मुसाफिरों के लिए अपनी यात्रा के बारे में शब्दों में बयान करना उनकी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल मगर उत्तेजित कर देने वाला काम है | वैसे तो प्रकृति की महानता को शब्दों में क़ैद नहीं किया जा सकता, लेकिन संयोग से जब भी कोई मुसाफिर अपनी रोमांचक कहानियाँ सुनाना शुरू करता है तो दुनिया में कहीं भी सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और आश्चर्य से आँखें फट कर बाहर आने को हो जाती हैं |
मनाली जाना भी मेरे लिए कुछ संयोग की ही बात थी | मनाली को देह कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी कलाकार की चित्रकारी को देख रहा हूँ और जैसे चित्र मुझसे एक बार में ही हज़ारों शब्द कह रहा हो | आप यहाँ की वादियों को सदियों तक निहार सकते हैं मगर फिर भी आपका मान नहीं भरेगा और मन करेगा कि अपने परिवार के लिए पहाड़ी की चोटी पर एक छोटा सा घर बनाया जाए | मन करेगा कि चाँदी जैसी नदी की स्वच्छ धारा के किनारे अपने प्रेमी के हाथों मे हाथ डाल कर घूमते रहें | या कॉफी का कप हाथ ले कर खिड़की के बाहर गिरती बर्फ को निहारें | यही मनाली है | धरती पर एक स्वर्ग जैसी, मगर बहुत कम लोग इस बारे में जानते हैं |
चारों ओर हिमालय की बड़ी बड़ी चोटियों से घिरा, व्यास नदी की गोद में पला बढ़ा, और हरे भरे घास के मैदानों से ढका मनाली शहर अपने पास आने वाले सैलानी को हर दम प्रभावित करता है, चाहे पहले जितनी बार भी यहाँ घूम कर आ चुके हों | बैकपैकर्स और साहसी ट्रेकर्स के बीच तो यह लोकप्रिय है ही, मगर मुख्य रूप से यहाँ हनीमून मनाने के लिए नवविवाहित जोड़े सबसे भारी संख्या में आते हैं | रोहतांग और लद्दाख की ओर जाने वाली रॉयल एनफ़ील्ड मोटरसाइकिलें तो यहाँ रुकती ही हैं, साथ ही दुनिया भर से सैलानी भी हर मौसम में मनाली में रुकना पसंद करते हैं |
हालाँकि ज़्यादातर मुसाफिर ओल्ड मनाली की पुरातन सुंदरता के करीब रहते हैं जो अपने आप में एक अनोखा अनुभव है , मगर मैने और मेरे साथी ने मुख्य स्टैंड के पास ही रुकने के लिए होटल का इंतज़ाम किया था क्यूंकी ये सभी जगहों से करीब ही है | मगर हमारी कहानी ऐसे ही शुरू नहीं हो गयी | कहानी शुरू हुई दो लोगों और उनकी यात्रा योजनाओं में आए अचानक परिवर्तन से |
हमारी यात्रा की शुरुआत
साल 2013 की बात है जब मैं बेहद बेसब्री से हिमालय पर्वत शृंखला को ऊपर से नीचे तक नाप डालना चाहता था | हम हर दिन कोई ना कोई घूमने लायक जगह ढूँढते थे मगर वहाँ के महँगे होटल और खाने को देख कर बौखला जाते थे | आख़िरकार सर्दियों की छुट्टियों से तुरंत पहले हम ने मनाली जाने की टिकट बुक कर ही ली और इस तरह से सब कुछ ठीक हो गया | वैसे तो ये फ़ैसला हमने जल्दबाज़ी मे लिया था, मगर यही जल्दबाज़ी में लिया हुआ फ़ैसला मेरे जीवन में लिए हुए सबसे सही फ़ैसलों में से एक साबित हुआ | हमने दिल्ली के कश्मीरी गेट बस स्टेशन से गुरुवार की रात लगभग 10:30 बजे एक सेमी-स्लीपर एसी वोल्वो में पकड़ी | शुरुआती यात्रा में हमे थोड़ी परेशानी हुई क्योंकि राजधानी शहर की सड़कों पर यातायात काफ़ी अस्त व्यस्त था, लेकिन एक बार जब हमने राज्य की सीमाओं को पार कर लिया, तो यात्रा मखमल के जैसी आरामदायक हो गयी |
हिमाचल की पहाड़ियों से पहली बार सामना
धन्यवाद देना चाहूँगा पहली बार अपनी गाड़ियाँ ले कर हिमाचल की संकरी सड़कों पर आए ड्राइवरों और ऊबड़ खाबड़ रास्ते का जिनकी वजह से बस हिचकोले खाने लगी और मेरा सिर खिड़की से काँच से जा टकराया | नींद खुली तो घड़ी की तरफ देखा, सुबह के 5.05 बज रहे थे | खिड़की से बाहर की ओर देखा तो पाया कि बस एक पतली सी ऊबड़ खाबड़ सड़क पर चल रही थी और सड़क के दोनों ओर घने जंगल थे | जंगल इतने घने कि उस पार देखना असंभव सा था | कुछ ही देर में पर्वतों के पीछे से सूरज उगा और साथ ही हम पहुँच गये इतनी हसीन वादियों में जिनका ज़िक्र अक्सर कहानियों में ही सुना था | जो पहला दृश्य मैने देखा उसने मेरे मन पर पूरी ज़िंदगी के लिए एक अमिट छाप छोड़ दी | इतने बड़े पर्वतों को मेरे सामने साक्षात देख कर तो मेरी आँखें फटी की फटी ही रह गयी | हवा में ठंडक कुछ बढ़ गयी थी और बस के इंजन की आवाज़ से बाहर की असीम शांति कुछ भंग सी हो रही थी | पक्षी चहचाहाते हुए पहाड़ियों के ऊपर आज़ादी के साथ गोल गोल उड़ रहे थे | इस नये से सुहाने माहौल में हम अपनी सीटों से चिपक कर बैठे थे और विशाल पर्वतों के बीच से निकलती नदी की उन्मुक्त धारा को देख रहे थे | नदी की धारा पर्वतों के बीच से मानो आँख मिचोली खेलते हुए सरसराते हुए बह रही थे | और हम इसी इंतज़ार में थे कि इससे बेहतर और क्या नज़ारा दिखने वाला है |
देखते ही देखते हम हसीन वादियों से घिर चुके थे | अब मौका था अपना कैमेरा निकाल कर इस बला की खूबसूरती को तकनीक के माध्यम से अपने पास क़ैद करने का | जैसे जैसे हम आगे बढ़ते रहे, सड़क की चढ़ाई भी उसी हिसाब से खड़ी होती रही जिसे देख कर अब थोड़ा दर सा लगने लगा था | मगर चढ़ाई के साथ ही पहाड़ों की खूबसूरती भी बढ़ती ही जा रही थी | एक घंटे से कम समय में ही हम राष्ट्रीय राजमार्ग 21 पर आने वाली मशहूर औत सुरंग के मुहाने पर पहुँच चुके थे जिसे हिमालय के पर्वतों में से काट कर निकाला गया है | पहाड़ों पर से गिरती ताज़े पानी की फुहारों ने काफ़ी मुसाफिरों को नींद से जगा दिया था | सुरंग से निकल कर जैसे ही हम कुल्लू पहुँचे तो हर कोई बस से उतर कर वादियों की हवा में खुल कर साँस लेना चाहता था | पर्वतों के पास थोड़ी चहलकदमी करने और हल्के नाश्ते व चाय से भूख शांत करने के बाढ़ हम अपने मुख्य गंतव्य की ओर जाने के लिए तैयार हो गये | हमारा मुख्य गंतव्य जो मनाली था |
मनाली की यात्रा के लिए आपको कुल्लू और मनाली कस्बों की संकरी गलियों से हो कर गुज़रना पड़ता है| बस की छत आस पास की दुकानों और घरों की छत के बराबर ही आ जाती है तो आप को अचानक अपना आकर बढ़ा हुआ दैत्याकार लगता है, मगर एक बार आप मनाली बस स्टैंड पहुँच जाते हैं तो सब कुछ फिर से वैसा ही हो जाता है |
आख़िर हम पहुँच ही गये
लंबी थका देने वाले बस के सफ़र के बाद आप कोई ऐसी जगह चाहेंगे जहाँ आराम से बैठ कर शरीर की थकान उतार सकें | लेकिन मनाली पहुँचने के बाद आप बिल्कुल उल्टा महसूस करेंगे | थकान की बजाय बस से पैर नीचे रखते ही आप में एक अलग ही ऊर्जा आ जाएगी | इतनी लंबी यात्रा करने के बाद भी हो सकता है की आप थोड़ी देर बाद ही आस पास की जगहों पर घूमने जाने के लिए कैब बुक करवा लें |
त्यौहारों का समय चल रहा था, ज़ाहिर है कि सड़कों पर यातायात भी बहुत था | इस वजह से हम मनाली दोपहर साढ़े बारह बजे पहुँचे | चूँकि हमारा बुक किया हुआ होटल चिचोगा हॉलिडे इन पास ही था, तो हमने अपनी योजना में थोड़ा बदलाव किया और ऑटो लेने की बजाय वहाँ तक पैदल जाना उचित समझा |
फ़र्ज़ कीजिए : दूर दूर तक घने जंगल फैले हैं, चौड़ी सड़कें आगे तक जा रही हैं मगर धुन्ध होने की वजह से ज़्यादा कुछ दिख नहीं पा रहा है, सर्द हवाओं के साथ आसमान के बादल बादल तैर कर धीरे धीरे आप ही की ओर आ रहे है, कच्ची पक्की सड़कों पर कारें हिचकोले खाती हुई घाटी में कहीं अदृश्य हो रही है, व्यास नदी का शीशे सा साफ पानी सड़क के साथ ही लग कर बह रहा है और माहौल में पक्षियों की चहचाहाने की आवाज़ गूँज रही है | अद्भुत है, है ना ! हमें क्या पता था कि इससे भी बेहतरीन नज़ारे अभी आने को हैं |
सीढ़ी पर कदम रखा, थकान के मारे हमारा मन कर रहा था कि बस बिस्तरों में घुस जाएँ और पूरे सप्ताहांत के लिए यात्रा की योजना बना लें | जैसे ही होटल के प्रबंधक ने हमारे कमरे की बालकनी का दरवाज़ा खोला तो हमारे सामने मनाली का इतना सुंदर दृश्य था कि हमारे घूमने फिरने की सारी योजनाएँ शाम तक के लिए स्थगित हो गयी |
चिचोगा हॉलिडे इन मनाली में ठहरने की सबसे बढ़िया जगहों में से एक है |
चिचोगा हॉलिडे इन
यात्रा के कार्यक्रम की सूची
पहला दिन
माल रोड
आख़िरकार हमने मनाली में अपनी पहली कॉफी ख़त्म कर ही ली और शाम को 7 बजे माल रोड पर टहलने के लिए निकल गये | चूँकि दशहरे का जश्न चल रहा था, इस वजह से बाज़ार में बहुत से सैलानी घूम रहे थे | फिर भी हम ने एकांत में एक रेस्तराँ ढूँढ ही लिया और मिल कर यहाँ की ख़ासियत ट्राऊट मछली के स्वाद का आनंद लिया | हमारा मन तो थोड़ी थोड़ी शराब पीने का भी हो रहा था मगर राष्टीय अवकाश होने की वजह से हमारी ये इच्छा पूरी नही हो सकी | खेद है|
दूसरा दिन
सोलांग वैली
हमारे कमरे की खिड़की से हिमालय पर्वत शृंखला का बेहद सुंदर नज़ारा दिख रहा था, और इस नज़ारे के साथ ही हमारी सुबह की शुरुआत हुई | सुबह की चाय पीते पीते हमने सोलांग वैली की ओर जाने का मन बनाया और 1400 रुपये में आने जाने के लिए टैक्सी बुक कर ली जो हमें कुल्ली की वादियों में घुमा कर वापिस होटल तक लाएगी | सोलांग वैली करीब बीस मिनट की ड्राइव पर ऊँचाई पर स्थित है जहाँ से हमें आधे शहर का नज़ारा देखने को मिलता है |
सोलांग मनाली से 14 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है जहाँ पर्यटकों को पसंद आने वाली गतिविधियाँ जैसे पैराग्लाइडिंग, ज़ोरिंग, घुड़सवारी और सर्दियों में आइस स्केटिंग करवाई जाती है | ऑफ सीज़न में गाइड के साथ 15-20 मिनट तक के लिए पैराग्लाइडिंग करने का शुल्क लगभग 3000 रुपये लगता है लेकिन यही शुल्क उत्सव के मौकों पर बढ़ कर 5000 रुपये प्रति व्यक्ति तक भी हो जाता है |
अगर आप यहाँ तक आए हैं तो रोप वे का अनुभव करना बिल्कुल ना भूलें | आप यहाँ नीचे ही स्थित स्की-रिज़ॉर्ट से टिकट खरीद सकते हैं। एक बार आप रोप वे द्वारा शिखर पर पहुँच गये तो हरे भरे मैदानों के ढाल पर चढ़ते हुए अंत तक चले जाइए | अगर आप को ऊँचाइयों से दर नहीं लगता तो वहाँ से नज़ारा देखते ही बनेगा | और हाँ, यहाँ अपना आई फोन ले जाना ना भूलें क्यूंकी नज़ारे इतने हसीन हैं कि आप का मन हिमालय के साथ सेल्फी खींचने का करेगा |
शाम को सात बजे हम अपने होटल में लौट आए और अपने कमरे की बालकनी में बैठ कर मोमबत्ती की रोशनी में रात्रि भोज का आनंद लिया | भोजन करते करते हम मनाली के कलात्मक आकर्षण और रमणीयता की तारफएन करते रहे |
तीसरा दिन
ओल्ड मनाली
कल-कल बहती मनाल्सु नदी के साथ बसा ओल्ड मनाली बाहरी दुनिया से काफ़ी अलग हट कर जगह है | ओल्ड मनाली के पुरातन महिमा और आधुनिक आकर्षनों का मिश्रण देखने में इतना विचित्र लगता है जैसे साक्षात कोई कहानियों की किताब से निकला हो | ओल्ड मनाली में एक ओर तो प्राचीन हिडिंबा मंदिर है जिसकी गरिमा अपरंपार है, तो दूसरी ओर पतली पतली गलियों में हिप्पी कैफ़े की कतारें हैं जो आधुनिक अपरंपरागत संगीत बजाते है | इन सभी चीज़ों का अनुभव लेने के अलावा आप को एक और अनुभव करना चाहिए और वो है यहाँ के विलेज रिज़ॉर्ट या घर में रहने का | समय की कमी के कारण हम तो इस अनुभव से वंचित रह गये मगर आप को यहाँ के विलेज रिज़ोर्ट में रहते हुए नदी की धारा के पास बैठ कर सेब के पेड़ों से आती पट्टियों की सरसराहट और बुलबुल की कूक सुनने में बड़ा मज़ा आएगा |
पिकाडली
मनाली में समय उड़ता ही दिखता है | अगला दिन हमने पिकाडली थिएटर की जादुई दुनिया को देखते हुए बिताने की सोची | इसके बाद हमने इस खूबसूरत जगह से विदा ले लिया |
शाम को 4 बजे वापसी के समय बस पकड़ते हुए हमारा दिल भर आया | सीने में हज़ारों यादें लिए हमने मनाली की वादियों से और भी ज़्यादा दिन का कार्यक्रम बना कर वापस आने का वादा किया | जाते जाते बस एक ही ख़याल आया - "दिल चीर के देखो, इसमे खून नहीं मनाली के लिए प्रेम भरा है | "
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