मलाणा गाँव की वो झूठी अफवाहें जिन्हें दुनिया सच मान बैठी है!

Tripoto
Photo of मलाणा, Himachal Pradesh, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
Photo of मलाणा, Himachal Pradesh, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
Photo of मलाणा, Himachal Pradesh, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
Photo of मलाणा, Himachal Pradesh, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
Photo of मलाणा, Himachal Pradesh, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
Photo of मलाणा, Himachal Pradesh, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
Photo of मलाणा, Himachal Pradesh, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni
Photo of मलाणा, Himachal Pradesh, India by सिद्धार्थ सोनी Siddharth Soni

"एक बात पूछूँ? बुरा तो नहीं मानोगे ? "

"पूछ यार, पीने के बाद भी घबरा रहा है ! "

" आप सच में ऐलैक्ज़ैंडर(Alexander The great ) के वंशज हो क्या ? "

" कर दी न बेवकूफों वाली बात ! अबे ये अफवाह अभी 10 -15 साल पहले हमारे गाँव के एक मास्टर ने फैलाई थी | ताकि लोग हमें देखने मलाणा आएँ और हमारे कारोबार चलें |

2011 में मैं पहली बार मलाणा गया था | इंटरनेट और सोशल मीडिया पर इस गाँव के बारे में ऐसी- ऐसी अफवाहें सुनी और पढ़ी थी, कि जाए बिना रहा ही नहीं गया। जो भी मलाणा घूम कर आता , सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरों के साथ यहाँ के बारे में एक - दो अफवाहें भी फैला देता था।

अफवाहें जैसे यहाँ के लोग राजा ऐलेक्ज़ेंडर के वंशज हैं, मलाणा के लोग किसी भी बाहर वाले को अपना शरीर या सामान छूने नहीं देते , मलाणा क्रीम से बढ़िया माल कहीं भी नहीं मिलता, यहाँ का लोकतंत्र सबसे पुराना है वगैरह वगैरह।

इनके अलावा भी कई ऐसी अफवाहें थी जिनके बारे में मैनें शशि से बात की। शशि यहाँ मलाणा में एक लॉज चलाता है, और माल भी बेचता है | शाम को जब हम साथ बैठे तो एक-दो पैग लगाने के बाद शशि ने मुझसे खुलकर बात करना शुरू कर दिया। उसने कई ऐसी अफवाहों की धज्जियाँ उड़ाना शुरू किया, जिन्हें पूरी दुनिया के लोग सच मान बैठे हैं। शशि ने बताया कि :

" अगर हम ऐलेक्ज़ेंडर के वंशज हैं तो हमारी भाषा कनशी में पारसी मिली होनी चाहिए थी। क्योंकि ऐलेक्ज़ेंडर पारसी था। मगर कनशी को तो इंडो-तिब्ब्बती भाषा माना जाता है... "

" ...और बाहर के लोगों से अछूत जैसा व्यवहार क्यों करेंगे भला? आपकी वजह से तो हमारा कारोबार चलता है। आप भी तो हम जैसे ही हो ना। बस हमारे बड़े-बूढ़े बच्चों को सिखाते हैं कि शहरी लोगों से कम घुला मिला करो, नहीं तो लालची हो जाओगे। वैसे भी इस छोटे से गाँव में हम लगभग 2400 लोग ही रहते हैं, तो हमें बाहर की दुनिया का ज़्यादा ज्ञान भी नहीं है.... "

" ... मुझे नहीं लगता मलाणा का माल सबसे बढ़िया है। मैं तो खुद कुल्लू का माल पीता हूँ। यहाँ का माल स्वाद में अलग ज़रूर है। हुआ यूँ कि शुरुवात में यहाँ कुछ डच हिप्पी आये। इनका वीज़ा पुराना हो गया था, तो ये छुपने की जगह देख रहे थे। छुपने के दौरान इन्होनें यहाँ मलाणा का माल पिया। इनको अच्छा लगा तो इन्होनें अपने कुछ दोस्तों से यहाँ आने को कहा। उन दोस्तों ने अपने कुछ दोस्तों से कहा और आज पूरे हिमाचल में जगह-जगह फिरंगी दिख जाते हैं। ख़ास कर के यहाँ मलाणा में। "

"मगर भाई मैनें खुद माल पिया, मुझे तो बहुत शानदार लगा | " मैनें शशि से कहा।

" ...हाँ तो मैं कहाँ मना कर रहा हूँ कि माल शानदार नहीं है | माल बढ़िया है तब ही तो लोग पीने इतनी दूर-दूर से आते हैं। अब पहाड़ों में 20 घंटे सफर करके जब यहाँ पहुँचोगे, तो आपका दिमाग खुद ही मान लेगा कि माल सबसे बढ़िया है। मगर सबसे बढ़िया नहीं कह सकते। वो तो हर धंधे की तरह इसमें भी एक साथ खूब सारा माल निकलने लगा है, वरना पहले तो जो थोड़ा उगाते थे, उसे ही मल के पी लेते थे। माल सबसे बढ़िया नहीं है, मगर शानदार है। " शशि ने भी तर्क के साथ मेरे सवाल का जवाब दिया।

अभी तक शशि ने उन सभी अफवाहों को निराधार करार दे दिया था , जिन्हें सुन कर शहरी लौंडे मुँह उठा कर मलाणा चले आते हैं।

शशि ने चिलम से एक लम्बी सांस खींची.....फिर बोलना शुरू किया :

"ऐसी बात नहीं है कि सारी बातें अफवाह है। हो सकता है हमारे यहाँ काफी पहले से लोकतंत्र रहा हो। हो सकता है कि यहाँ भी एक जनपद रहा हो। मगर अब उस लोकतंत्र का हाल भी लचर है। जब हिमाचल के नेताओं को मलाणा क्रीम की लोकप्रियता के बारे में मालूम हुआ तो वो भी हमारी कमाई का एक टुकड़ा लेने आ धमके। हम टैक्स तो नहीं देते, मगर राज्य सरकार के नेताओं और प्रशासन को हमारा 'कट ' ज़रूर जाता है। इतना ही नहीं, हमारे गाँव के कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने भी जुगाड़ लगा कर पार्टी की टिकट पा ली थी | गाँव से लोग हिमाचल के मिनिस्टरों को यहाँ का हाल-चाल भी पहुँचाते रहते हैं। गाँव में इंटरनेट, फोन सब चलता है तो कोई दिक्कत नहीं होती। "

"फोन, इंटरनेट सब चलता है तो फिर ये गाँव कैसे हुआ शशि भाई ?" मैनें पूछा

"क्योंकि यहाँ पक्की सड़कें नहीं बनी हुई और आज भी गाँव में कोई ज़्यादा बीमार हो जाता है तो शहर के हॉस्पिटल ले जाना पड़ता है। कुछ लोग रस्ते में ही दम तोड़ देते हैं। लेकिन आप वो छोड़ो, ये लो चिलम। अब आप दम लगाओ, मेरे खेत का ही मलाणा क्रीम है.... "

.... बोल कर शशि भाई हंसने लगे, और मैं खाँसने लगा।

क्या आपने भी अपने सफर पर ऐसी अजीब कहानियाँ सुनी हैं? अपनी यात्राओं के अनुभव यहाँ क्लिक कर लिखना शुरू करें।

ये आर्टिकल अनुवादित है। ओरिजनल आर्टिकल पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

कैसा लगा आपको यह आर्टिकल, हमें कमेंट बॉक्स में बताएँ।

बांग्ला और गुजराती में सफ़रनामे पढ़ने और साझा करने के लिए Tripoto বাংলা  और  Tripoto  ગુજરાતી फॉलो करें

Tripoto हिंदी के इंस्टाग्राम से जुड़ें और फ़ीचर होने का मौक़ा पाएँ। 

Further Reads