हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं को पूजते हैं | इनमें कई तो खुद पशु रूप में हैं, जैसे हाथी रूप में गणेश, बंदर रूप में हनुमान,और कई देवी-देवता पशुओं पर सवारी करते हैं, जैसे शनि काले कुत्ते पर, माता शेर पर, लक्षमी कछुए पर, कार्तिक मोर पर, गणेश चूहे पर, शिव बैल पर, विष्णु साँप पर |
तो लोग देवी-देवता के साथ उनके वाहन को भी पूजते हैं |
पर क्या अपने किसी को मकड़ी को पूजते देखा है? आठ पैरों वाला ये गंदा घिनौना जीव देखते ही चप्पल तले कुचल कर मार दिया जाता है |
मगर दक्षिण भारत में 2 ऐसे मंदिर भी हैं जहाँ मकड़ी की पूजा होती है |
तो कहाँ हैं ये मंदिर, और इनकी कहानी क्या है? आइए जानें :
श्रीकालहस्ती मंदिर, आंध्र प्रदेश
श्री मतलब मकड़ी, काल मतलब साँप और हस्ती मतलब हाथी
तो इस मंदिर में मकड़ी, साँप और हाथी की मूर्तियाँ रखी हैं | लोग इन मूर्तियों को भी उसी भक्ति के साथ पूजते हैं, जिस भक्ति के साथ यहाँ रखे शिवलिंग की पूजा की जाती है |
कहानी के हिसाब से मकड़ी, साँप और हाथी, तीनों इस मंदिर में शिवलिंग की पूजा करके अपनी-अपनी पशु योनि से मुक्त हुए थे | हाथी ने शिवलिंग पर जलाभिषेक किया, साँप शिवलिंग से लिपट गया और मकड़ी ने शिवलिंग के ऊपर महीन जाला बुन दिया |
श्रीकालहस्ती मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्वर्नामुखी नदी के तट पर बना हुआ है, और तट से लेकर पहाड़ों तक फैला हुआ है | 2000 साल पहले बनाए गए इस मंदिर को 'दक्षिण कैलाश' या 'दक्षिण काशी' भी कहते हैं |
आस-पास घूमने लायक और क्या है ?
इस तीर्थ के आस-पास घूमने के लिए कई जाने माने मंदिर हैं, जैसे विश्वनाथ मंदिर, कणप्पा मंदिर, मणिकणिका मंदिर, सूर्यनारायण मंदिर, भरद्वाज तीर्थम, कृष्णदेवार्या मंडप, श्री सुकब्रह्माश्रमम, वैय्यालिंगाकोण, दुर्गम मंदिर और दक्षिण काली मंदिर |
कैसे पहुँचें :
मंदिर से 20 कि.मी. दूर तिरुपति हवाई अड्डा है | चेन्नई और गुंटूर से इस मंदिर तक की ट्रेनें मिल जाती हैं | आंध्रप्रदेश रोडवेज़ की बसें भी लगातार चलती रहती हैं |
कोदुमोन पल्लियारा
ये मंदिर कुछ ख़ास है, क्योंकि यहाँ ना सिर्फ़ मकड़ी की पूजा होती है, मगर यहाँ मकड़ी के काटे हुए पीड़ित भी आते हैं |
लोगों की मान्यता है कि यहाँ आने से मकड़ी के ज़हर का असर ख़त्म हो जाता है |
ये मंदिर यूँ तो माँ दुर्गा को समर्पित है, मगर इसके अलावा दुर्गा माँ के किसी भी मंदिर में मकड़ी की पूजा नहीं होती | तो भारत में अपने जैसे इकलौता मंदिर है ये |
मंदिर परिसर में ही एक कुआँ है, मान्यता है जहाँ का पानी पीने से त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं |
कैसे पहुँचें :
ये मंदिर त्रिवन्द्रम एयरपोर्ट से से लगभग 130 किलोमीटर दूर है | 38 किलोमीटर दूर करुणागपल्ली में रेलवे स्टेशन भी है |
क्या आप भी ऐसे अनोखे मंदिरों के बारे में जानते हैं, जिनके बारे में लोगों ने ज़्यादा कुछ नहीं सुना ? कॉमेंट्स में लिखकर बताइए | अगली बार वहीं की कहानी कवर करेंगे |