मंगलाजोड़ी: कभी पंछियों को बनाते थे नाश्ता, आज उन्हीं को बचाने में लगे हैं यहाँ के लोग!

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पंछी हर हाल में प्रतीक हैं स्वतंत्रता का। भगवान ने आकाश में उड़ने का मौक़ा बस इनको ही दिया है। लेकिन साहब, कहते हैं न, कि एक बार किसी जीव का ख़ून शिकारी को भा जाए तो पूरी नस्ल ख़तरे में आ जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ ओडिशा के मंगलाजोड़ि में।

यहाँ पर विनाश से पुनर्निर्माण की कहानी इतनी दिलचस्प है जो आपको आधे समय तो दंग करती रहती है और इंटरवल के बाद गदगद भी कर देती है। तो चलिए शुरु करते हैं इस कहानी को!

ओडिशा में स्थित है एशिया की खारे पानी की सबसे बड़ी झील, चिल्का झील। उसी बड़ी झील के किनारे बसा है मंगलाजोड़ी। यहाँ पर बसी आदम ज़ात को पंछियों के उड़ने से ज़्यादा ख़ुशी थालियों में परोसने की होने लगी थी। यहाँ के लोग पक्षियों को खाने का शौक रखते थे और इसी वजह से यहाँ के स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की तादात धीरे-धीरे कम होती चली गई और मंगलाजोड़ी नाम की ये जगह पूरे भारत में पंछीमार की शख़्सियत पा बदनाम होने लगी। कोई अचंभे वाली बात नहीं होगी, अगर यहाँ किसी शख़्स का सबसे लज़ीज़ खाना कोई विशेष नस्ल वाला पक्षी हो।

(प्रतीकात्मक तस्वीर) श्रेय : ली हेरिजांतो

Photo of मंगलाजोड़ि, Odisha, India by Manglam Bhaarat

श्रेय : हैप्पी पिक्सेल

Photo of मंगलाजोड़ि, Odisha, India by Manglam Bhaarat

चूँकि यह जगह इतनी रोचक है, कि आने वाले सैलानियों की कमी नहीं रही। लोगों ने पेट भर तो नहीं, लेकिन दिल भर इस जगह के बारे में लिखा। और छवि बद से बदतर होती गई।

और फिर शुरू हुआ बदलाव का सफर

बात 1997 की रही होगी, इस परम्परा से तंग आकर नंद किशोर भुजबल ने विरोध का परचम पहली बार बुलन्द किया। लेकिन सैकड़ों तक जकड़ी हुई मानसिकता एक दिन में हवा हो जाए, तो देश राम राज्य न बन जाए।

जिन लोगों का धंधा चल रहा था पंछियों को मार कर, उन्होंने चाकू की नोंक पर भुजबल साहब को भी किनारे लगाने की कोशिश की। लेकिन आदमी दमदार थे ये मियाँ भी। डरे नहीं और एक एक करके चिल्का झील पर बसे सभी 132 गाँवों को इस परम्परा के ख़िलाफ़ ध्यान खींचा और अब से पंछी न मारने की अपील की।

"ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया, अंगना में फिर आ जा रे।"

पंछियों के संरक्षण में आस-पास के कई दल आगे आए। नंद किशोर ने भी महावीर पक्षी सुरक्षा समिति का गठन किया। पूरे इलाक़े में पक्षियों के समर्थन में ख़ूब जुलूस निकले। ख़बर नई और अनोखी थी, जिसने विदेशी अख़बारों में भी सुर्ख़ियाँ बटोरीं। वाइल्ड उड़ीसा और रॉयल बैंक ऑफ़ स्कॉटलैंड ने जम कर चंदा दिया। और आख़िरकार सारे परिवारों ने पंछियों को न मारने की शपथ ली।

अभी क्या हैं हाल

श्रेय : विकिमीडिया

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बदलाव ख़ुद नहीं आता है, लाना पड़ता है। और उसमें लगती हैं पीढ़ियाँ, जिन्होंने रात रात भर गार्ड बनकर पंछियों को बचाया है इन शिकारियों से, पिता की तरह नन्हे नन्हे पक्षियों की देखभाल की है।

बदलाव की अलख जगे आज 22 साल हो गए हैं। और मंगलाजोड़ी में 85 से अधिक परिवारों की रोज़ी यहाँ होने वाले पर्यटन से चल रही है।

किसी ज़माने में 40 हज़ार की आबादी वाले पक्षियों की जनसंख्या अब 5 लाख हो गई है। आने वाले सैलानियों को लोग बोट पर चिल्का झील घुमाते हैं, सैकड़ों प्रजातियों के पक्षियों की जानकारी देने के लिए गाइड हैं। साथ ही सैलानियों के आवभगत के लिए रहने से लेकर खाने, घूमने और हर क़िस्म की व्यवस्था है।

मंगलाजोड़ी में घूमिए यहाँ पर

पक्षियों के संरक्षण में होने वाले बदलाव के बाद पर्यटन के मामले में मंगलाजोड़ी इतना प्रसिद्ध हो चुका है कि ढेरों जगह तमगा जीत चुका है। बड़ी तादाद में लोग यहाँ घूमने के लिए जाते हैं। अक्टूबर से मार्च का समय सबसे बेहतर है घूमने के लिए।

बोट पर ट्रिप का मज़ा दोगुना हो जाता है यहाँ। और शाकाहारी भोजन, बेहद स्वादिष्ट। देसी झोपड़ियों में समय गुज़ारने का जो आनन्द है, यहीं पता चलता है। आप चाहें तो गाँव में होने वाली ढेरों चीज़ें भी सीख सकते हैं जो आपने शहरी ज़िन्दगी में ज़हन में नहीं आतीं।

जब आप मंगलाजोड़ी घूम लें तो इन जगहों पर भी घूमने निकल सकते हैं।

1. इस्कॉन मंदिर

अगर शांति से कुछ वक्त बिताना है तो इस मंदिर में आ पहुँचें। ये मंदिर मंगलाजोड़ी से लगभग 4 कि.मी. दूर है।

2. मुक्तेश्वर मंदिर

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ये ऐतिहासिक स्थल भी है और भारत की प्राचीन कला का नमूना भी।

मंगलाजोड़ी से दूरी: लगभग 6 कि.मी.

3. आदिवासी कला और हथकरघा का म्यूज़ियम

नाम से ही समझ गए होंगे आप, कला का अनमोल नमूने होते हैं यहाँ।

मंगलाजोड़ी से दूरी:- लगभग 5 कि.मी.

4. लिंगराजा मंदिर

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ये एक दर्शन लायक धार्मिक स्थल है जहाँ आप एक शाम गुज़ार सकते हैं।

मंगलाजोड़ी से दूरी: लगभग 7 कि.मी.।

मंगलाजोड़ी में रहने के लिए

श्रेय : विकिपीडिया

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मंगलाजोड़ी इको टूरिज़म की वेबसाइट पर जाकर आप अपने लायक जानकारी जुटा सकते हैं। रहने से लेकर घूमने घुमाने का पूरा प्लान तैयार है यहाँ पर। बस दाम देखकर आपको चुनाव करना है।

इसके इतर होटल पायल एंड रिसॉर्ट, जिओ इको रिसॉर्ट, चिल्का आइलैंड रिसॉर्ट पर भी आपको रूम मिल जाएँगे। किराया ₹4,000 तक।

कैसे पहुँचें मंगलाजोड़ी

रेल मार्गः नई दिल्ली से भुवनेश्वर के लिए आपको ट्रेन मिल जाएगी। स्लीपर किराया ₹630, एसी 3 टियर किराया ₹1835, समय 30 घंटे।

भुवनेश्वर से आपको कालुपारा घाट की ट्रेन पकड़नी होगी। स्लीपर किराया ₹160, सेकेण्ड स्लीपर ₹85 , समय 1 घंटा। कालुपारा घाट मंगलाजोड़ी से करीब 4 किमी0 दूर है।

श्रेय : आदित्य सक्सेना

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सड़क मार्ग: बस से जाने का प्लान हो तो भुवनेश्वर या पुरी तक पहुँचें, किराया जगह पर निर्भर है, जैसे कोलकाता से भुवनेश्वर ₹600 तक लगेंगे। भुवनेश्वर से आपको मंगलाजोड़ी के सबसे नज़दीकी बस स्टॉप चाँदपुर तांगी के लिए बस मिल जाएगी जिसका किराया ₹50 रु. तक होगा।

हवाई मार्ग: सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा भुवनेश्वर है। यहाँ से मंगलाजोड़ी 75 कि.मी. दूर है। आप बस या रेल मार्ग से आसानी से मंगलाजोड़ी पहुँच सकते हैं। किराया ₹3,000 तक।

दूसरों के लिए प्रवचन देना आसान है, लेकिन उनके लिए प्रेरणा बनना बहुत मुश्किल। आप इस जगह को लेकर क्या ख़्याल रखते हैं, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।

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