिक वैभव कला एवं सौन्दर्य के लिए अनुपम है। श्रावण के महीने में प्रति वर्ष यहाँ लाखों श्रृद्धालु सोने–चाँदी के हिंडोले देखने आते हैं। मथुरा के विश्राम घाट के निकट ही असकुंडा घाट के निकट यह मंदिर विराजमान है।
इतिहास
ग्वालियर राज्य के कोषाध्यक्ष सेठ गोकुल दास पारीख ने इसका निर्माण 1814–15 में प्रारम्भ कराया, जिनकी मृत्यु पश्चात इनकी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी सेठ लक्ष्मीचन्द्र ने मन्दिर का निर्माण कार्य पूर्ण कराया। वर्ष 1930 में सेवा पूजन के लिए यह मन्दिर पुष्टिमार्ग के आचार्य गिरधरलाल जी कांकरौली वालों को भेंट किया गया। तब से यहाँ पुष्टिमार्गीय प्रणालिका के अनुसार सेवा पूजा होती है।
यमुना के घाट एवं परिसर
यमुना नदी कान्हा नगरी मथुरा का अभिन्न अंग है। इसके घाटों के किनारे खड़ी रंगबिरंगी नौकाओं की पंक्तियाँ सम्पूर्ण वातावरण को उल्हासपूर्ण बना देती हैं। ये नौकाएं आपको नौका विहार का रोमांच तो देती ही हैं, साथ ही, राधा-कृष्ण की कथाएं सुनकर नाविक आपको आनंदविभोर भी कर देते हैं।
यदि संभव हो तो यमुना घाट पर चुनरी मनोरथ का आयोजन अवश्य देखें जिसमें यमुना नदी को चुनरी उढ़ाई जाती है।
कंस किला
यमुना नदी के तट पर स्थित बलुआ पत्थर का दुर्ग है। कहा जाता है कि यमुना के उत्तरी तट पर स्थित कंस किला ही कृष्ण के दुष्ट मामा कंस का दुर्ग था किन्तु यह उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता। हो सकता कि यह दुर्ग उस स्थान पर स्थित हो जहां किसी समय कंस का दुर्ग था। इस दुर्ग की विशाल भित्तियाँ यमुना की लहरों से नगर की रक्षा करती हैं। कालांतर में महाराजा सवाई जयसिंह ने गृह-नक्षत्रों का अध्ययन करने के लिए यहाँ वेधशाला का निर्माण कराया था जो अब अस्तित्व में नहीं है। खंडित हो चुका यह दुर्ग अब मथुरा का लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।
जैन संग्रहालय
मथुरा संग्रहालय किसी समय एक लघु संग्रहालय था जिसे अब वर्तमान इमारत में स्थानांतरित किया है। उस लघु संग्रहालय को अब जैन संग्रहालय में परिवर्तित किया है। यह अत्यंत सुन्दर इमारत है जिसके भीतर उत्कृष्ट जैन कलाकृतियों का उत्तम संग्रह है। मथुरा जैन विरासत का प्रमुख केंद्र है। इस नगर में अनेक छोटे-बड़े जैन मंदिर हैं। उनमें विशालतम मंदिर मथुरा चौरासी मंदिर है। मुख्य मार्ग के निकट स्थित इस मंदिर में श्वेत संगमरमर में उत्कीर्णित अनेक छवियाँ हैं।
यात्रा सुझाव
एक लोकप्रिय पर्यटन एवं तीर्थस्थल होने के कारण यहाँ यात्रियों के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
आप जब यहाँ आयें तो मंदिरों के साथ साथ मथुरा की गलियों में पैदल सैर, स्मृतिचिन्हों का क्रय, कलाकृतियों एवं विशेष व्यंजनों का भी आनंद लें।
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