हिमाचल प्रदेश भारत का एक बेहद ही प्रमुख राज्य हैं, जो अपनी खूबसूरती, पर्यटन स्थल और अपनी आकर्षक जगहों के लिए जाना जाता हैं। हिमाचल प्रदेश पृथ्वी पर स्वर्ग से कम नहीं है क्योंकि यह पूरी तरह से प्राकृतिक आकर्षणों से भरा हुआ हैं। हिमाचल प्रदेश को देव भूमि या देवताओं की भूमि भी कहा जाता हैं। कई पर्यटन स्थलों के केंद्र के साथ ही हिमाचल प्रदेश में अनगिनत प्रसिद्ध मंदिर भी मौजूद हैं जिनकी वजह से यह दुनिया के सभी देशों से भारी संख्या में भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित करता हैं। प्रकृति के इसी आदर्श स्थल में मानव द्वारा निर्मित अद्भुत कृतियों में शामिल हैं, मसरूर मंदिर। जो अपनी अदभुत पत्थर की कटाई से बने मंदिर के लिए जाना जाता हैं।
मसरूर मंदिर
मसरूर मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मसरूर गांव में स्थित हैं। यह मंदिर ब्यास नदी के पास यह एक चट्टान को काटकर बनाया गया हैं। इस मंदिर की एक खासियत हैं यहां एक ही चट्टान को काट कर 19 मंदिर बनाएं गए हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार इसे हिमालय का पिरामिड भी कहा जाता हैं। धौलाधार पर्वत और ब्यास नदी के परिदृश्य में स्थित, यह मंदिर एक सुरम्य पहाड़ी के उच्चतम बिंदु पर स्थित हैं। पहले यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित था पर अभी यहां श्री राम, लक्षमण व सीता जी की मुर्तियां स्थापित हैं।
मंदिर का इतिहास
पुरातत्व विभाग के अनुसार यह 8 वी शताब्दी में बना था, रॉक कट टेंपल मसरूर एक अनोखा मंदिर हैं जो रहस्यमयी इतिहास को खुद में समेटा हुआ हैं। वैसे ठीक ठीक यह कब बना था इस बात से लोग अभी तक अनभिग हैं। आज तक इस मंदिर के निर्माण की कोई ठीक तारीख पता नहीं चल पाई है, इसलिए कहा जाता है कि मंदिर को सबसे पहले सन 1875 में खोजा गया था।
मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता हैं कि जब महाभारत में पांडवों ने अपने अज्ञातवास किया था तब उन्होंने इसी जगह पर निवास किया था और इस मंदिर का निर्माण किया। चूँकि, यह एक गुप्त निर्वासन स्थल था इसलिए वे अपनी पहचान उजागर होने से पहले ही यह जगह छोड़ कर कहीं और चले गए थे। मंदिर के सामने एक झील भी मौजूद हैं। कहा जाता हैं कि मंदिर के सामने खूबसूरत झील को पांडवों ने अपनी पत्नी द्रोपदी के लिए बनवाया गया था। झील में मंदिर के कुछ हिस्सों का प्रतिबिंब दिखाई देता हैं।
मंदिर की वास्तुकला
इंडो- आर्यन वास्तुकला की शैली का प्रतिनिधित्व करते हुए, 8वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण पत्थर के एक ठोस टुकड़े का उपयोग करके किया गया था। इस एक टुकड़े से ही यहां 19 मंदिर बनाएं गए हैं। इसकी तुलना अजंता-एलेरा के मंदिरों से भी की जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि पत्थरों पर ऐसी नक्काशी करना बेहद मुश्किल होता हैं। ऐसे में ये कारीगरी करने के लिए दूर से कारीगर लाए गए थे। कुल 19 बड़ी चट्टानों पर ये मंदिर बनाए गए हैं। इसकी नक्काशी और इसके आगे बना तालाब इसकी खूबसूरती को चार चांद लगाते है। मंदिर के उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम दिशा में तीन प्रवेश द्वार हैं, जिनमें से दो स्थान हैं। संकेत हैं कि चौथे प्रवेश द्वार की योजना बनाई गई थी और उसे शुरू भी कर दिया गया था, लेकिन ज्यादातर अधूरा छोड़ दिया गया था। कला इतिहासकार और भारतीय मंदिर वास्तुकला में विशेषज्ञता रखने वाले प्रोफेसर माइकल मिस्टर के अनुसार, मसरूर मंदिर की शैली हिंदू वास्तुकला का एक जीवित उदाहरण है जो पृथ्वी और उसके चारों ओर के पहाड़ का प्रतीक है।
कैसे पहुंचे?
हवाईजहाज से- कांगड़ा में गग्गल हवाई अड्डा निकटतम घरेलू हवाई अड्डा है, जो शहर से 13 किमी दूर है। यहां पहुंच कर आप टैक्सी या कैब बुक कर के बहुत ही आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
ट्रेन से- निकटतम स्टेशन कांगड़ा रेलवे स्टेशन हैं। जहां से मंदिर की दूरी लगभग 40 किलोमीटर हैं। स्टेशन के बाहर से आप टैक्सी ले कर यहां पहुंच सकते हैं।
सड़क द्वारा- राज्य के स्वामित्व वाली बसें कांगड़ा को हिमाचल प्रदेश और पड़ोसी राज्यों के सभी प्रमुख शहरों से जोड़ती हैं। कांगड़ा और धर्मशाला, पालमपुर, पठानकोट, जम्मू, अमृतसर और चंडीगढ़ के बीच नियमित बसें उपलब्ध हैं।
क्या आपने हाल में कोई की यात्रा की है? अपने अनुभव को शेयर करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা और Tripoto ગુજરાતી फॉलो करें।